जबलपुर(मध्यप्रदेश)। कोई जिंदगी की दौड़-धूप से थक हार कर कुछ पल सुकून पाने के लिए यहां पहुंचता है तो किसी को मां नर्मदा के प्रति आस्था यहां नियमित तौर खींच लाती है। धार्मिक त्योहारों के अलावा अब रोज होने वाली मां नर्मदा की आरती भी नर्मदा के ग्वारीघाट आने का एक प्रमुख कारण बन चुकी है। शहर के सभी नर्मदा तटों पर जहां लोगों के आस्था के केंद्र हैं तो वहीं अब इनका आउटिंग स्पॉट के रूप में भी उपयोग हो रहा है।
अक्सर युवाओं के समूह यहां सेल्फी लेते, घाटों की प्राकृतिक खूबसूरती को कैमरे में कैद करते नजर आ जाते हैं। लेकिन अधिकांश को यह जानकारी नहीं कि इन घाटों के नाम और इनका महत्व क्यों है। आइए जानते हैं कि इन घाटों के नामों के पीछे की कहानी और महत्व, जिससे अब जब आप नर्मदा के इन घाटों पर जाएं इनके नामों की कहानी आपको पता हो।
ग्वारीघाट- ऐसी मान्यता है कि यहां मां पार्वती यानी गौरी ने तपस्या की थी। यहां मौजूद गौरी कुंड भी इस बात का प्रमाण देता है। पहले यह घाट गौरीघाट के नाम से जाना जाता था।लेकिन वर्तमान समय में इसे ग्वारीघाट कहते हैं।
ग्वारी का मतलवगांव और घाट का मतलव नदी किनारे का स्थान इसलिए अव ये ग्वारीघाट कहलाता हैं। कुछ लोग मानते हैं कि गौरीघाट का अपभ्रंश होकर इसका नाम ग्वारीघाट हो गया है। इसे मुख्य घाट के नाम से भी जाना जाता हैं। जहां पुराहित बैठ कर धार्मिक कार्य जैसे मुंडन,काल सर्प की पूज,दीप-दान,कथा आदि कार्यों का आयोजन करते है।
सिद्घ घाट- जैसा कि नाम से ही इस घाट का नाम ध्यान और सिद्घी से जुड़ा हुआ है। यहां एक जलकुंड मौजूद है। मान्यता है कि जिसमें 12 महिने पानी से भरा रहता है। यह भी माना जाता है कि कुंड के पानी को शरीर में लगाने से चर्म रोग ठीक हो जाता हैं। इसी घाट पर मां नर्मदा की आरती की जाती हैं।
जिलहरी घाट- ग्वारीघाट से कुछ ही दूरी पर स्थित नर्मदा के इस घाट की कहानी शंकर जी से जुड़ी है। यह मान्यता है कि यहां यहा पत्थर पर स्वनिर्मित भगवान शंकर की एक जिलहरी है। जिलहरी के कारण ही इस घाट का नाम जिलहरी घाट पड़ा।
उमा घाट- यह घाट ग्वारीघाट का ही एक हिस्सा है। पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने इस घाट का जिर्णोधार करवाया था। यह घाट मुख्य रूप से महिलाओं के लिए बनवाया गया था। उमा भारती के नाम के कारण ही इस घाट को उमा घाट के नाम से जाना जाने लगा। वहीं पार्वती जी की तपस्या यहां भी होना माने जाने के कारण भी इसे उमा घाट कहते हैं।
लम्हेटाघाट- प्राचीन मंदिरों के कारण इस घाट का काफी महत्व है। इस घाट पर स्थित है श्री यंत्र का मंदिर जिसे मां लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि इस मंदिर में पूजा एवं अनुष्ठान करने लक्ष्मी की प्राप्ती होती हैं। जहां तक नाम का सवाल है तो लम्हेटा नाम के गांव के किनारे बसे होने पर इसे लम्हेटा घाट कहते हैं। एक रोचक बात यह है कि घाट का उत्तरी तट लम्हेटा और दक्षिणी तट लम्हेटी कहलाता है। एक अन्य विशेषता है यहां के फॉसिल्स। जो लम्हेटा फॉसिल्स के नाम से प्रसिद्घ हैं।
पंचवटी घाट- मान्यता है कि वनवास के दौरान श्रीराम यहां आए और भेड़ाघाट स्थित चौसठ योगिनी मंदिर में ठहरे थे। भेड़ाघाट का नाम भृगु ऋषि के कारण पड़ा। पंचवटी में अर्जुन के पांच वृक्ष होने के कारण इसका नाम पंचवटी पड़ा।
तिलवारा घाट- प्रचीनकाल में तिल भांडेश्वर मंदिर यहां हुआ करता था। इसके साथ तिल संक्राति का मेला भरने के कारण भी इसे तिलवारा घाट कहते हैं।
सभी घाटों का अपना महत्व
सभी घाट अपने आप में एक प्रसिद्घि लिए हुए हैं। सब घाटों का अपना-अपना अलग धार्मिक महत्व हैं। जिनमें से मुख्य रूप से ग्वारीघाट का धार्मिक दृष्टि से,पंचवटी घाट का पर्यटन की दृष्टि से,और तिलवार का मकर संक्राति की दृष्टि से अपना महत्व हैं। अमृत लाल वेगड, नर्मदा परिक्रमा करने वाले साहित्य व कलाविद