जब संन्यासी और फकीरों के पराक्रम से पस्त हो गए अंग्रेज
देश की रक्षार्थ संन्यासियों ने अपने कमंडल छोड़कर हथियार उठा लिए और ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ जमकर संघर्ष किया।
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Publish Date: Sat, 16 Sep 2017 08:26:24 AM (IST)
Updated Date: Sun, 17 Sep 2017 08:32:26 AM (IST)

देश को अंग्रेजों की गुलामी से ज्यादा कराने के लिए गांधीवादी तरीके के साथ ही क्रांतिकारियों ने अपने अंदाज में लड़ाई लड़ी। मगर जंग-ए-आजादी में कई ऐसे लड़ाके भी रहे, जिन्हें आज कोई याद नहीं करता है। ऐसा ही एक आंदोलन था - संन्यासी और फकीर आंदोलन। यह बंगाल में 1763 से 1773 के बीच हुआ।
इसमें इस कदर भीषण संग्राम हुआ कि संन्यासियों और फकीरों ने अंग्रेजों को पस्त कर दिया। दरअसल, देश पर जब ईस्ट इंडिया कंपनी के माध्यम से अंग्रेजों का कब्जा होना शुरू ही हुआ था, तभी बंगाल के संन्यासी समझ गए थे कि ये भारत की संस्कृति को दूषित कर देंगे। इसलिए देश की रक्षार्थ संन्यासियों ने अपने कमंडल छोड़कर हथियार उठा लिए और जमकर संघर्ष किया।
इसमें बंगाल के फकीरों ने भी संन्यासियों का साथ दिया। तब संन्यासियों का नेतृत्व मोहन गिरि व भवानी पाठक तथा फकीरों का नेतृत्व मजनू शाह ने किया था। ये लोग 50-50 हजार सैनिकों के साथ अंग्रेजी सेना पर आक्रमण करते और उन्हें खदेड़ देते। अंग्रेजों को इस तरह के युद्ध की आदत नहीं थी। इस तरह बंगाल के बड़े इलाके पर संन्यासियों और फकीरों ने 10 साल तक अंग्रेजों के पांव नहीं जमने दिए। अफसोस कि इस आंदोलन को इतिहास में स्थान देने के बजाय भुला दिया गया।