'कोहिनूर' की 11 दिलचस्प कहानियां, जिसके पास रहा उसे किया बर्बाद
प्राचीन भारत की शान कोहिनूर हीरा भारत के आंध्रप्रदेश राज्य के गोलकुंडा की खदान से मिला था। जानते हैं इसकी दिलचस्प 11 बातें...
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Publish Date: Fri, 19 Feb 2016 02:46:42 PM (IST)
Updated Date: Fri, 19 Feb 2016 02:59:40 PM (IST)

नई दिल्ली। भारत अकेला देश नहीं है जो कोहिनूर हीरे पर दावा जता रहा है। हाल ही में पाकिस्तान के एक वकील ने इस हीरे पर पाक का हक जताते हुए इसे सुर्खियों में ला दिया है। अपने लंबे सफर के बाद यह हीरा कई राजाओं के हाथों से गुजरा है। इससे पहले भारतीय मूल के ब्रिटिश सांसद कीथ वाज ने अपनी सरकार से कोहिनूर हीरे को भारत को लौटाने का आग्रह पिछले साल किया था।
साल 1976 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फीकार अली भुट्टो ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री जिम कैलेघन से इसे उनके देश को लौटाने का अनुरोध भी कर चुके हैं। इसके अलावा अफगानिस्तान के तालिबान शासक और ईरान ने भी इस पर अपना दावा पेश किया है। लेकिन ब्रिटेन ने उनके अनुरोध को ठुकरा दिया था। जानते हैं इस हीरे से जुड़ी दिलचस्प कहानियों के बारे में...
- प्राचीन भारत की शान कोहिनूर हीरा भारत के आंध्रप्रदेश राज्य के गोलकुंडा की खदान से मिला था। कभी इसे दुनिया का सबसे बड़ा हीरा माना जाता था, तब यह 793 कैरेट का था, जो अब 105.6 कैरेट का रह गया है। कोहिनूर का अर्थ है रोशनी का पहाड़, लेकिन यह जिस किसी के पास भी रहा उसके साम्राज्य का अंत हो गया।
- कोहिनूर का प्रथम प्रमाणिक वर्णन बाबरनामा में है, जिसके अनुसार 1294 के आस-पास यह ग्वालियर के किसी राजा के पास था। इस हीरे को पहचान 1306 में मिली, जब इसको पहनने वाले एक शख्स ने लिखा कि इस हीरे को पहनने वाला इंसान संसार पर राज करेगा, लेकिन यह हीरा उसके दुर्भाग्य का कारण भी बनेगा। यह हीरा सिर्फ औरतों और संत के लिए ही भाग्यशाली होगा।
ऐसी मान्यता है की यह हीरा अभिशप्त है। हालांकि, तब उसकी बात को उसका वहम कह कर खारिज कर दिया गया पर यदि हम तब से लेकर अब तक का इतिहास देखे तो कह सकते है की यह बात काफी हद तक सही है।
1083 ई. से शासन कर रहे काकतीय वंश के पास जब यह हीरा आया, तो उसके बुरे दिन शुरू हो गए और 1323 में तुगलक शाह प्रथम से लड़ाई में हार के साथ काकतीय वंश समाप्त हो गया। 1325 से 1351 ई. तक मोहम्मद बिन तुगलक के पास रहा और 16वीं शताब्दी के मध्य तक यह विभिन्न मुगल सल्तनत के पास रहा। सभी का अंत बुरा हुआ।
शाहजहां ने इस कोहिनूर हीरे को अपने मयूर सिंहासन में जड़वाया लेकिन उनका आलीशान और बहुचर्चित शासन उनके बेटे औरंगजेब के हाथ चला गया। 1739 में फारसी शासक नादिर शाह भारत आया और उसने मुगल सल्तनत पर आक्रमण कर दिया।
इस तरह मुगल सल्तनत का पतन हो गया और नादिर शाह अपने साथ तख्ते ताउस और कोहिनूर हीरों को पर्शिया ले गया। नादिर शाह ने इस हीरे का नाम कोहिनूर रखा। 1747 में नादिरशाह की हत्या हो गयी और कोहिनूर हीरा अफगानिस्तान शांहशाह अहमद शाह दुर्रानी के पास पहुंच गया। उनकी मौत के बाद उनके वंशज शाह शुजा दुर्रानी के पास पहुंचा। पर कुछ समय बाद मो. शाह ने शाह शुजा को अपदस्त कर दिया।
साल 1830 में अफगानिस्तान का तत्कालीन पदच्युत शासक शूजाशाह किसी तरह कोहिनूर के साथ बच निकला और पंजाब पहुंचा। उसने यह हीरा महाराजा रणजीत सिंह को भेंट किया। इसके बदले में रणजीत सिंह ने ईस्ट इंडिया कंपनी को अपनी सेना अफगानिस्तान भेज कर शाह शूजा को वापस गद्दी दिलाने के लिए तैयार कर लिया।
कुछ सालों बाद महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु हो गई और अंग्रेजों ने सिख साम्राज्य को अपने अधीन कर लिया। इसी के साथ यह हीरा ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा हो जाता है। साल 1852 में महारानी विक्टोरिया को कोहीनूर हीरे की चमक कुछ कम लगती है, तो इसे दोबारा तराशा गया, जिससे वह 186.16 कैरेट से घट कर 105.602 कैरेट का हो गया।
महारानी विक्टोरिया को जब इस हीरे के श्राप के बारे में बताया जाता तो उन्होंने हीरे को ताज में जड़वा कर 1852 में स्वयं पहना। साथ ही यह वसीयत की थी की इस ताज को सदैव महिला ही पहनेगी। यदि कोई पुरुष ब्रिटेन का राजा बनता है तो यह ताज उसकी जगह उसकी पत्नी पहनेगी।
कई इतिहासकारों का मानना है की महिला के द्वारा धारण करने के बावजूद भी इसका असर खत्म नहीं हुआ। ब्रिटेन वर्ष 1850 तक आधी दुनिया पर राज कर रहा था, पर इसके बाद उसके अधीनस्थ देश एक एक करके स्वतंत्र हो गए। अपने पूरे सफर के दौरान एक बार भी कोहिनूर को खरीदा या बेचा नहीं गया।
इसे सिर्फ जीता गया या उपहार में दिया गया। इसलिए इसकी कीमत के बारे में कोई आकलन नहीं है। हालांकि, बताया जाता है कि कोहिनूर की वर्तमान कीमत लगभग 150 हजार करोड़ रुपए से अधिक है।