Uttarakhand Mountains Break: आखिर क्यों दरक रहे उत्तराखंड के पहाड़, सिर्फ भूगर्भीय प्रक्रिया या कोई बड़ा खतरा
Uttarakhand Mountains Break उत्तराखंड के चमोली या अन्य जिलों में लगातार जो पहाड़ों के टूटने का क्रम जारी है, उसके पीछे दरअसल मानवीय गतिविधियां ही
By Sandeep Chourey
Edited By: Sandeep Chourey
Publish Date: Thu, 04 May 2023 11:17:31 AM (IST)
Updated Date: Thu, 04 May 2023 11:17:47 AM (IST)

Uttarakhand Mountains Break। बीते कुछ वर्षों में हम अक्सर उत्तराखंड के पहाड़ों के दरकने, भयावह बाढ़ आने या किसी बड़ी प्राकृतिक आपदा के बारे में सुनने आ रहे हैं। बीते एक दशक में उत्तराखंड में पहाड़ों के टूटने की घटना अचानक बढ़ गई है और अब हाल ही में जोशीमठ जैसे प्रमुख धार्मिक स्थल के धंसने की खबर ने सभी को चिंता में ला दिया था।
उत्तराखंड में टूटा था 550 मीटर चौड़ा पहाड़
फरवरी 2021 में उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्लेशियर टूटने के बाद भारी तबाही हुई थी और इस त्रासदी में कई लोगों की जान चली गई थी। तब ग्लेशियर टूटने के कारण तपोवन के पास एक टनल में कई मजदूर फंस गए थे। वहीं कुछ पर्यावरणविदों का कहना है कि साल 2021 में चमोली जिले में रांति पहाड़ का 550 मीटर चौड़ा हिस्सा टूट गया था इसके चलते ही तपोवन घाटी में काफी तबाही हुई।
पहाड़ों का टूटना सामान्य व प्राकृतिक प्रक्रिया
दुनिया भर के पहाड़ों में ऐसी घटनाओं का होना सामान्य और प्राकृतिक बात है। इसमें हैरान नहीं होना चाहिए। धरती के दूरदराज के इलाकों में लगातार पर्वतों के टूटने की प्रक्रिया चलती रहती है लेकिन बीते कुछ सालों से इस प्रक्रिया में काफी तेजी आई है।
प्राकृतिक तौर पर पहाड़ टूटने के ये तीन कारण
चट्टानें नहीं सह पाती बर्फ का वजन
पहाड़ की चट्टानें जब सैकड़ों सालों तक बर्फ में दबी रहती है तो कमजोर होती जाती है। लेकिन जब ग्लोबल वार्मिंग के कारण बर्फ पिघलना शुरू होता है तो चट्टानों पर बर्फ का वजन असंतुलित हो जाता है, इस कारण पहाड़ का वह हिस्सा टूटकर अलग हो जाता है।
हवा का कटाव
पहाड़ी इलाकों में हवाएं भी काफी तेज चलती है और सैकड़ों सालों में हवा के तेज थपेड़ों के कारण भी चट्टानें कमजोर होती जाती है और पहाड़ की चट्टान अंदर से धीरे-धीरे कमजोर होती जाती है और इस कारण से पहाड़ टूटने लगते हैं।
प्राकृतिक भूगर्भीय घटनाएं या कटाव
पहाड़ों में कमजोर करने में भूगर्भीय हलचल भी अहम भूमिका निभाती है। अब हुए कई शोध में पता चला है कि हिमालय पर्वत की ऊंचाई लगातार बढ़ते जा रही हैं और उत्तर भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में लगातार ही भूगर्भीय हलचल होती रहती है, जिसके कारण पहाड़ों की चट्टानें दरकने लगती है।
इस कारण टूटते हैं पहाड़
उत्तराखंड में पहाड़ों के टूटने या गिरने के ये तो प्राकृतिक कारण थे, लेकिन बीते एक दशक में पहाड़ी इलाकों में मानवीय गतिविधि बढ़ने के कारण भी पहाड़ों के टूटने की प्रक्रिया में तेजी आई है। पर्यावरणविदों के मुताबिक लगातार तेज हवा, धूप, बारिश, भूगर्भीय हलचल के कारण पहाड़ों में जो दरारें बनने लगती है, उनमें रॉक फॉरमेशन या सेडिमेंट फारमेशन बनने लगता है और एक समय ऐसा आता है जब पहाड़ टूट जाता है।
रॉक फॉरमेशन या सेडिमेंट फारमेशन को छेड़ रहा इंसान
उत्तराखंड के चमोली या अन्य जिलों में लगातार जो पहाड़ों के टूटने का क्रम जारी है, उसके पीछे दरअसल मानवीय गतिविधियां ही जिम्मेदार है। पहाड़ी इलाकों में लगातार हो रहे निर्माण कार्यों, विशाल ड्रिल मशीन चलाने व खनन करने के लिए पहाड़ों की चट्टानों की बीच में स्थित रॉक फॉरमेशन या सेडिमेंट फारमेशन लगातार कमजोर हो रहा है। एक सीमा के बाद यह तनाव झेल नहीं पाता है और पहाड़ टूट कर गिर जाता है। निर्जन इलाकों में इंसान जैसे जैसे घुसेगा, वैसे वैसे ऐसी आपदाओं में बढ़ोतरी होती जाएगी।