27 नवंबर, 112 वें जन्मदिवस पर विशेष : हिंदी कवि डॉ हरिवंश राय बच्चन की कुछ अनजानी रोचक बातें
नवोदित सक्तावत
हिंदी के दिग्गज कवि डॉ हरिवंश राय बच्चन का आज 112 वां जन्मदिवस है। अपनी लाजवाब काव्य प्रतिभा से इतर बच्चन इस स्वभाव-संतुलन के लिए भी जाने जाते हैं कि अपनी कालजयी कृति मधुशाला के ज़रिये बिन पिये खुमारी ला देने वाला यह शब्द साधक नशे की लत से कोसों दूर था। कोई आश्चर्य नहीं कि उनकी माता का नाम सरस्वती था, लिहाजा उन्हें आजीवन सरस्वती का सच्चे अर्थों में पुत्र होना ही था। अभिनेता अमिताभ के पिता के रूप में उनका परिचय हर आम व खास को तो है ही, उनकी कृति मधुशाला उनके जिक्र का पर्याय मानी जाती है लेकिन हरिवंश राय का जीवन उनके काव्य की तरह ही आरोह-अवरोह से आप्लावित रहा। उनका जीवन सपाट नहीं रहा बल्कि घटनाओं की श्रृंखला उसमें गूंथी हुई रही। असल में, हरिवंश राय का जिक्र छिड़ते ही सारी चर्चा उनके काव्य की ओर मुड़ जाती है और व्यक्ति के तौर पर उनके भीतर का मनुष्य चर्चाओं की महफिल में रूख़सत रह जाता है। आइये हम संक्षेप में जानते हैं उनके जीवन की अनसुनी, अनकही और ऐसी अनजानी बातें जो रोचक तो हैं ही, हमें उन्हें नजदी़क से जानने का एक मौक़ा भी देती हैं।
पैदाइश
उनकी पैदाइश उस दौर के लोगों की तरह ही ज़मीनी विभाजन के पूर्ववर्ती कारणों से विलग नहीं है। उनका जन्म हुआ तो उत्तरप्रदेश में था लेकिन गुलाम मुल्क में इलाहाबाद, आगरा ब्रिटिश भारत कहलाता था। वे इलाहाबाद की पैदाइश माने जाते हैं लेकिन ये सच नहीं है। वे प्रतापगढ़ जिले के गांव बाबूपट्टी में जन्मे थे। तारीख थी 27 नवंबर 1907
परिवार
पिता प्रताप नारायण श्रीवास्तव चूंकि कायस्थ थे इसलिए इतना तो तय था कि बेटा नौकरी करेगा लेकिन वह उनके सपनों को कितना आगे ले जाएगा ये स्वयं अंदाजा नहीं था। मां का नाम सरस्वती ही था। ठीक ही है। वे कालांतर में सच्चे मायनों में सरस्वती के बेटे ही साबित हुए।
पढ़ाई
तीन भाषाओं पर पकड़ थी। वह ऐसे कि हिंदी के तो सशक्त हस्ताक्षर थे ही, अंग्रेजी की भी उच्च शिक्षा हासिल की। वह भी विलायत जाकर। ब्रिटेन की कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में उन्होंने अंग्रेजी कवि यीट्स की कविताओं पर शोध किया और हरिवंश से बन गए डॉ हरिवंश। उस ज़माने में उर्दू बुनियादी भाषा थी, सो उसमें भी माहिर थे। भाषाओं के प्रति अनुराग जो अमिताभ में नजर आता है, उसकी जड़ें इसी परंपरा से पोषित हैं।
ऐसे कहलाये बच्चन
