जेल में हुआ विचार, रच दी ऐतिहासिक पुस्तक
उन्होंने यह अनुरोध भी किया कि इस पुस्तक की भूमिका ससुर मोतीलाल नेहरू लिखें।
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Publish Date: Fri, 03 Mar 2017 02:40:19 PM (IST)
Updated Date: Fri, 03 Mar 2017 02:47:16 PM (IST)

सन् 1893 में जन्मे रंजीत सीताराम पंडित एक सफल वकील होने के साथ-साथ संस्कृत के विद्वान भी थे। उन्होंने महाराष्ट्र के काठियावाड़ से इस विषय में गहरा अध्ययन किया था। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल
नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू अदालत में रंजीत द्वारा बहस करने के तरीके से खासे प्रभावित थे। उनकी मेधा से प्रसन्न् हो उन्होंने सन् 1921 में अपनी बेटी और जवाहरलाल की बहन विजयलक्ष्मी का विवाह रंजीत से कर दिया।
बाद में रंजीत ने भी कांग्रेसी नेताओं के साथ आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया और जेल गए। 1930 में तो ऐसा अवसर आया जब रंजीत और जवाहरलाल नेहरू को एक साथ इलाहाबाद के पास स्थित नैनी सेंट्रल जेल में कैद कर दिया गया। रचनात्मकता के धनी रंजीत ने जेल की सलाखों के पीछे रहकर 'कालाहाना की राजतरंगिनी" नामक पुस्तक को अंग्रेजी में अनुवाद करने की इच्छा जवाहरलाल नेहरू के सामने जताई।
उन्होंने यह अनुरोध भी किया कि इस पुस्तक की भूमिका ससुर मोतीलाल नेहरू लिखें। किताब शुरू हुई और गहन अध्ययन के साथ इसे पूरा होने में चार साल लग गए। इस बीच मोतीलाल नेहरू का देहांत हो गया। तब पिता की जगह जवाहरलाल नेहरू ने इसकी भूमिका लिखी। बाद में यह पुस्तक साहित्य अकादमी से प्रकाशित हुई और ऐतिहासिक दस्तावेज बन गई।