भारतीय स्वतंत्रता इतिहास में दांडी यात्रा के महत्व से आने वाली पीढि़यां परिचित हो सकें इस उद्देश्य से उसी जगह एक स्मारक बनाया जा रहा है जहां कभी गांधीजी ने नमक कानून तोड़ा था। इस स्मारक में वैसा ही यात्रा पथ बनाने का प्रयास किया गया है जिस पर गांधीजी चले थे और इसमें यात्रा की प्रमुख घटनाऔं का वर्णन भी है ताकि यहां आने वाले स्वतंत्रता आंदोलन और स्वतंत्रता के महत्व से परिचित हो सकें।
यह स्मारक आने वाली पीढि़यों को अन्याय से लड़ने और गांधी विचार से जुड़ने की प्रेरणा देगा। इस स्मारक के विभिन्न पहलुओं के बारे में बता रहे हैं कीर्ति के. त्रिवेदी।
पिछले महीने 12 से 14 फरवरी तक आईआईटी मुंबई परिसर में गांधीजी के नेतृत्व में 80 नमक सत्याग्रहियों की मूर्तियों के समूह का पूर्व प्रदर्शन एक मुख्य आकर्षण था। महात्मा गांधी के साथ खड़े होकर फोटो खिंचवाने वालों का जमावड़ा लगातार बना रहा।
मेक्सिको के पूर्व राष्ट्रपति श्री फॉक्स से लेकर संस्थान के सफाई कर्मचारियों तक सभी इस अभूतपूर्व मौके की याद सहेजने में लगे रहे। दुनियाभर में गांधीजी के स्मारक तो अनेक हैं, लेकिन अपने साथ एक ही जमीन पर खड़े गांधीजी, जिनके पास हर कोई आ सके, और उनकी आंखों से आंखें मिलाकर देखने का अनुभव ले सके- ऐसे स्थल कम ही हैं।
दांडी, गुजरात में रूपायित होने वाला राष्ट्रीय नमक सत्याग्रह स्मारक भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय का ऐसा ही विनम्र प्रयास है जो बहुत सहजता से लोगों को गांधी विचार से जोड़ने का काम करेगा। यह स्मारक एक 15 एकड के भूखंड पर उसी जगह बनाया जाएगा, जहां 6 अप्रैल 1930 की सुबह गांधीजी ने दांडी समुद्रतट से मुट्ठीभर नमक उठाकर ब्रिटिश सरकार के नमक कानून को भंग किया था।
आईआईटी मुंबई की परिकल्पना
इस स्मारक के लिए बनाई उच्च स्तरीय समिति को जब आईआईटी मुंबई की परिकल्पना जंच गई तो संस्थान को 'स्मारक के डिजाइन समन्वयन और कार्यान्वयन" की जिम्मेदारी सौंपी गई। मुझे इस प्रोजेक्ट का नेतृत्व करने का गौरव प्राप्त हुआ।
स्मारक के कलापक्ष को साकार करने के लिए बनाई गई राष्ट्रीय डिजाइन टीम के सदस्यों ने कई कार्यशालाओं में स्मारक के समग्र और विभिन्न खंडों के स्वरूप पर विचार किया। राष्ट्रीय नमक सत्याग्रह स्मारक का स्वरूप कैसा हो, इस पर हमने काफी गहराई से सोचा।
स्मारक दांडी में गांधीजी के नमक कानून भंग करने की घटना का स्मारक नहीं होगा- यह तो शुरू से स्पष्ट था। स्मारक सत्य की असीम शक्ति और सत्याग्रह के विचार की ऊर्जा का हो, उस विधि का हो जिसे गांधीजी ने अपनाकर तबकी दुनिया के सबसे शक्तिशाली साम्राज्य की ताकत को परास्त किया- यह धीरे-धीरे स्पष्ट हुआ।
विचार यह भी था कि प्रेम की तरह सत्य का सत्ता की दमन शक्ति से संघर्ष भी सर्वकालीन है। आने वाली सदियों की पीढ़ियां दांडी के सत्याग्रह स्मारक पर आकर सत्याग्रही बनने का सोचें, तो हम अपने उपक्रम में सफल होंगे।
