मल्टीमीडिया डेस्क। अपनी शहनाई से सबके दिलों में मिठास घोलने वाले मशहूर शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां का आज यानी 21 मार्च को 102वां जन्मदिन है। उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की जिंदगी से जुड़े कई दिलचस्प किस्से हैं। आइए जानते हैं 21 मार्च 1916 को जन्मे उस्ताद के ऐसे ही कुछ रोचक किस्से...
ऐसे पड़ा बिस्मिल्लाह नाम -
उस्ताद बिस्मिल्लाह खां का जन्म बिहार के डुमरांव में 21 मार्च 1916 को एक मुस्लिम परिवार में पैगम्बर खां और मिट्ठन बाई के यहां हुआ था। उस्ताद बिस्मिल्ला खां के नाम के साथ एक दिलचस्प वाकया भी जुड़ा हुआ है। उनका जन्म होने पर उनके दादा रसूल बख्श खां ने उनकी तरफ़ देखते हुए 'बिस्मिल्ला' कहा, जिसका शाब्दिक अर्थ है , श्री गणेश। इसके बाद उनका नाम 'बिस्मिल्ला' ही रख दिया गया। हालांकि, उनका एक और नाम 'कमरूद्दीन' था।
शहनाई को बताते थे अपनी दूसरी बेगम -
उस्ताद का निकाह 16 साल की उम्र में मुग्गन ख़ानम के साथ हुआ जो उनके मामू सादिक अली की दूसरी बेटी थी। उनसे उन्हें 9 संताने हुईं। वे हमेशा एक बेहतर पति साबित हुए। वे अपनी बेगम से बेहद प्यार करते थे, लेकिन शहनाई को भी अपनी दूसरी बेगम कहते थे। 66 लोगों का परिवार था जिसका वे भरण पोषण करते थे और अपने घर को कई बार बिस्मिल्लाह होटल भी कहते थे। लगातार 30-35 सालों तक साधना, छह घंटे का रोज रियाज उनकी दिनचर्या में शामिल था। अलीबख्श मामू के निधन के बाद खां साहब ने अकेले ही 60 साल तक इस साज को बुलंदियों तक पहुंचाया ।
खान का लाल किला से था खास कनेक्शन -
भारत की आजादी और बिस्मिल्लाह की शहनाई के बीच भी बहुत गहरा रिश्ता है। 1947 में आजादी की पूर्व संध्या पर जब लालकिले पर देश का झंडा फहराया जा रहा था तब उनकी शहनाई भी वहां आजादी का संदेश बांट रही थी। तब से लगभग हर साल 15 अगस्त को प्रधानमंत्री के भाषण के बाद बिस्मिल्ला का शहनाई वादन एक प्रथा बन गई। खान ने देश और दुनिया के अलग अलग हिस्सों में अपनी शहनाई की गूंज से लोगों को मोहित किया। अपने जीवन काल में उन्होंने ईरान, इराक, अफगानिस्तान, जापान, अमेरिका, कनाडा और रूस जैसे अलग-अलग मुल्कों में अपनी शहनाई की जादुई धुनें बिखेरीं।
जिंदगी में थी केवल संगीत, सुर और नमाज -
संगीत-सुर और नमाज इन तीन बातों के अलावा बिस्मिल्लाह ख़ां की जिंदगी में और दूसरा कुछ न था। संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, पद्म श्री, पद्म भूषण, पद्म विभूषण, तानसेन पुरस्कार से सम्मानित उस्ताद बिस्मिल्लाह खां को साल 2001 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
आखिर इच्छा अधूरी रह गई -
इंडिया गेट पर शहनाई बजाने की इच्छा रखने वाले उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की आखिरी इच्छा अधूरी ही रही और उन्होंने 21 अगस्त 2006 को इस दुनिया में अंतिम सांस ली और उस अंतिम सांस के साथ आत्मा को परमात्मा से जोड़ने वाली उनकी शहनाई की धुनें हमेशा के लिए खामोश हो गई।