शशांक शेखर बाजपेई।
नवम्बर 2009 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने रंगभेद विरोधी संघर्ष में दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला के योगदान को देखते हुए उनके सम्मान में उनके जन्मदिन (18 जुलाई) को 'मंडेला दिवस' घोषित किया। वो ऐसी शख्सियत थे, जिनका जन्मदिन अंर्तराष्ट्रीय दिवस के रूप में उनके जीवन काल में ही मनाया जाने लगा था। नेल्सन मंडेला दक्षिण अफ्रीका के प्रथम अश्वेत राष्ट्रपति थे। मंडेला 10 मई 1994 को दक्षिण अफ्रीका के प्रथम अश्वेत राष्ट्रपति बने।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने कहा था कि, मंडेला संयुक्त राष्ट्र के उच्च आर्दशों के प्रतीक हैं। दक्षिण अफ्रीका में सदियों से चल रहे रंगभेद का विरोध करने वाले अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस और इसके सशस्त्र गुट उमखोंतो वे सिजवे के वह अध्यक्ष रहे। रंगभेद विरोधी संघर्ष के कारण उन्होंने 27 साल के लिए रॉबेन द्वीप के कारागार में डाल दिया गया, जहां उन्हें कोयला खनिक का काम करना पड़ा।
वर्ष 1990 में श्वेत सरकार से हुए एक समझौते के बाद उन्होंने नए दक्षिण अफ्रीका का निर्माण किया। इसी वर्ष यानी 1990 में भारत ने उन्हें भारत के सर्वोच्च पुरस्कार 'भारत रत्न' से सम्मानित किया। मंडेला, भारत रत्न पाने वाले पहले विदेशी हैं। वर्ष 1993 में नेल्सन मंडेला और डी क्लार्क दोनों को संयुक्त रूप से शान्ति के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया।वे दक्षिण अफ्रीका के साथ-साथ पूरी दुनिया में रंगभेद का विरोध करने के प्रतीक बन गए।
उन यातनाओं ने बनाया क्रांतिकारी
विद्यार्थी जीवन में उन्हें रोज याद दिलाया जाता कि उनका रंग काला है और सिर्फ इसी वजह से वह यह काम नहीं कर सकते। उन्हें इस बात का एहसास करवाया जाता कि अगर वे सीना तान कर सड़क पर चलेंगे, तो इस अपराध के लिए उन्हें जेल जाना पड़ सकता है। ऐसे अन्याय ने उनके अन्दर असंन्तोष भर दिया और एक क्रान्तिकारी तैयार हो रहा था।
अफ्रीका के गांधी पर गांधीजी का प्रभाव
पूरी दुनिया महात्मा गांधी के विचार काल और सीमाओं से परे हैं। उनसे प्रभावित लोगों में नेल्सन भी थे। वैचारिक रूप से वह स्वयं को गांधी के करीब पाते थे, और यह प्रभाव उनके द्वारा चलाए गए आन्दोलनों पर स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा था। नेल्सन मंडेला ने गांधीवादी विचारों से प्रेरणा लेकर रंगभेद के खिलाफ अपने संघर्ष की शुरुआत की और दक्षिण अफ्रीका के दूसरे गांधी बन गए।
मंडेला ने अन्याय के विरुद्ध क्रोध को रचनात्मक रूप दिया। अहिंसा का सशक्त रास्ता ढूंढा और उससे अफ्रीका की आजादी के आंदोलन के साथ साथ व्यक्ितगत तौर पर भी लोगों में अहिंसक धारा की बात मन में जुड़ी।
मैं काली और गोरी हुकूमत के खिलाफ हूं
सन् 1984 में मडेला ने रिवियोना ट्रायल के समय साढे़ चार घंटे की स्पीच दी। उन्होंने भाषण के आखिर में कहा - मैं काली हुकूमत के खिलाफ लड़ा हूं और मैं गोरी हुकूमत के खिलाफ लड़ा हूं। मैंने हमेशा एक ऐसे लोकतांत्रिक देश के आदर्श को पोषित किया है जहां मुक्त समाज हो, जिसमें सभी लोग सौहार्द और समान हक के साथ रहते हों। यह एक ऐसा आदर्श है, मैं जिसके लिए जीना और जिसे हासिल करना चाहूंगा। पर अगर जरूरत पड़ी तो मैं इसके लिए मरने के लिए भी तैयार रहूंगा।
सम्मान में झुकी दुनिया
लंबी बीमारी के बाद मंडेला का 5 दिसंबर 2013 में निधन हो गया था। दुनिया में उनके सम्मान का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भारतीय राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा सहित दुनिया के करीब 100 नेताओं ने मंडेला को श्रद्धांजलि देते हुए 'इतिहास का पुरोधा' करार दिया। प्रणब मुखर्जी, बराक ओबामा, संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की-मून और अफ्रीकी संघ आयोग की अध्यक्ष कोसाजाना डलामिनी जुमा सहित 53 से अधिक देशों के राष्ट्राध्यक्ष व शासनाध्यक्ष 95 हजार सीटों की क्षमता वाले एफएनबी स्टेडियम में आयोजित दो घंटे की शोकसभा में शामिल हुए थे।
नेल्सन मंडेला के अनमोल विचार और कथन