रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी के चौक-चौराहों, डिवाइडर और उद्यानों में लगे छातिम के पेड़ अस्थमा, सर्दी-खांसी के कारण बन रहे हैं। मेडिकल साइंस भी इसकी पुष्टि करता है। इसके बावजूद इस पौधों को बड़ी संख्या में लगाया जा रहा है। साइंस कॉलेज मैदान में बनकर तैयार अंतरराष्ट्रीय हॉकी मैदान में चारों तरफ यह पौधा लगाया जा रहा है। ऐसा नहीं है कि वन विभाग इससे बेखबर है। छत्तीसगढ़ वन औषधि बोर्ड को भी पौधे से होने वाले नुकसान की जानकारी है। इसलिए तो बोर्ड के सीआईओ ने 'द स्क्रिप्स रिसर्च इंस्टिट्यूट' (टीएसआरआई) को पत्र लिखा है, जिसमें यह जानकारी मांगी है कि क्या वास्तव में यह पौधा बीमारियां फैला रहा है।
नगर निगम, वन विभाग और निर्माणाधीन नई इमारतों में सौंदर्यीकरण के नाम से छातिम के पेड़ बड़ी संख्या में लगाए जा रहे हैं, क्योंकि इस पौधे के लगाने से जहां नुकसान है तो वहीं विभागीय अफसर फायदे गिना रहे हैं। इनका कहना है कि एक तो यह सुंदर दिखता है, इसे जानवर नहीं खाते, इसलिए इसकी सुरक्षा की कोई चिंता नहीं होती है, इसे पानी का कम आवश्यकता होती है और यह महंगा भी नहीं है। लेकिन कुछ राजधानीवासियों ने 'नईदुनिया' को यह भी बताया कि उनके घर के बाहर पौधा लगा हुआ था, लेकिन जब उसकी वजह से नुकसान की जानकारी मिली तो उसे काट दिया गया है।
पौधे से हो रहीं बीमारियां-
छातिम एक औषधि पौधा है, जिसका इस्तेमाल हर्बल मेडिसिन बनाने में किया जाता है। इसकी महक काफी तेज होती है, इसका औषधि नाम सप्तपर्णी है। लेकिन जानकारों का कहना है कि किसी उद्यान में एक-दो पौधे हैं तो उससे कोई नुकसान नहीं हैं, लेकिन अगर पौधों की संख्या काफी ज्यादा है तो वह उद्यान या फिर आसपास के लोगों को नुकसान पहुंचाएगा। इससे न सिर्फ अस्थमा, बल्कि सर्दी-खांसी के साथ-साथ एलर्जी का खतरा भी बढ़ जाता है। गांवों में यह भी मान्यता है कि पौधे के नीचे अगर गर्भवती महिला बैठ जाए तो उसका गर्भपात हो जाता है। इसलिए इसे शैतान का पौधा, राक्षसी पौधा, इंडियन डेविल ट्री नाम दिए गए हैं।
पराग कण से होती हैं बीमारियां
छातिम में ठंड के मौसम में फूल लगते हैं और फिर इससे पराग कण निकलते हैं, जो समूचे क्षेत्र में फैल जाते हैं और फिर यही पराग कण सर्दी, खांसी, अस्थमा का कारण बनते हैं। अगर पौधा लगा हुआ है तो फूल निकलते ही उस पर नमक-पानी का घोल डाल देना चाहिए। छातिम बंगाल का राजकीय वृक्ष है, लेकिन सावधानी जरूरी है।-पंकज अवधिया, कृषि वैज्ञानिक
राक्षसी पौधा कहा जाता है
छातिम हिमालय का पौधा है, जो औषधि के काम भी आता है, लेकिन इसे इंडियन डेविल ट्री यानी की राक्षसी पेड़ भी कहा जाता है। गांव में तो यह भी धारणाएं हैं कि अगर गर्भवती महिला पेड़ के नीचे बैठती है तो उसका गर्भपात हो जाता है। सिर दर्द, अस्थमा जैसी बीमारियां होती हैं। चिड़िया घोंसला तक नहीं बनाती है। -प्रदीप वर्मा, उद्यानिकी विशेषज्ञ
टीएसआरआई को लिखा है
देखिए, इस पौधे का इस्तेमाल औषधि में होता है। मैंने भी सुना है कि छातिम पौधे से बीमारियां होती हैं, विशेषकर अस्थमा की। इसलिए मैंने टीएसआरआई को पत्र लिखा है। अगर उनके पास इससे संबंधित कोई स्टडी है तो भेजें। यह रिपोर्ट पीसीसीएफ को भेजी जाएगी और फिर वन विभाग निर्णय लेगा कि पौधे लगाने हैं या नहीं। -प्रदीप पंत, सीआईओ, छत्तीसगढ़ वन औषधि बोर्ड
अस्थमा-एलर्जी का कारण है
कोई भी पौधा या पेड़, जिससे पराग कण होते हैं, वह अस्थमा-एलर्जी का कारण बनता है। बसंत ऋतु में सर्वाधिक मरीज आते हैं, जो अस्थमा और एलर्जी से पीड़ित होते हैं, क्योंकि इसी मौसम में इन पौधों से परागकण निकलता है। यह मेडिकल रिसर्च में भी पुष्ट हुआ है। कोशिश करनी चाहिए कि ऐसे पौधे रिहायशी क्षेत्र में न लगाएं। -डॉ. आरके पांडा, अस्थमा रोग विशेषज्ञ