संतोष अग्रवाल, विदिशा। शांति के लिए दिए जाने वाले नोबेल पुरस्कार के लिए पाकिस्तान की मलाला युसुफजई के साथ संयुक्त रूप से चुने गए कैलाश सत्यार्थी, देश की सीमाओं से पार पूरे विश्व में बचपन बचाओ आंदोलन एवं बंधुआ मजदूर मुक्ति के मसीहा के रूप में जाने जाते हैं।
किले अंदर छोटी हवेली के साधारण परिवार में जन्मे श्री सत्यार्थी ने अभावों के बीच अपना अध्ययन पूरा किया एवं कुछ दिनों के लिए एसएटीआई कॉलेज में पढ़ाई भी करने लगे और यहीं इलेक्ट्रिकल ब्रांच के दो साल तक प्रोफेसर भी रहे, पर अपनी रचनात्मकता के चलते उन्हें विदिशा का केनवास छोटा पड़ने लगा। बच्चों पर हो रहे अन्याय की समाप्ति को अपने जीवन का मिशन बनाने वाले इस नौजवान इंजीनियर ने अपनी सुविधा और सम्मान पाने वाले पेशे को ठुकराकर 1980 में मानव दास्ता के कलंक को मिटाने के अभियान की शुरूआत की।
श्री सत्यार्थी की पहल के पूर्व बाल मजदूरी और बाल दासतां पर किसी का ध्यान भी नहीं जाता था। ये बुराइयां हमारे समाज में कोई मुद्दा नहीं थी। न तो सरकार और न ही कोई गैर सरकारी संगठन इस विषय पर काम कर रहा था। उन्हीं को इस बात का श्रेय जाता है कि भारत सहित विश्व के 100 से अधिक देशों में स्वयं जा-जाकर उन्होंने बाल दासता को सामाजिक, राजनीतिक व कानूनी मुद्दा बनाया।
कैलाश सत्यार्थी आज विश्वभर में बाल दासता तथा बाल मजदूरी के विरुद्ध संघर्ष के पर्याय हैं। वे बाल दासतां विरोधी विश्व आंदोलन 'ग्लोबल कैम्पेन फॉर एजुकेशन" के संस्थापक अध्यक्ष हैं। वे भारत में बचपन बचाओ आंदोलन के प्रणेता भी हैं। ये दोनों संगठन अलग-अलग लगभग डेढ़ सौ देशों में सक्रिय हैं।
83 हजार बच्चों को कराया मुक्त
अत्यंत जोखिम भरी गुप्त छापामार कारवाईयों द्वारा उन्होंने स्वयं और उनके नेतृत्व में बचपन बचाओ आंदोलन ने लगभग 83 हजार बच्चों को मुक्त कराया पुनर्वास से भी लाभान्वित किया गया। उनका जीवन हमेशा खतरों में ही रहा है क्योंकि दुनिया भर में मासूम बच्चियों और बच्चों की तस्करी व व्यापार करने वाले तथा बच्चों से गुलामी कराने वाले माफिया उन्हें अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानते हैं।
उनके प्रयास के परिणामस्वरूप सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों द्वारा ऐसे दर्जनों ऐतिहासिक फैसले दिए गए हैं, जिनसे बंधुआ मजदूरी बच्चों की गुमशुदगी बाल दुर्व्यापार, बालश्रम के कई घिनौने आयामों एवं शिक्षा का पुनर्वास के महत्वपूर्ण मुद्दों को पारिभाषित किया गया है। इन फैसलों से देश के लाखों बच्चों को सीधे तौर पर तो फायदा पहुंचा ही केन्द्र और राज्य सरकारों को व्यापक नीति परिवर्तन करने पड़े।
1999 तक बच्चों की गुलामी और खतरनाक हालातों की बाल मजदूरी को रोकने के लिए कोई अंतर्राष्ट्रीय कानून नहीं बना था। ऐसे किसी कानून की मांग उठाने वाले पहले व्यक्ति श्री सत्यार्थी थे। लिखा पढ़ी करने की बजाय एक मांग को लेकर उन्होंने एक ऐतिहासिक पहल की, जो विश्व जन आंदोलन के इतिहास की सबसे प्रभावशाली घटनाओं में एक है।
1998 में उन्होंने बाल श्रम विरोधी विश्व यात्रा का आयोजन एवं नेतृत्व किया। जनवरी से जून तक चलने वाली 80 हजार किलोमीटर की इस यात्रा में अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन, ब्रिटिश प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर, फ्रांस के राष्ट्रपति शेराक, भारत के राष्ट्रपति केआर नारायणन सहित 70 से अधिक देशों के राष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों, राजा-रानियों आदि ने भी भाग लिया। कुल 72 लाख से अधिक बच्चे, महिलाएं और पुरुष इसमें शामिल हुए।
178 देशों में बना कानून
पहली बार संयुक्त राष्ट्र संघ के आईएलओ अधिवेशन में गैर सरकारी संगठनों और साधारण व्यक्तियों व बच्चों को हिस्सेदारी दी गई। इसमें श्री सत्यार्थी ने उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए बाल दासतां रोकने हेतु मार्मिक अपील करके अंतर्राष्ट्रीय कानून की मांग की। एक साल के अंदर ही विश्व भर की सरकारों ने इस कानून पर हस्ताक्षर किए व आज 178 देशों की संसद अपने यहां पर इसे पारित कर चुकी हैं।
