देशभर में माता के कई ऐतिहासिक और पौराणिक मंदिर विद्यमान है, जिनमें भक्त आस्था और श्रद्धा के साथ पूजा और आराधना करते है। देवी पहाड़ों से लेकर गुफाओं और नदियों के किनारों से लेकर भव्यतम दरबारों में विराजमान है। कहीं पर माता का स्वयं प्राकट्य हुआ है तो कहीं पर माता की शास्त्रोक्त प्राण-प्रतिष्ठा की गई है।
माता के सिद्ध मंदिरों के अलावा माता 52 शक्तिपीठों में विराजमान है। यह 52 शक्तिपीठ प्राचीन सनातन संस्कृति के भारतवर्ष में विद्यमान है। ऐसा ही आदिशक्ति भवानी का पौराणिक और प्राचीन मंदिर देवादिदेव महादेव महाकालेश्वर के नगर उज्जैन में है।
माता सती और शिव को समर्पित है मंदिर-
माता हरसिद्धी की कथा माता सती के पिता द्वारा किए गए उनके पति शिव के अपमान से जुड़ी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एकबार माता सती के पिता दक्षराज ने विराट यज्ञ का भव्य आयोजन किया, जिसमें उन्होंने सभी देवी-देवता व गणमान्य लोगों को आमंत्रित किया, लेकिन इतने बड़े और विराट आयोजन में उन्होंने अपनी बेटी माता सती व दामाद भगवान शिव को नहीं बुलाया, फिर भी माता सती उस यज्ञ उत्सव में शामिल होने पहुंचीं।
माता सती ने देखा कि दक्षराज उनके पति देवाधिदेव महादेव का अपमान कर रहे थे। यह देख वे क्रोधित हो अग्निकुंड में कूद गईं। यह जानकर शिव अत्यंत क्रोधित हो उठे। उन्होंने माता सती का शव लेकर सम्पूर्ण विश्व का भ्रमण शुरू कर दिया और तांडव करने लगे, जिससे सृष्टी के विनाश का खतरा पैदा हो गया।
52 शक्तिपीठों मे है तेरहवां स्थान-
शिवजी की ऐसी दशा देखकर सम्पूर्ण विश्व में हाहाकार मच गया। देवी-देवता व्याकुल होकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे और संकट के निवारण हेतु प्रार्थना करने लगे। तब शिवजी का सती की पार्थिव देह से मोहभंग करने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन-चक्र चलाया ।
चक्र से मां सती के पार्थिव देह के कई टुकड़े हो गये। ऐसा कहा जाता है कि उनमें से 13वां टुकड़ा मां सती की कोहनी के रूप में उज्जैन के इस स्थान पर गिरा था। तब से मां यहां हरसिद्धि मंदिर के रूप में विराजमान हैं। देवी के 52 शक्तिपीठों में देवी हरसिद्धी शक्तिपीठ का तेरहवां स्थान है।
माता रात्रि विश्राम के लिए आती है उज्जैन-
माता हरसिद्धि परमप्रतापी महाराज विक्रमादित्य की आराध्यदेवी थीं। मान्यता है कि माता हरसिद्धि को राजा विक्रमादित्य स्वयं गुजरात से लाये थे। इसलिए माता हरसिद्धि सुबह गुजरात के हरसद गांव स्थित हरसिद्धि मंदिर जाती हैं और रात्रि विश्राम के लिए शाम को उज्जैन स्थित हरसिद्धी मंदिर आती हैं, इसलिए उज्जैन के हरसिद्धी मंदिर में संध्या आरती का विशेष महत्व है।
कहा जाता है कि महाराज विक्रमादित्य ने देवी हरसिद्धी को प्रसन्न करने के लिए ग्यारह बार अपना मस्तक काटकर चढ़ाया था। प्राचीनकाल में माता को ‘मांगल-चाण्डिकी’ के नाम से भी जाना जाता था।
हरसिद्धी शक्तिपीठ ऊर्जा का है अक्षय स्तोत्र-
श्री हरसिद्धि मंदिर पूर्व में महाकाल एवं पश्चिम में रामघाट के बीच में स्थित है उज्जैन का हरसिद्धि मंदिर शक्तिपीठ ऊर्जा का अक्षय स्त्रोत माना जाता है । श्री हरसिद्धि मंदिर के गर्भगृह के सामने सभाग्रह में श्री यन्त्र निर्मित है ।जिसके दर्शन मात्र से सुख-संपदा का आर्शीवाद मिलता है।
मां हरसिद्धी के प्रांगण में चौरासी महादेव मंदिरों में से एक कर्कोटकेश्वर महादेव मंदिर है जहां कालसर्प दोष का निवारण होता है। मंदिर परिसर के चारों दिशाओं में चार प्रवेश द्वार है एवं मुख्य प्रवेश द्वार से प्रवेश करते ही मंदिर परिसर में हरसिद्धि सभाग्रह के सामने दो दीपमालाएँ बनी हुई है। नवरात्रि के अवसर पर रियासतकालीन दीपमालाओं में जब दीप प्रज्जवलित किए जाते हैं तो दिव्य, भव्य और अलौकिक दृश्य की अनुभूति होती है।