उपनाम तो श्रीवास्तव ही था फिर यह बच्चन कहां से बीच में आ गया। हम बताते हैं। बाबूपट्टी गांव के जिस परिवेश में उन्होंने होश संभाला वहां ठेठ देशज अंदाज में बच्चे को बच्चन कहा जाता है। जा़हिर है वे भी अछूते नहीं रहे, लेकिन यह शब्द उनके साथ ऐसा तमगा बनकर जुड़ा कि यह बच्चा आयु और प्रतिभा में बड़ा होता गया लेकिन तमगे ने ही उपनाम का स्थान ले लिया। मजा यह है कि उनकी पीढि़यां भी इस शब्द को आधिकारिक उपनाम बनाकर गंभीरता से प्रयुक्त करती रहीं। अमिताभ, अभिषेक के बाद अब आराध्या इसी परंपरा के संवाहक हैं।
मधुशाला की प्रेरणा
1935 में आई उनकी कालजयी कृति मधुशाला निश्चित ही हिंदी कविता में हालावाद के साथ एक नई शुरुआत थी लेकिन यह केवल शब्दों का निवेश भर नहीं है। उनकी मधुशाला से बहुअर्थी व्याख्याएं उपजीं, लेकिन वास्तविक भावार्थ पर कोई एक मत नहीं होता। मधुशाला से उनका आशय साहित्यिक, अध्यात्मिक और सबसे अधिक जीवन का व्यवहारिक अभ्यास था जिसमें वे प्रयासों को बार बार करके लक्ष्य तक पहुंचने की भावना को बलवती करते हैं। जिस समय उनकी पहली पत्नी मौत से जूझ रही थी, उसी समय मधुशाला सामने आई। ये सारे अनुभव उन्होंने काव्य के ज़रिये प्रकट किये।
अमिताभ दूसरी पत्नी की संतान
कम लोगों को पता है कि हरिवंश राय ने दो शादियां की थीं। पहली पत्नी श्यामा टीबी के कारण चल बसी। इसके पांच साल बाद उन्होंने रंगमंच अदाकारा और गायिका तेजी को अपना जीवनसाथी चुना। चूंकि तेजी रंगकर्म से थीं इसलिए ये संस्कार अमिताभ के भीतर आए और विस्तार पाकर अनंत ऊंचाइयों तक गए।
मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश
कुल जमा 24 काव्य संग्रह में से मधुशाला का क्रम दूसरा है। इसकी आशातीत सफलता के बाद इसी विचार को भुनाते हुए उन्होंने लगातार दो साल तक 1936 और 1937 में क्रमश: मधुबाला और मधुकलश नामक काव्य संग्रह जारी किए लेकिन वे इतनी ख्याति नहीं पा सके। अपने पचास वर्ष से अधिक समय के कलाकर्म में उन्होंने 24 काव्य संग्रह, 4 आत्मकथाएं और 29 विविध लेखन संग्रह तैयार किए।
तेजी से अनुराग
दूसरी पत्नी तेजी से उनका अनुराग केवल गृहस्थी के नाते होने तक ही सीमित नहीं था, वे स्वयं तेजी की प्रतिभा के कायल थे। तेजी एक सुंदर और प्रतिभाशाली पंजाबी युवती थी। भाषा के खिलाडी हरिवंश ने शेक्सपीयर के कई नाटकों का हिंदी अनुवाद किया जिनमें तेजी ने अभिनय किया। दोनों की केमिस्ट्री बेहतरीन थी।
नौकरशाही
उदभट विद्वान होने के चलते उन्हें भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ का दायित्व सौंपा गया। इसे उस दौर की नौकरशाही भी कहा जा सकता है। वे एक बड़े व जिम्मेदार अधिकारी के पद पर लंबे समय रहे। वे राज्यसभा के मनोनीत सदस्य भी थे।
प्रतिष्ठा
वे हिंदी कविता के मील के पत्थर माने जाते हैं। मधुशाला का ऑडियो संस्करण भी आया जिसमें अमिताभ ने वॉइस ओवर किया था एवं मन्ना डे ने गाया था। उन्होंने दीर्घ एवं प्रतिष्ठित जीवन जीया। 18 जनवरी 2003 को उनकी मृत्यु के समय वे 95 की आयु के थे।