World Mental Health Day 2020 : आज सारी दुनिया वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे मना रही है। हमें पता है कि कोविड महामारी ने किस तरह लोगों की जीवन में परेशानियां खड़ी कर दी है। एक तरफ तो हमें ये डर है कि हम इस बीमारी की चपेट में ना आ जाये और दूसरी तरफ जिंदगी को फिर से सामान्य करना। कोरोना संक्रमित होने के डर से डिप्रेशन, घबराहट व बेचैनी से जुड़े मरीजों की संख्या में 50 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। टीवी व सोशल मीडिया पर लगातार कोरोना की ख़बरें देख बहुत से लोगों में घबराहट बेचैनी व भविष्य की चिंता ज्यादा बढ़ जाती है। जो लोग डिप्रेशन, घबराहट के पुराने मरीज हैं, उनमें से ज्यादातर की परेशानी और बढ़ गई है।
हम अक्सर बोलते हैं कि फलां व्यक्ति अवसाद में हैं या उसने अवसाद की वजह से ख़ुदकुशी कर ली। लेकिन हमें ये ही नहीं पता कि अवसाद है क्या? इसके होने की वजह क्या है? तो आइये इसपर कुछ चर्चा करते हैं।
अवसाद या डिप्रेशन एक मानसिक रोग है। यह समस्या भारत समेत दुनियाभर में फैली हुई है। ये विश्व भर के लिए चिंता का विषय है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की जनसंख्या के लगभग 6.5 प्रतिशत लोग अवसाद से पीड़ित हैं, जिनमें से लगभग 10.9 लोग प्रति लाख लोगों में इसकी वजह से आत्महत्या कर लेते हैं। और ऐसा मानसिक रोग की सही जानकारी न होने की और मानसिक रोगों को लेकर लोगों में फैली टैबू की वजह से है।
अवसाद क्या है?
अवसाद एक आम और गंभीर मानसिक बीमारी है जो आपके सोचने के तरीके और आपके कार्य करने के तरीके को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। उदासी और आपके द्वारा की जाने वाली आनंद की गतिविधियों में रुचि खो देने के कारण उदासीनता की भावना पैदा करती है। यह अनेक भावनात्मक और शारीरिक समस्याओं को जन्म देता है जिससे आपकी कार्य करने की क्षमता भी प्रभावित होती है। इसमें व्यक्ति अकेलापन, उदास इत्यादि महसूस करता है। इसे हम mood disorder से भी जोड़कर देखते है। इसका असर व्यक्ति की सोच, याददाश्त और व्यवहार इत्यादि पर पड़ता है।
अवसाद के लक्षण क्या हैं?
प्रारम्भ में किसी भी व्यक्ति में अवसाद के लक्षण को पहचाना आसान नहीं होता है क्योंकि इसकी शुरूआत सामान्य तरीके से ही होती है, जो कुछ समय के बाद गंभीर रूप ले लेती है।
मानसिक अवस्था:
चिंता, उदासीनता, असंतोष, खालीपन, अपराध बोध, निराशा, मिजाज बदलते रहना, घबराहट अथवा सुख प्रदान करने वाले कार्यों से भी सुख की अनुभूति ना होना। अवसाद में व्यक्ति परेशान रहता है, या तो वह दुखी रहता है या अपनी ऊर्जा का हृास कर लेता है। यह उसके मानसिक स्तर को प्रभावित करता है ऐसी स्थिति में व्यक्ति बहुत ही तनाव ग्रस्त और परितक्त्या अनुभव करता है। उसके मन में अपने प्रति संशय उन्पन्न होने लगता है जिसके कारण उसकी कार्य क्षमता प्रभावित होती है उसे यह अवस्था और अधिक अवसाद में ले जाती है, इस अवस्था में व्यक्ति में अपना भला बुरा सोचने की क्षमता समाप्त हो जाती है और वह घृणित से घृणित कार्य जैसे आत्महत्या हाथ की नसें काटना, फाँसी लगाना इत्यादि कार्य करके स्वयं को ही हानि पहुँचाता है। वह स्वयं की शक्ति को