विनम्र, शाश्वत और प्रकृतिसम्मत
स्मारक को सबसे बड़ा, ऊंचा या भव्य बनाने का कोई प्रयास न हो- यह भी स्पष्ट था। स्मारक स्थल विनम्र, शाश्वत और प्रकृति के नियमों की तरह स्वयंभू शक्ति को दर्शाने वाला हो, यह हमने सोचा। इसलिए बनने वाले स्मारक में केवल एक मार्ग है- सत्य का मार्ग। उस मार्ग चलकर जान देने को तैयार सत्याग्रही हैं। और है कुदरत की शक्ति से पैदा हुआ एक प्रकाशपुंज।
सालों बाद जब स्मारक परिसर में लगाए गए पेड़ पौधे बड़े हो जाएंगे- और वह एक प्राकृतिक स्थल दिखेगा- तो हम चाहते हैं कि वह ऐसा हो जिसे देखकर लगे उसे किसी ने नहीं बनाया- वह तो हमेशा से था। इस विचार के साथ स्मारक का काम शुरू हुआ।
कई शोधकर्मी 1930 के दांडी नमक सत्याग्रह और सत्याग्रहियों के बारे में और जानकारी एकत्र करने में लगे। सभी 80 मूल सत्याग्रहियों के संदर्भ चित्र और उनके बारे में और जानकारी एकत्र करना विस्तृत काम था, जो अभी भी चल रहा है।
नमक सत्याग्रह के दौरान लिए गए छायाचित्रों और चलचित्र के अलावा सत्याग्रहियों के परिवारों से संपर्क करना और यात्रा के पड़ावों पर जाकर संदर्भ सामग्री इकट्ठा करना एक बड़ा काम था। इस जानकारी का उपयोग सत्याग्रहियों की मूर्तियां बनाने और 24 दिन की दांडी यात्रा की मुख्य घटनाओं के भित्ति शिल्प बनाने में हुआ है।
सत्याग्रह विचार की समग्र जानकारी
दांडी का राष्ट्रीय नमक सत्याग्रह स्मारक हर दर्शक पर गहरा प्रभाव छोड़े, उसे सत्याग्रह विचार की शक्ति की समग्र जानकारी दे, और इस विचार की शक्ति को अनुभव करने का वातावरण रचे, ये स्मारक की परिकल्पना और नियोजन के मुख्य ध्येय रहे हैं।
अब जबकि इसका एक महत्वपूर्ण चरण पूरा हो गया है तो यह कहा जा सकता है स्मारक परिसर में कई विशेष आकर्षण होंगे, जो इसे एक जाग्रत स्मारक बनाने में योगदान देंगे और दर्शकों को सत्याग्रहियों का सहयात्री बनाएंगे।
इन आकर्षणों में मुख्य हैं- विवरणात्मक यात्रा-पत्र पर चलकर दांडी यात्रा का अनुभव, गांधीजी के नेतृत्व में 1930 के मूल सत्याग्रहियों के साथ चलने का अनुभव, और सत्याग्रह विचार की शक्ति दर्शाने वाले प्रकाशपुंज के केंद्र में जाकर गांधीजी और सत्याग्रह विचार के विराट और प्रखर रूप की अनुभूति।
सत्याग्रह स्मारक के दर्शन का आरंभ, सैफी विला- जहां गांधीजी दांडी पहुंचकर रुके थे- से शुरू करके एक आधे किलोमीटर लंबे यात्रापथ पर पहुंचने से होगा।
241 मील का यात्रा पथ
यह यात्रा-पथ 241 मील की 24 दिन की दांडी पदयात्रा के मार्ग की छोटी प्रतिकृति के रूप में बनाया जा रहा है। 12 मार्च 1930 की सुबह साबरमती आश्रम, अहमदाबाद से शुरू करके 5 अप्रैल को दांडी पहुंचने की यात्रा की विशिष्ट घटनाओं को 24 भित्ति शिल्पों द्वारा दर्शाया जाएगा। ये शिल्प यात्रा के हर दिन की मुख्य घटनाओं को दिखाएंगे।
