प्रेमविजय पाटिल, धार(मध्यप्रदेश)। कभी मालवा की शान रहा मालवी (ड्यूरम गेहूं) अब ढूंढे नहीं मिल रहा। प्रोटीन और पोषण की प्रचुरता, प्राकृतिक आपदाओं से लड़ने की क्षमता, अतिरिक्त खर्च नहीं होने के बावजूद किसानों ने इससे दूरी बना ली है।
पहले जिले में जहां इसका रकबा 40 फीसदी था, घटकर अब 10 से 20 फीसदी रह गया है। दरअसल इस अच्छी क्वालिटी के गेहूं की खरीदी के लिए सरकार ने अलग से व्यवस्था नहीं की है। इसे भी गेहूं की अन्य वैराइटी के समान भाव ही मिलता है।
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इसके प्रति न तो किसानों में पर्याप्त जागरूकता है और न इसका उपयोग करने वालों में। पूर्व में ड्यूरम गेहूं को एक्सपोर्ट के लिए प्रचारित किया गया था। इसकी पैदावार लेने में अतिरिक्त खर्च न होने और बीज भी सहज सुलभ होने से वैज्ञानिकों की सलाह पर किसानों ने इसे उत्साह से अपनाया।
स्थिति यह हो गई कि जिले में मालवी गेहूं का रकबा 40 फीसदी तक पहुंच गया था। लेकिन शासन ने अच्छी किस्म के इस गेहूं के दाम किसानों को दिलवाने की व्यवस्था नहीं की। आम गेहूं की तरह यह भी समर्थन मूल्य पर ही खरीदा गया।
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जिन किसानों ने बाजार में बेचा उन्हें लाभ हुआ किन्तु बाजार में बेचने के अलग नुकसान होने के कारण किसानों ने धीरे-धीरे इससे दूरी बना ली। फास्ट फूड में उपयोग : दलिया और सूजी के लिए ड्यूरम गेहूं का उपयोग। फास्ट फूड में पास्ता व अन्य खाद्य तैयार होता है।
क्यों घटा रकबा
- ड्यूरम गेहूं के प्रति जागरूकता कम हुई।
- वैज्ञानिकों के स्तर पर प्रयास कम हुए।
- किसानों को सामान्य गेहूं के ही भाव मिले।
- इस श्रेणी के गेहूं की खरीदी की अलग व्यवस्था नहीं।
कई खूबियां होने के बावजूद किसान इस गेहूं के प्रति जागरूक नहीं हैं। रकबे में कमी की यही वजह है। महज 10 प्रतिशत ही रकबा रह गया है। जबकि कभी जिले में 40 प्रतिशत तक रकबा होता था। -डॉ. एके बड़ाया, कृषि विज्ञान केंद्र, धार
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यह है खासियत
गेहूं वैज्ञानिक डॉ. एके सिंह ने बताया कि ड्यूरम, कठिया, मालवी तीनों ही एक ही श्रेणी के गेहूं हैं। इनके नाम अलग-अलग हैं। आजकल पोषण नाम से भी इसे जाना जाता है। गेहूं की इस किस्म में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है।
साथ ही खनिज तत्व भी अधिक होते हैं। इस गेहूं की प्रमुख खासियत यह है कि बारिश और ओलावृष्टि जैसी प्राकृतिक मार भी यह झेल सकता है। गेहूं की बालियां बिखरती नहीं और दाना बाहर नहीं आता। यह इसका प्राकृतिक गुण है।