
डिजिटल डेस्क। मुंबई में बंधक बनाना कोई नई बात नहीं है। शहर में कई बार ऐसी घटनाएं सामने आ चुकी हैं। कभी डबल डेकर बस में तो कभी फ्लैट के अंदर लोगों को बंधक बनाया गया। हाल ही में 30 अक्टूबर को मुंबई के पवई इलाके में उस समय हड़कंप मच गया, जब रोहित आर्य नामक व्यक्ति ने 17 बच्चों को आरए स्टूडियो में बंधक बना लिया।
बच्चों को वेब सीरीज के ऑडिशन के नाम पर बुलाया गया था। करीब तीन घंटे तक चली पुलिस की सूझबूझ भरी कार्रवाई में सभी बच्चों को सुरक्षित बचा लिया गया, जबकि रोहित आर्य की पुलिस मुठभेड़ में मौत हो गई।
मुंबई ने इससे पहले भी कई बार बंधक बनाने की घटनाएं देखी हैं-
मार्च 2010 - अंधेरी वेस्ट में एक रिटायर्ड कस्टम अफसर हरीश मरोलिया ने 14 साल की लड़की हिमानी को अपने फ्लैट में बंधक बना लिया था। सोसाइटी में झगड़े के बाद उसने हवा में फायरिंग की और लड़की को मार डाला। जवाबी कार्रवाई में वह भी पुलिस की गोली से मारा गया।
नवंबर 2008 - बिहार के युवक राहुल राज ने अंधेरी से आ रही एक डबल डेकर बस में यात्रियों को बंधक बना लिया था। कुर्ला के बेल बाजार पर पुलिस ने बस को घेर लिया। राहुल ने एक नोट में लिखा कि वह राज ठाकरे को मारने आया है। मुठभेड़ में उसकी मौत हुई और बंधकों को छुड़ा लिया गया।
नागपुर की असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर शैलनी शर्मा के अनुसार, 'बंधक की स्थिति में सबसे जरूरी बात जान बचाना और नुकसान को न्यूनतम रखना है। बातचीत भी इन्हीं दो लक्ष्यों को ध्यान में रखकर की जाती है।'
शर्मा मुंबई पुलिस की पहली महिला अधिकारी हैं जिन्हें 26/11 हमले के बाद लंदन में होस्टेज सिचुएशन ट्रेनिंग के लिए भेजा गया था। बाद में 2022 में उन्होंने एनएसजी कमांडो को भी ऐसी स्थितियों से निपटने की ट्रेनिंग दी।
उन्होंने बताया कि अगर बातचीत से हल नहीं निकलता, तो ऑपरेशन टीम मौके की जरूरत के हिसाब से एक्शन लेती है। जैसे कि 2010 अंधेरी कांड में हुआ था, जब पुलिस फ्लैट में घुसकर कार्रवाई करने पर मजबूर हुई थी।
