पहले साहित्यकार, अब फिल्मकार और वैज्ञानिक। आखिर क्यों बढ़ता जा रहा है मोदी सरकार का विरोध? क्या वाकई हालात इतने बिगड़ गए हैं कि देश की इन प्रतिष्ठित हस्तियों को अपने सम्मान लौटाने पर मजबूर होना पड़े या महज विरोध के नाम पर चल रहा यह सुनियोजित विरोध है? क्या वक्त आ गया है कि खुद प्रधानमंत्री मोदी इन विरोधियों का गिला-शिकवा दूर करें या उन्हें इन पर ध्यान देना चाहिए? इस विषय पर naidunia.com और jagran.com के यूजर्स ने अपने विचार बताए। पढ़ते हैं चुनिंदा कमेंट्स को। -
राजेश सिंह : यह सभी लोगों का विरोध केवल मोदी की वजह से ही हो रहा है। चूंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध ये सभी लोग पहले से करते आए हैं इसलिए ही ये अब विरोध कर रहे हैं। इनसे यह सवाल जरूर पूछा जाना चाहिए कि जब भोपला गैस कांड का आरोपी एंडरसन देश छोड़कर भाग गया, कश्मीर में कत्लेआम मचाया गया तब आखिर क्यों इन लोगों ने सम्मान वापस नहीं किया। इनसे पूछा जाना चाहिए कि क्या यह सिर्फ मोदी विरोध के लिए ही कर रहे हैं?
विजय कुमार : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि खुद उनके ही चहेते लोग खराब कर रहे हैं। कई मंत्री ऐसी बयानबाजी कर रहे हैं कि अल्पसंख्यकों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इन नेताओं में योगी आदित्यनाथ, साक्षी महराज जैसे लोग शामिल हैं।
विजय रावत : मेरे विचार से तो ये सभी साहित्यकार, वैज्ञानिक और सम्मान वापस करने वाले अन्य लोग मोदी का विरोध करने के लिए ये विरोध कर रहे हैं। इन सभी का विरोध सुनियोजित विरोध है। इसके साथ ही इस तरह का विरोध का कोई असर नहीं पड़ता है।
सुनील तिवारी : इससे ज्यादा हिंसा कांग्रेस के समय में होती थी लेकिन उस वक्त उनका विरोध कोई नहीं करता था। अब चूंकि मोदी सरकार सत्ता में आ गई है इसिलए ये सभी लोग विरोध में उतर आए हैं।
दिलीप पाटीदार : मौजूदा वक्त में जो विरोध हो रहा है उसके हिसाब से देखें तो देश के हालात इतने भी खराब नहीं हैं कि इस तरह का विरोध किया जाए। इस तरह के विरोध को तवज्जो नहीं दी जानी चाहिए।
रवि त्रिवेदी : मेरा भी यही मानना है कि यह विरोध महज सुनियोजित विरोध ही है।
धीरेंद्र कुमार : वर्तमान समय में तमाम लेखक, साहित्यकार व वैज्ञानिक मोदी सरकार में बढ़ती हिंसा की घटनाओं का विरोध कर चुके हैं। हमें व सरकार को यह समझना होगा कि सामूहिक विरोध हो रहा है तो जरूर गलती सरकार की ही होगी। सरकार को इस विरोध को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है।
रत्नेश तिवारी : मुझे यह बात नहीं समझ में आ रही है कि क्या देश में पहली बार हिंसा हुई है? इतिहास रहा है कि कांग्रेस के समय में भी हिंसाएं होती रही हैं तब आखिरकार क्यों सम्मान वापस नहीं किया गया था।
शफात बेग : भारत का इतिहास रहा है कि यहां भाईचारा रहा है। हमेशा से ही देश में सभी धर्मों के लोग साथ घुलमिल कर रहते आए हैं। इसी वजह से अब हम सभी को यह सोचना चाहिए कि आगे से हिंसा की घटनाएं ना हों।
पहले साहित्यकार, अब फिल्मकार और वैज्ञानिक। आखिर क्यों बढ़ता जा रहा है मोदी सरकार का विरोध? क्या वाकई हालात इतने बिगड़ गए...Posted by NaiDunia on Wednesday, October 28, 2015