नेताजी ने पिता की इच्छा पर पास की आईसीएस, मां की राय के बाद छोड़ी
सुभाष चंद्र बोस के पिता जानकीनाथ बोस की इच्छा थी कि सुभाष आईसीएस बनें। एक ही प्रयास में उन्होंने इसे पास किया था।
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Publish Date: Fri, 10 Apr 2015 01:18:57 PM (IST)
Updated Date: Sat, 11 Apr 2015 11:52:25 AM (IST)

नई दिल्ली। सुभाष चंद्र बोस के पिता जानकीनाथ बोस की इच्छा थी कि सुभाष आईसीएस बनें। यह उस जमाने की सबसे कठिन परीक्षा होती थी। सुभाष की आयु को देखते हुए केवल एक ही बार में यह परीक्षा पास करनी थी। उन्होंने परीक्षा देने या न देने के बारे में अन्तिम फैसला करने के लिए पिता से 24 घंटे का समय मांगा। सारी रात इसी पशोपेश में गुजर गई कि क्या किया जाए।
आखिर उन्होंने परीक्षा देने का फैसला किया और 15 सितम्बर 1919 को इंग्लैंड चले गए। परीक्षा की तैयारी के लिए लंदन के किसी स्कूल में दाखिला न मिलने पर सुभाष ने किसी तरह किट्स विलियम हाल में मानसिक एवं नैतिक विज्ञान की ऑनर्स की परीक्षा का अध्ययन करने के लिए उन्हें दाखिला मिल गया। इससे उनके रहने व खाने की समस्या हल हो गई।
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वहां दाखिला लेना तो बहाना था, असली मकसद तो आईसीएस में पास होकर दिखाना था। उन्होंने 1920 में चौथा स्थान प्राप्त करते हुए आईसीएस की परीक्षा पास कर ली। इसके बाद सुभाष ने अपने बड़े भाई शरतचन्द्र बोस को पत्र लिखा। पूछा कि उनके दिलो-दिमाग पर स्वामी विवेकानन्द और महर्षि अरविन्द घोष के आदर्शों ने कब्जा कर रखा है। ऐसे में आईसीएस बनकर वह अंग्रेजों की गुलामी कैसे कर पाएंगे?
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इसके जवाब में उनकी मां प्रभावती का पत्र मिला, जिसमें लिखा था कि पिता और परिवार के लोग या अन्य कोई कुछ भी कहे उन्हें अपने बेटे के इस फैसले पर गर्व है। 22 अप्रैल 1921 को भारत सचिव ईएस मान्टेग्यू को आईसीएस से त्यागपत्र देने का पत्र लिखा। बाद में वह जून 1921 में मानसिक एवं नैतिक विज्ञान में ऑनर्स की डिग्री के साथ स्वदेश वापस लौट आए और स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े।