यात्रा के निरंतर बढ़ते प्रभाव और 80 से 1 लाख हुई सत्याग्रहियों की बढ़ती संख्या और विशाल स्वरूप को दर्शाने के लिए भित्ति शिल्पों को एक विशिष्ट शैली में बनाया जा रहा है। यात्रा-पत्र के पास एक विशाल झील भी बनाई जा रही है। यात्रा-पथ के अंत में दर्शक गांधीजी के नेतृत्व में 80 सत्याग्रहियों की टोली में शामिल हो सकेंगे, जो सत्याग्रहियों की आदमकद प्रतिमाओं के समूह रूप में स्थापित होंगी।
80 सत्याग्रहियों की प्रतिमाएं देश-विदेश से आमंत्रित शिल्पकारों ने आईआईटी मुंबई में आयोजित दो कार्यशालाओं में बनाई हैं। ये कार्यशालाएं अपने आप में भारत के समकालीन कला विश्व में एक अभूतपूर्व आयोजन मानी जाएंगी। नवंबर और दिसंबर 2013 में 20-20 शिल्पियों की दो कार्यशालाओं में हर शिल्पी ने दो दांडी यात्रियों की पूरे कद की प्रतिमाएं बनाईं।
इस तरह 80 प्रतिमाएं बनाने का विशाल कार्य केवल एक महीने में ही हो गया। जनशक्ति और सामूहिक प्रयास के गांधी विचार से प्रेरित यह काम, महात्मा गांधी और सत्याग्रह विचार को पूरे विश्व के कलाधर्मियों की एक श्रद्धांजलि भी है।
सत्याग्रह की शक्ति का प्रकाश पुंज
स्मारक का सबसे बड़ा आकर्षण हर शाम सूरज ढलने के बाद पिरामिड आकार के एक विशाल प्रकाशपुंज का प्रकट होना रहेगा। इस प्रकाशपुंज के केंद्र में 15 फीट ऊंची गांधीजी की कांस्य प्रतिमा होगी और सभी दर्शक प्रकाशपुंज के केंद्र में जा सकेंगे।
सौर उर्जा से उत्पादित बिजली से सैंकडों एलईडी लैंपों से निकले प्रकाश के किरणपुंजों से प्रकाश पिरामिड हर शाम बनेगा, और अंधेरा बढ़ने के साथ-साथ और दीप्तिमान होता जाएगा। आकाश में ऊंचे उठाए हुए हाथों के आकार के दो स्तंभ 241 फीट ऊपर चमकते हुए एक प्रकाश शिल्प को आधार देंगे। अंधेरा बढ़ने पर और प्रखर होता और अपने प्रकाश को सभी दिशाओं में फैलाता- यह प्रकाश शिल्प सत्याग्रह के विचार की शक्ति का प्रतीक होगा।
राष्ट्रीय स्मारक में लगने वाली सारी ऊर्जा सौर-फलकों से संग्रहित और उत्पादित की जाएगी, ताकि स्मारक आत्मनिर्भरता और स्वावलम्बन का भी प्रतीक बन सके। स्मारक के लिए विशेष रूप से डिजाइन किए गए सौर-वृक्षों का समूह परिसर की झील में स्थापित किया जाएगा।
वार्षिक दांडी यात्रा की परंपरा का आरंभ
6 अप्रैल 2015 को दांडी में राष्ट्रीय नमक सत्याग्रह स्मारक के उद्घाटन से 24 दिन पहले, 12 मार्च 2015 को साबरमती से आमंत्रित पदयात्रियों की एक टोली फिर से दांडी यात्रा पर निकलेगी। 1930 की गांधीजी की दांडी यात्रा के सारे नियम और अनुशासन के साथ, ये पदयात्री मूल दांडी यात्रा के रास्ते 5 अप्रैल को दांडी पहुंचेंगे और उद्घाटन समारोह में भाग लेंगे।
रास्ते के 24 पड़ावों पर पदयात्रियों को गांधी विचार, सत्याग्रह दर्शन और विधि से परिचित कराने के लिए गांधीवादी विचारकों के व्याख्यान, दांडी यात्रा संबंधित चलचित्र, और दांडी सत्याग्रह से प्रेरित सफल सत्याग्रहों की जानकारी दी जाएगी।
इस तरह यह यात्रा गांधी और सत्याग्रह विचार को समझने और स्वयं अनुभव करने की यात्रा भी होगी। प्रथम सत्याग्रह यात्रा में विश्वभर से लगभग 500 पदयात्रियों के भाग की तैयारी की जाएगी, और इस पदयात्रा को हर वर्ष आयोजित करने की परंपरा की शुरुआत भी।