दुनिया के करोड़ों बच्चों को इसका लाभ मिला। 1990 के दशक में दक्षिण एशिया के कालीन उद्योग में बच्चों की गुलामी के मुद्दे पर उन्होंने एक जबर्दस्त सकारात्मक व रचनात्मक अभियान चलाया। बाल श्रम को चैरिटी से परे ले जाकर मानव अधिकार का मुद्दा बनाना, शिक्षा को मानव अधिकार की परिधि में लेकर आना जैसे महत्वपूर्ण सफल प्रयासों के लिए भी वे जाने जाते हैं।
बच्चों के पुनर्वास के लिए श्री सत्यार्थी ने दिल्ली में मुक्ति आश्रम व बालिका आश्रम तथा राजस्थान के ऐतिहासिक कस्बे विराटनगर में बाल आश्रम व बालिका आश्रम की स्थापना की। इन आश्रमों से हजारों बच्चों को शिक्षित प्रशिक्षित और संस्कारित किया जा चुका है।
कई पदयात्राएं की
बाल मजदूरी की समाप्ति के लिए लोक जागरण व जन आंदोलनों के साथ ही मजबूत कानूनों व सरकारी योजनाओं की मांगों को लेकर उनके नेतृत्व में अनेकों यात्राएं की गई, जिनमें 1993 में बिहार से दिल्ली तक की पदयात्रा, 1994 में कन्याकुमारी से दिल्ली तक की भारत यात्रा, 1995 में कलकत्ता, काठमांडू तक की यात्रा और 2007 में बाल व्यापार विरोधी दक्षिण एशियाई यात्रा आदि प्रमुख हैं।शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने हेतु उनका बहुत बड़ा योगदान रहा है। 2001 में लाखों लोगों को शामिल करके उन्होंने कन्याकुमारी से कश्मीर होते हुए दिल्ली तक की 20 राज्यों की 15 हजार किलोमीटर लंबी जन-साधारण यात्रा की।
सत्यार्थी के लिए बदला गया संयुक्त राष्ट्रसभा का प्रोटोकाल
श्री सत्यार्थी वे पहले गैर सरकारी व्यक्ति हैं जिन्हें सन् 2000 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के अधिवेशन को संबोधित करने का मौका मिला। महाधिवेशन के दौरान चलने वाली समानांतर बैठकों और कार्यक्रमों में तो विशेषज्ञ लोग हिस्सा लेते रहे किंतु महासभा के मुख्य अधिवेशन को सिर्फ प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति ही संबोधित कर सकते हैं। 2009 का विशेष सत्र बाल अधिकारों पर केन्द्रित था। इसलिए संयुक्त राष्ट्रसभा ने अपने प्रोटोकाल में परिवर्तन करके श्री सत्यार्थी को दिलाया। उन्हें अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, इटली आदि देशों की संसदों की विशेष बैठकों को संबोधित करने का भी मौका मिला है। वे बाल मजदूरी और शिक्षा पर संयुक्त राष्ट्र संघ की कई महत्वपूर्ण समितियों के सदस्य हैं। उन्हें आक्सफोर्ड, हार्वर्ड, प्रिंसटन जेसे अनेकों विश्वविद्यालयों में व्याख्यान देने हेतु आमंत्रित किया जाता रहा है।
पहले भी हो चुके थे नामित
श्री सत्यार्थी अनेकों बार नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित हो चुके हैं। इनमें एक बार तात्कालीन अमेरिकी सेनेटर और अब विदेशी मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने उनके नाम का प्रस्ताव किया था।उन्होंने स्वयं कई पुस्तक-पुस्तिकाएं लिखी हैं तथा संघर्ष जारी रहेगा व क्रांति-धर्मी नामक हिंदी पत्रिकाओं एंव वर्कर्स पोलिडरिटी व फ्रीडम नाउ नामक अंग्रेजी पत्रों का वर्षों तक संपादन किया है।
सत्यार्थीजी को मिले अब तक अवार्ड
- डिफेंडर आफ डेमोक्रेसी अवार्ड,वर्ष 2009 यूएसए
-25वां अंतर्राष्ट्रीय अल्फोंसो कामिन अवार्डवर्ष 2008 स्पेन
-गोल्ड मेडल आफ द इटालियन सीनेटवर्ष 2007 इटली
-यूएस स्टेट डिपार्टमेंट्स अवार्डवर्ष 2007 यूएसए
- हीरोज एक्टिंग टू एंड मार्डन-डे स्लेवरी अवार्डवर्ष 2007 यूएसए
-फ्री-डम अवार्डवर्ष 2006 यूएसए
-राउल वालेंबर्ग ह्यूमेन राइट्स अवार्डवर्ष 2002 यूएसए
-फ्रीडिच एबर्ट स्टिफटंग अवार्डवर्ष 1999 जर्मनी
-ला हास्पिटेलिट अवार्डवर्ष 1999 स्पेन
-डे-गोडेन विम्पल अवार्डवर्ष 1998 नीदरलैंड
-राबर्ट एफ. केनेडी ह्यूमेन राइट्स अवार्डवर्ष 1995 यूएसए
-द ट्रंपटर अवार्डवर्ष 1995 यूएसए
-द ऐचनेर इंटरनेशनल पीस अवार्डवर्ष 1994 यूएसए