
डिजिटल डेस्क: अरावली पर्वत श्रृंखला से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए सोमवार, 29 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court on Aravalli Hills and Ranges) ने पिछले महीने दिए गए अपने ही आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी। यह आदेश अरावली की नई परिभाषा से संबंधित था, जिसे लेकर पर्यावरणविदों और वैज्ञानिकों ने कड़ी आपत्ति जताई थी। उनका आरोप था कि इससे इस नाजुक पारिस्थितिकी क्षेत्र के बड़े हिस्से अवैध और अनियंत्रित खनन के लिए खोल दिए जा सकते हैं।
मामले की सुनवाई CJI सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने की। बेंच ने कहा कि समिति की सिफारिशों और न्यायालय के निर्देशों को फिलहाल स्थगित रखना आवश्यक है। यह स्थगन तब तक लागू रहेगा, जब तक एक नई समिति का गठन नहीं हो जाता।
सुनवाई के बाद SC ने केंद्र सरकार और चार संबंधित राज्यों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। इसके साथ ही अदालत ने विशेषज्ञों की एक नई समिति गठित करने का निर्देश दिया और मामले की अगली सुनवाई की तारीख 21 जनवरी तय की।
यह विवाद तब शुरू हुआ जब केंद्र सरकार ने अरावली की एक नई परिभाषा अधिसूचित की। कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों का कहना था कि यह परिभाषा बिना पर्याप्त वैज्ञानिक मूल्यांकन और सार्वजनिक परामर्श के तैयार की गई है। आशंका जताई गई थी कि इसके कारण हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में अरावली के बड़े क्षेत्र खनन गतिविधियों के दायरे में आ सकते हैं।
STORY | Definition of Aravalli hills and ranges: SC keeps in abeyance its November 20 directions
The Supreme Court kept in abeyance the directions in its November 20 verdict that had accepted a uniform definition of the Aravalli hills and ranges.
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— Press Trust of India (@PTI_News) December 29, 2025
गौरतलब है कि इसी वर्ष नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि क्षेत्र में किसी भी नई खनन गतिविधि की अनुमति देने से पहले सतत खनन को लेकर एक व्यापक योजना तैयार की जाए। मौजूदा सुनवाई में केंद्र की ओर से सॉलिसिटर-जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि अदालत ने पिछले महीने उस योजना को स्वीकार कर लिया था।
हालांकि, CJI ने इस दावे से असहमति जताई। उन्होंने कहा कि समिति की रिपोर्ट और अदालत की टिप्पणियों की गलत व्याख्या की जा रही है। सीजेआई के अनुसार, कार्यान्वयन से पहले एक निष्पक्ष, तटस्थ और स्वतंत्र विशेषज्ञ की राय लेना आवश्यक है।
CJI ने यह भी कहा कि स्पष्ट दिशा-निर्देश देने के लिए यह कदम जरूरी है और यह तय किया जाना चाहिए कि नई परिभाषा कहीं गैर-अरावली क्षेत्रों के दायरे को अनुचित रूप से तो नहीं बढ़ा रही है, जिससे अनियमित खनन को बढ़ावा मिल सकता है।
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