स्वयं नमक बनाने का अनुभव
स्मारक परिसर में सौर उर्जा से चलने वाली बिजली की अंगीठियां लगाई जाएंगी, जिनसे सभी दर्शक खुद समुद्र के खारे पानी को उबालकर दस मिनिट में अपना नमक बना सकें। स्वयं का बनाया यह चम्मचभर नमक ही स्मारक के दर्शन का प्रसाद होगा, और गांधीजी के आह्वान पर 1930 में पूरे भारत में लोगों द्वारा अपना नमक खुद बनाकर नमक कानून तोड़ने की याद ताजा करेगा।
स्मारक के प्रेक्षागृह में आगंतुकों को दांडी नमक सत्याग्रह के भारत को स्वतंत्रता दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान, और उसके बाद हुए 'भारत छोड़ो आंदोलन" से भारत की आजादी तक के घटनाक्रम को दर्शाने वाला एक मल्टीमीडिया प्रस्तुतिकरण देखने को मिलेगा।
इसमें दमनकारी सत्ता की शक्ति से लड़ने के लिए अहिंसक सत्याग्रह के तरीकों को अपनाकर किए सफल संघर्षों का इतिहास भी होगा। अमेरिका के मार्टिन लूथर किंग और दक्षिण अफ्रीका के नेल्सन मंडेला के रंगभेद विरोधी संघर्षों का विवरण भी होगा- जिन जन आंदोलनों की कार्यविधि गांधीजी के सत्याग्रह आंदोलन से प्रेरित थी।
5 अप्रैल 2015 को पूरी तरह तैयार होगा स्मारक
दांडी नमक सत्याग्रह की 75 वीं वर्षगांठ पर वहां एक राष्ट्रीय स्मारक बनाने की घोषणा प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह ने 2005 में की थी। प्रस्ताव को क्रियान्वित करने के लिए भारत सरकार द्वारा गोपालकृष्ण गांधी की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय दांडी स्मारक समिति का गठन किया गया था।
इस समिति ने राष्ट्रीय स्मारक के स्वरूप और उद्देश्यों पर विस्तार से चर्चा करके, सन 2010 में आईआईटी मुंबई को प्रस्तावित स्मारक के सौर उर्जा संबंधित आयामों पर तकनीकी मदद देने के लिए आमंत्रित किया।
बाद में आईआईटी द्वारा सुझाए गए स्मारक के स्वरूप की परिकल्पना के प्रस्ताव को समिति ने सर्व सम्मति से सराहा और स्वीकृत किया, और आईआईटी मुंबई को इस राष्ट्रीय स्मारक के 'डिजाइन समन्वयन और कार्यान्वयन" की जिम्मेदारी सौंपी।
गुजरात विद्यापीठ, अहमदाबाद के कुलपति डॉ. सुदर्शन आयंगर अब इस उच्च स्तरीय समिति के अध्यक्ष हैं। स्मारक का काम 5 अप्रैल 2015 तक पूरा होने का लक्ष्य है। आईआईटी मुंबई के कई विभाग तकनीकी चुनौतियों से भरे इस प्रोजेक्ट के विभिन्ना पहलुओं पर काम कर रहे हैं, इनमें इलेक्ट्रिकल, सिविल, स्ट्रक्चरल, सोलर एनर्जी और आधारभूत संरचना संकाय के आलावा औद्योगिक अभिकल्पन केंद्र का मुख्य योगदान है।
राष्ट्रीय डिजाइन टीम के सदस्यों में भारत के प्रमुख कला और डिजाइन संस्थानों के अध्यापक गण, और कई प्रख्यात शिल्पकार शामिल हैं।
इस स्मारक के अभिकल्पन और क्रियान्वयन में पूरे भारत के कलाकारों का योगदान हो, और यह राष्ट्रीय स्मारक समकालीन भारतीय कला की उत्कृष्टतम कृति हो- यह ध्येय रखा गया है।