शशांक शेखर बाजपेई। स्पोर्ट्स इंजरी के नाम से जानी जाने वाली लिगामेंट की चोट पहले सिर्फ खिलाड़ियों को ही होती थी। इसी वजह से इसका नाम स्पोर्ट्स इंजरी पड़ गया। मगर, अब देखने में आ रहा है कि यह परेशानी 10 साल पहले की तुलना में आज करीब 35 से 40 फीसद तक बढ़ गई है। लिगामेंट के टूटने या डैमेज होने की समस्या उन लोगों को भी हो रही है, जिन्होंने कभी कोई खेल नहीं खेला। मगर, इसके बारे में कम ही लोगों और डॉक्टरों को पता होता है।
यूं समझें लिगामेंट को
अधिकांश मामलों में लोग इसे घुटने के दर्द से ही जोड़कर देखते हैं। इस बारे में बीसीसीआई के ऑर्थोस्कोपी सर्जन के असिस्टेंट रूप में काम कर चुके डॉक्टर अभिषेक कलंत्री ने बताया कि लिगामेंट्स, सॉफ्टवेयर की तरह होते हैं और हड्डियां हार्डवेयर की तरह। सॉफ्टवेयर अच्छा होने पर ही हार्डवेयर सही ढंग से काम कर सकता है।
पहले लिगामेंट्स की ज्यादातर समस्या सिर्फ खिलाड़ियों को ही होती थी। लिगामेंट इंजरी के पेशेंट को सही समय पर सही उपचार मिल जाए, तो रिकवरी तेज हो सकती है। अन्यथा कई बार युवाओं के भी जोड़ बदलने की नौबत आ जाती है। अधिकांश मामलों में लोग इसे घुटने के दर्द से ही जोड़कर देखते हैं।
केस स्टडी-1
डीएसपी के पद पर कार्यरत एक अधिकारी के लिगामेंट छह साल से डैमेज थे। उन्हें डर था कि इसकी सर्जरी काफी कॉम्प्लीकेट होगी। चलने, दौड़ने और ऑपरेशन के बाद ड्यूटी ज्वाइन करने में परेशानी होगी। हो सकता है कि इसमें छह से आठ महीने लग जाएं। इस डर से ऑपरेशन नहीं करा रहे थे।
मगर, जब डॉक्टरों ने उन्हें सलाह दी कि वे इसके ऑपरेशन को देख लें और मरीजों से बात करलें, तो वह तैयार हो गए। एक छोटा सा छेद करके सर्जरी हो गई और दूसरे दिन ही अस्पताल से उनकी छुट्टी कर दी गई। इसके चौथे दिन से वह न सिर्फ चलने-फिरने लगे, बल्कि दौड़ने में समर्थ हो गए।
केस स्टडी-2
एक बैंकर रोज सुबह चार-पांच किमी की दौड़ा करते थे। एक दिन एक्सीडेंट के कारण उनका घुटना लॉक हो गया और वे चलने फिरने में असमर्थ हो गए। अस्पताल में ऑर्थोपैडिक सर्जन को लग रहा था कि उनका घुटने की हड्डी टूट गई है और जोड़ खिसक गया है। उन्हें लगा कि वे ऑपरेशन करके घुटने के जोड़ को डिफ्यूज कर देंगे।
मगर, उन्होंने ऑपरेशन से पहले स्पोर्ट्स इंजरी स्पेशलिस्ट कलंत्री से सलाह ही। इसके बाद मरीज का एमआरआई कराया गया, तो पता चला कि घुटने में मौजूद छह लिगामेंट में से चार डैमेज थे। तब डॉक्टरों ने लिगामेंट का रीकंस्ट्रक्शन कर जोड़ को बिठाने का फैसला किया। दो घंटे में सर्जरी हो गई और तीसरे दिन से वह बैंकर वॉकर के सहारे चलने लगे। करीब एक महीने के बाद वह पहले की तरह दौड़ने लगे।
कलंत्री ने बताया कि हर व्यक्ति की रिकवरी का समय अलग-अलग होता है। कोई व्यक्ति दूसरे दिन से ही दौड़ने लगता है, तो किसी को हफ्ते-10 दिन का समय लग सकता है।
आम लोगों को क्यों हो रही है परेशानी
पहले की तुलना में अब भाग-दौड़ भरी लाइफ स्टाइल के चलते आम लोगों के लिगामेंट्स जल्दी डेमेज हो जाते हैं। इनके ट्रीटमेंट में और सर्जरी के बाद तेजी से रिकवरी के लिए फिजियोथेरेपिस्ट की भूमिका अहम है।
मध्य भारत से सबसे अनुभवी स्पोर्ट्स इंज्यूरी एक्सपर्ट और लिगामेंट सर्जन कलंत्री ने बताया कि लिगामेंट की सामान्य चोट का उपचार फिजियो से किया जा सकता है। मगर, क्रिटिकल डेमेज होने पर अर्थ्रोस्कोपी सर्जरी जरुरी होती है। लिगामेंट इंज्यूरी के पेशेंट को सही समय पर सही उपचार मिल जाए, तो रिकवरी तेज हो सकती है।
कैसे होती ही सर्जरी
अर्थ्रोस्कोपी को की-होल सर्जरी और पेनलेस सर्जरी भी कहते है। ये बगैर चीरे की सर्जरी है। इसमें दूरबीन से देखकर या तो लिगामेंट का इलाज कर दिया जाता है या नए लिगामेंट बना दिए जाते हैं। सर्जरी के अगले ही दिन पेशेंट अस्पताल से डिस्चार्ज होकर चलना शुरू कर देता है।