हिन्दू धर्म के अनुसार यमराज मृत्यु के देवता हैं जिनका उल्लेख वेद में भी आता है। विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा से भगवान सूर्य के जुड़वां पुत्र-पुत्री यमराज और यमुना उत्पन्न हुईं। मार्कडेयपुरण में लिखा है कि जब विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा ने अपने पति सूर्य को देखकर भय से आंखें बंद कर ली, तब सूर्य ने क्रुद्ध होकर उसे शाप दिया कि जाओ, तुम्हें जो पुत्र होगा, वह लोगों का प्राण लेने वाला होगा। जब इस पर संज्ञा ने उनकी और चंचल दृष्टि से देखा, तब फिर उन्होंने कहा कि तुम्हें जो कन्या होगी, वह इसी प्रकार चंचलतापूर्वक नदी के रूप में बहा करेगी। पुत्र तो यही यम हुए और कन्या यमी हुई, जो बाद में 'यमुना' के नाम से प्रसिद्ध हुई।
हिंदुओं का विश्वास है कि मनुष्य मरने पर सब से पहले यमलोक में जाता है और वहां यमराज के सामने उपस्थित किया जाता है। वही उसकी शुभ और अशुभ कृत्यों का विचार करके उसे स्वर्ग या नरक में भेजते हैं। ये धर्मपूर्वक विचार करते हैं, इसीलिए 'धर्मराज' भी कहलाते हैं। यह भी माना जाता है कि मृत्यु के समय यम के दूत ही आत्मा को लेने के लिए आते हैं।
ये कहा जाए कि मृत्यु के देवता यमराज की मौत हुई थी तो जानकर आश्चर्य होगा लेकिन इस संबंध में एक पौराणिक कथा प्रचलित है। यूं तो यमराज की मृत्यु को लेकर कथा का भिन्न-भिन्न वर्णन मिलता है। लेकिन यहां इससे जुड़ी एक कथा पढ़ने को मिलेगी।
मान्यता है कि कालंजर में शिवभक्त राजा श्वेत राज्य करते थे। वृद्ध होने पर उन्होंने अपना राजपाठ बेटे को देकर गोदावरी नदी के तट पर एक गुफा में शिवलिंग स्थापित किया और वहां शिव की आराधना में लग गए। वे राजा श्वेत से महामुनि श्वेत बन गए थे। शिव की आराधना में लीन श्वेतमुनि को आभास नहीं हुआ कि उनकी आयु पूरी हो चुकी है। मृत्यु निकट आई तो यमदूतों ने मुनि के प्राण लेने के लिए जब गुफा में प्रवेश किया तो गुफा के द्वार पर ही उनके अंग शिथिल हो गए। वे गुफा के द्वार पर ही खड़े होकर श्वेतमुनि की प्रतीक्षा करने लगे। कहा जाता हैं कि जब यमदूत बलपूर्वक श्वेतमुनि को वहां से ले जाने लगे तो वहां श्वेतमुनि की रक्षा के लिए शिव के गण प्रकट हो गए। भैरव ने यमदूत मुत्युदेव पर डंडे से प्रहार कर उन्हें मार दिया।
इधर जब मृत्यु का समय निकलने लगा तो यमदूतों ने कांपते हुए यमराज के पास जाकर सारा हाल सुनाया। मृत्युदेव की मृत्यु का समाचार सुनकर यमराज क्रोधित हो गए और यमदंड लेकर भैंसे पर सवार होकर अपनी सेना के साथ वहां पहुंचे। यमराज जब बलपूर्वक श्वेतमुनि को ले जाने लगे तब सेनापति कार्तिकेय ने शक्तिअस्त्र यमराज पर छोड़ा जिससे यमराज की भी मृत्यु हो गई।
भगवान सूर्य के पास पुत्र की मृत्यु का समाचार पहुंचा तो सूर्य देव इस समस्या के समाधान के लिए भगवान विष्णु के पास गए। विष्णु ने भगवान शिव की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न करने का सुझाव दिया।
सूर्यदेव की तपस्या से शिव जी प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन देकर वरदान मांगने को कहा। तब सूर्यदेव ने कहा कि हे महादेव, मेरे पुत्र यमराज की मृत्यु के बाद पृथ्वी पर असंतुलन फैल गया है। संतुलन बनाए रखने के लिए यमराज को पुनर्जीवित करने की प्रार्थना की। भगवान शिव ने नंदी से यमुना का जल मंगवाकर यम देव के पार्थिव शरीर पर छिड़के जिससे वे फिर जीवित हो गए।