पहचानने में असमर्थ हो जाता है और सदा लाचारी की स्थिति में रहता है। उसे निराशा सदा घेरे रहती है और अपने आस-पास किसी को पसंद नहीं करता है। अकेलापन उसे अच्छा लगता है। किसी की भी बात भले ही मजाक में कही गई हो उसे तीर की तरह चुभ जाती है हर बात को अपने से जोड़ लेता है और सब पर संदेह करता है। भूतकाल को याद करके या बीती बातों को याद करके अकेले में रोता है। वह अपने मन की बात किसी से नही बताता क्योंकि उसे अपने परम हितैशियों पर भी विश्वास नहीं होता न ही ईश्वर पर, वह हर दम अपनी परिस्थिति के लिए उन्हें कोसता रहता है। कुछ मरीज वाचाल होते हैं क्रोध व्यक्त करते हैं चिड़चिड़ापन दिखाते हैं अत्यधिक गुस्सा, नफरत प्रगट करते हैं और कुछ अन्तर्मुखी होते हैं उनके लिए अवसाद बेहद गम्भीर स्थिति उत्पन्न कर देता है, एकांकी जीवन शैली को अपनाकर वे गहन मौन में चले जाते हैं और यह अवस्था उनकी हृदय गति को बिलकुल कम कर देती है जिससे कभी-कभी सोते-सोते उनकी मृत्यु भी हो सकती है। कुछ अवसादग्रस्त व्यक्ति जो दिन में काम करते हैं व्यस्त होते हैं, तब तक अवसाद की स्थिति से दूर रहते हैं किंतु जैसे ही वे अकेले हो जाते हैं फिर वे उसी भूतकाल में डूब जाते हैं, या भविष्य की चिंता करते हैं। बहुत ही कम समय के लिये वह वर्तमान पलों का आनन्द ले पाते हैं।
नींद:
एक व्यस्क को 7-8 घंटे की नींद की आवश्यकता है किंतु अवसाद में व्यक्ति अपनी निद्रा का लाभ नहीं ले पाता। उसकी नींद सुबह बहुत जल्दी खुल जाती है या वह अनिद्रा का शिकार हो जाता है। नींद के बाद भी उसे थकावट और आलस्य महसूस होत है। कुछ मरीजों में अत्यधिक नींद भी पाई गई है पर उसमें भी वह थका हुआ ही उठता है। व्यक्ति खुद को तरोताजा महसूस नहीं कर पाता। वह हमेशा थकान और बेचैनी का अनुभव करता है।
विशेष शारीरिक लक्षण
• नींद और भूख की अधिकता। कार्बोहाइड्रेट क्रेविंग (यानि जंक फूड खाने की तीव्र इच्छा जैसे पीज्जा, पेस्ट्री, बर्गर आदि)
• साइकोमोटर रिटार्डेशन:- इसमें लीडेन पैरालिसिस (धीमा लकवा) भी देखा जाता है। शरीर एक लकड़ी के लट्ठे की तरह प्रतीत होता है।
• कमज़ोरी महसूस होना- किसी भी मानसिक रोग की शुरूआत शारीरिक क्षमता से होती है, जिसका मतलब है कि उसके लक्षण सबसे पहले मानव-शरीर पर नज़र आते हैं। कब्ज, सर दर्द, वजन गिरना भी अवसाद के लक्षण हो सकते हैं।
अवसाद के कारण:
जैविक, आनुवांशिक, मनोसामाजिक, जैव रासायनिक असंतुलन के कारण अवसाद हो सकता है। यदि किसी शख्स के परिवार में अन्य सदस्य डिप्रेशन से पीड़ित है तो उसे भी यह बीमारी हो सकती है।अवसाद के भौतिक कारण भी अनेक हैं जैसे कुपोषण, आनुवांशिकता (Hereditary) हॉर्मोन, मौसम, तनाव, बीमारी, नशा, अप्रिय स्थितियों में लंबे समय तक रहना, पीठ में तकलीफ आदि प्रमुख कारण हैं। 90% अवसाद के मरीज नींद की समस्या से ग्रस्त रहते हैं। अपने ढंग से न जी पाना और बहुत अधिक महत्वकांक्षी होना जिससे इच्छाओं की पूर्ति न हो पाना अवसाद को जन्म देता है। कोई हादसा या प्रियजन से बिछड़ जाना भी डिप्रेशन को जन्म दे सकता है।
