महात्मा गांधी नेशनल रुरल एम्पलॉयमेंट गारंटी एक्ट (मनरेगा) में 40000 करोड़ रुपए के अतिरिक्त आवंटन के बाद राज्य सरकारें अब क्वारेंटाइन कैम्प में Migrant Labourers मजदूरों को Job Cards प्रदान कर रही हैं। राज्य सरकारें इस अतिरिक्त फंड का तुरंत उपयोग करना चाहती हैं।
विभिन्न राज्यों ने Migrant Labourers मजूदरों के लिए 14 दिनों के अनिवार्य क्वारेंटाइन शिविर आयोजित किए हैं। राज्यों ने इन मजदूरों को Job Vards प्रदान करने की प्रक्रिया शुरू कर दी जिसका उपयोग वे अपने गांव पहुंचते ही कर सकते हैं। राजस्थान के ग्रामीण विकास मंत्री सचिन पायलट ने कहा, 'जब तक एक प्रवासी मजदूर क्वारेंटाइन सेंटर में समय बिता रहा है उसी दौरान हम उसे जॉब कॉर्ड जारी कर रहे हैं। हमने पहचान पत्र की शर्त को शिथिल किया है क्योंकि वो उनके गांव में छूटा हुआ हो सकता है। यहां तक की जॉब कार्ड के लिए स्व-सत्यापित पत्र भी दिया जा सकता है। हमने एक महीने से भी कम समय में पहले कभी इतने जॉब कार्ड जारी नहीं किए हैं।'
झारखंड भी इसी मॉडल का अनुसरण कर रहा है। राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम ने कहा, 'हमने लगभग 5 लाख प्रवासियों को जॉब कार्ड प्रदान किए हैं। हम अभी और कार्ड प्रदान करेंगे। इसमें एक समस्या यह है कि वेतन मिलने में देरी होती है। हम वेतन प्रदान करने की प्रक्रिया में सुधार पर नजर रखे हुए हैं।'
राज्यों द्वारा जारी नए दिशानिर्देशों के बावजूद रोजगार के दिनों को दोगुना करने की मांग बनी हुई है। वर्तमान में मनरेगा (MGNREGA) में 100 दिनों की गारंटीकृत रोजगार प्रदान करता है। इनमें से राज्य सरकार 50 दिन और केंद्र सरकार बाकी के 50 दिनों का खर्चा वहन करती है। यदि कोई राज्य 100 दिनों की संख्या को बढ़ाना चाहता है तो उसे बढ़े हुए पूरे खर्चे को उसे वहन करना होगा।
छत्तीसगढ़ के ग्रामीण विकास मंत्री टीएस सिंहदेव ने कहा, 'सभी राज्यों में लॉकडाउन की वजह से गंभीर राजस्व संकट है। इसके चलते अतिरिक्त खर्च वहन करना हमारे लिए मुश्किल है। हम चाहेंगे कि केंद्र गारंटी वाले दिनों की संख्या बढ़ाकर 300 कर दे।'
झारखंड में 10 लाख जॉब कार्ड तैयार:
झारखंड सरकार ने प्रवासी मजदूरों के लिए 10 लाख जॉब कार्ड तैयार कर लिए हैं। मनरेगा के तहत झारखंड में करीब 49 लाख परिवार जॉब कार्ड होल्डर हैं। एक्टिव जॉब कार्ड 22 लाख परिवारों के पास है और एक्टिव मजदूरों की संख्या करीब 29 लाख है। इस राज्य में हर साल औसतन 18 से 19 लाख लोग मनरेगा के तहत काम कर रहे हैं।