एक बड़ा कारण अपने समाज में यह भी है, कि लोग क्या कहेंगे। हमारे मन से इस गहरी परत ने ना जाने कितने मनोविकारों को जन्म दिया है। अपना जीवन साथी, अपनी जीविका, करियर अपनी पसंद से ना चुन पाना एक बड़ा कारण है। इसका असर हमारी ज़िदगी के साथ-साथ मानसिक सेहत पर भी पड़ता है, जिसका परिणाम काफी सारी मानसिक बीमारियों के रूप में सामने आता है। ऐसे ही बीमारियों में अवसाद या डिप्रेशन भी शामिल है, जिससे निकलने के लिए मनोवैज्ञानिक का सहारा लेना पड़ता है।
अवसाद (डिप्रेशन) के प्रकार:
1. मेजर डिप्रेशन:
इस स्थिति में व्यक्ति का व्यवहार बदलता रहता है। यह व्यक्ति की दैनिक गतिविधियों और व्यक्तिगत सम्बन्धों पर भी प्रभाव डालता है।
2. बाई पोलर डिसॉर्डर:
इसे मैनिक डिप्रेशन भी कहते हैं। चिड़चिड़ापन, ग़ुस्सा, मतिभ्रम जैसी स्थिति इनमे पाई जाती है। एकदम निराश फिर अत्यधिक ख़ुश होना इसके प्रमुख लक्षण है।
3. सायकलोथमिक डिसॉर्डर:
इसके लक्षण सूक्ष्म से लगते हैं। इसमें माइल्ड डिप्रेशन और ह्यपोमानिया देखा जाता है।
4. डिस्थीमिक डिसऑर्डर:
इसमें मरीज़ को दो वर्ष या उससे अधिक समय तक डिप्रेशन रहता है। वह अपने आप को अस्वस्थ भी महसूस करता है तथा दिनचर्या में भी कठिनाई आने लगती है।
5. पोस्टमार्टम डिप्रेशन:
पोस्टपार्टम डिप्रेशन एक गम्भीर समस्या है जो बच्चे के जन्म के कुछ महीनो बाद माँ को हो सकता है। गर्भपात से भी महिला इस स्थिति में चली जा सकती है।
6. सीकोटिक डिप्रेशन:
यह एक गम्भीर समस्या है, इसमें लोग अन्य लक्षणों के साथ मतिभ्रम, तर्कहीन विचार, ऐसी चीज़ें देखना सुनना जो नहीं हैं के शिकार हो जाते हैं।
7. अनाक्लिटिक डिप्रेशन (Analectic depression):
यह नवजात शिशु में पाया गया है। इसमें बच्चा किन्हीं वजहों से अपनी माँ से अलग होता है। माँ का प्यार ना मिलने से शिशु डिप्रेशन का शिकार हो जाता है।
8. एटिपिकल डिप्रेशन (Atypical depression):
ये युवाओं में पाया जाता है। इन मरीजों में कार्बोहाड्रेट क्रेविंग भी पायी जाती है।
अवसाद का इलाज:
जैसे ही किसी व्यक्ति के अवसाद से पीड़ित होने की पुष्टि हो हमें उनका इलाज शुरू कर देना चाहिए। ऐसा करने से उसे आने वाले खतरों से बचाया जा सकता है।
• दवा लेना- डिप्रेशन का इलाज करने का सबसे आसान तरीका दवाई लेना है।ये दवाई दिमाग की मांसपेशियों को शांत करके इससे पीड़ित लोगों को ठीक होने में सहायता करती है।
• साइकोथेरेपी- अवसाद का इलाज साइकोथेरेपी के द्वारा भी संभव है। इस थेरेपी में लोगों के स्वभाविक, सामाजिक वातावरण इत्यादि को मॉनिटर किया जाता है और इसके आधार उसका इलाज करने की कोशिश की जाती है।
• लाइट थेरेपी कराना- अवसाद का इलाज लाइट थेरेपी के द्वारा भी किया जाता है। इसमें अवसाद से ग्रसित लोगों को लाइट डाइवायस के पास बैठाकर उसके मस्तिष्क पर लाइट मारी जाती है, ताकि उसके मस्तिष्क के अंदरूनी स्थिति की जांच की जा सके।
• व्यायाम/योग करना– डिप्रेशन का इलाज एक्सराइज़ और योग के द्वारा भी किया जा सकता है। इसमें दिमाग संबंधी एक्सराइज़ शामिल होती हैं, जिससे मस्तिष्क की क्षमता बढ़ती है।
• नशीले पदार्थों का परहेज़ करना- कई बार,डॉक्टर इस मानसिक बीमारी से पीड़ित लोगों को नशीले पदार्थों का परहेज़ करनी की सलाह देते हैं।
इस प्रकार, इस तरह की चीज़ों से दूरी बनाना भी अवसाद को ठीक करने में सहायक साबित हो सकता है।
अवसाद के संभावित खतरे क्या हैं?
यदि अवसाद का इलाज न किया जाए तो यह कुछ समय के बाद गंभीर रूप ले सकती है, जो संभावित जोखिमों का कारण बन सकता है।
इस प्रकार, डिप्रेशन से पीड़ित लोगों को इन 5 जोखिमों का सामना करना पड़ सकता है-
1.नशीले पदार्थों का आदी होना- यदि अवसाद का इलाज न किया जाए तो इससे पीड़ित व्यक्ति नशीले पदार्थों का आदी हो सकता है। यह स्थिति उसके साथ-साथ उसके परिवार के सदस्यों पर भी पड़ता है और उनकी ज़िदगियाँ खराब हो जाती हैं।
2.रिश्तों में खटास का बढ़ना- अवसाद का लंबे समय तक लाइलाज रहने पर लोगों के रिश्ते खराब हो सकते हैं। इसकी वजह से उनके रिश्तों में खटास बढ़ सकती है, जिनका घातक परिणाम निकल सकता है।
3.दिल का दौरा का खतरा बढ़ना- डिप्रेशन का असर मानव शरीर के अन्य अंगों पर भी पड़ता है।
इसकी वजह से उन्हें दिल का दौरा पड़ने का खतरा भी बढ़ सकता है।
4.नींद न आना- अक्सर, इस समस्या से पीड़ित लोग नींद न आने की शिकायत करते हैं।
इस प्रकार, अवसाद के साइड-इफेक्ट्स में नींद न आना भी शामिल है।
5.आत्महत्या करना- अवसाद का गंभीर जोखिम आत्महत्या करना है।
इस प्रकार, अवसाद किसी भी व्यक्ति के लिए जानलेवा साबित हो सकता है।
अवसाद की रोकथाम कैसे करें?
अवसाद या डिप्रेशन के मरीज़ दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं, जिन्हें काफी सारी परेशानियों से गुजरना पड़ता है। इस समस्या का असर इस बीमारी से पीड़ित लोगों के साथ-साथ उनके परिवार वालों की जीवन पर भी पड़ता है। इसके बावजूद राहत की बात यह है कि थोड़ी सावधानी बरतकर डिप्रेशन की रोकथाम की जा सकती है। यदि कोई व्यक्ति निम्नलिखित बातों का पालन करे, तो वह डिप्रेशन की रोकथाम आसानी से कर सकता है-
• स्ट्रेस मेनेज करना- चूंकि, डिप्रेशन टेंशन का रूप होता है, इसलिए इसकी रोकथाम के लिए स्ट्रेस मेनेज करना लाभकारी उपाय साबित हो सकता है।
• भरपूर नींद लेना- यदि कोई व्यक्ति भरपूर नींद (6-8 घंटे) लेता है, तो उसे अवसाद होने की संभावना काफी कम होती है। इस प्रकार, अवसाद से बचने का कारगर उपाय भरपूर नींद लेना होता है।
• एक्सराइज़ करना- डिप्रेशन से बचने एक्सराइज़ करना बेहतर विकल्प साबित हो सकता है क्योंकि एक्सराइज़ का असर लोगों की शारीरिक सेहत के साथ-साथ मानसिक सेहत पर भी पड़ता है।
• हेल्थी फूड खाना- हम सभी लोगों को अपने खान-पान का विशेष ध्यान रखना चाहिए क्योंकि यह हमें अवसाद जैसी गंभीर बीमारियों से बचने में सहायता करता है।
• नियमित रूप से हेल्थचेकअप कराना- यह सबसे महत्वपूर्ण चीज़ है जिसका पालन सभी लोगों को करना चाहिए। यदि हम नियमित रूप से हेल्थचेकअप कराएं तो हम संभावित बीमारी के लक्षणों का पता समय रहते लगा सकते हैं और इसके साथ में हम अपना इलाज सही तरीके से करा सकते हैं।
•मनोवैज्ञानिक से संपर्क करना- यदि किसी व्यक्ति को अपने स्वभाव में अचानक बदलाव नज़र आता है, तो उसे बिना देरी किए मनोवैज्ञानिक से मिलना चाहिए।
ऐसी स्थिति में हम सही तरीके से इलाज करवाकर बेहतर ज़िदगी जी सकते हैं। हालांकि, यह काफी दुख की बात है कि हमारी नज़र में मानसिक रोग और इससे पीड़ित लोगों को लेकर नज़रिया ठीक नहीं है। यह चीज़ अवसाद या डिप्रेशन को लेकर भी देखने को मिलती है, जब कोई व्यक्ति हमसे खुद के इससे पीड़ित होने की बात करता है, तो हम इस बात को नज़रअंदाज़ करते हुए यही सोचते हैं कि यह व्यक्ति डिप्रेशट कैसे हो सकता है। हो सकता है कि कुछ लोग इस बात को स्वीकार न करें लेकिन सच हमेशा कड़वा होता है और यही हमारे समाज या हमारा सच है।
इसके विपरीत, दुनिया भर में डिप्रेशन को लेकर काफी सारी मुहिम चलाई जा रही हैं, ताकि लोगों में इस बीमारी को लेकर अधिक-से-अधिक जानकारी दी जा सके।
इसी कड़ी में विश्व स्वास्थ संगठन द्वारा हर साल 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ दिवस (world mental health day) के रूप में मनाना भी शामिल है जिसका उद्देश्य लोगों में मानसिक रोगों के प्रति जागरूकता को बढ़ाना है।
(यह आलेख www.naidunia.com के लिए पांडेय निधि ने लिखा है। वे दिल्ली में Therapeutic counselor and Life Coach हैं।)