आंखों के सामने सात रंग दिखाई दें, तो सावधान हो जाइए
यदि आपको आंखों के सामने सात रंग दिखाई दें, तो सावधान हो जाइए, क्योंकि ये लक्षण ग्लूकोमा (कांचबिंद) के हैं।
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Publish Date: Sat, 05 Mar 2016 09:28:07 AM (IST)
Updated Date: Sat, 05 Mar 2016 09:34:22 AM (IST)

भोपाल (नप्र)। यदि आपको आंखों के सामने सात रंग दिखाई दें, तो सावधान हो जाइए, क्योंकि ये लक्षण ग्लूकोमा (कांचबिंद) के हैं। ग्लूकोमा आंखों की रोशनी छिन जाने का मोतियाबिंद के बाद दूसरा सबसे बड़ा कारण है। यह बीमारी 5 प्रति हजार की दर से बढ़ती जा रही है।
देश में करीब सवा करोड़ लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं। वर्ल्ड ग्लूकोमा वीक 6 मार्च से शुरू हो रहा है। इस सप्ताह के दौरान भोपाल डिवीजन ऑप्थलमिक सोसायटी लोगों को जागरूक करने के लिए विभिनन्न् कार्यक्रम आयोजित करेगी। यह जानकारी सोसायटी के सचिव डॉ.गजेन्द्र चावला ने दी।
उन्होंने बताया कि अगर समय पर कांचबिंद की जांच करवाई जाए, तो इस बीमारी को उसी स्थिति में रोका जा सकता है। जितना नुकसान ग्लूकोमा कर चुका होता है,उसकी भरपाई नहीं की जा सकती। डॉ.चावला ने बताया कि सोसायटी की ओर से 6 मार्च से विभिन्न् गतिविधियां शुरू की जाएंगी। इस दिन सुबह बोट क्लब पर आई स्पेशलिस्ट ग्लूकोमा वॉक करेंगे। इस दौरान वहां आने वाले सैलानियों को ग्लूकोमा के बारे में जागरूक किया जाएगा।
ग्लूकोमा में बढ़ जाता है आंखों का प्रेशर
राजधानी की ग्लूकोमा स्पेशलिस्ट डॉ. विनीता रामनानी ने बताया कि ग्लूकोमा ऐसी बीमारी है, जिसमें आंखों का प्रेशर बढ़ जाता है। यह बीमारी नेत्र की आप्टिक नर्व को डेमेज करती है। यह तब होता है, जब आंखों से बनने वाला दृव्य आंख के सामने जमा हो जाता है और नेत्र का दबाव बढ़ा देता है।
ग्लूकोमा होने से आंख की रोशनी पूरी तरह चली जाती है। बाद में इसे ठीक नहीं किया जा सकता। यह बीमारी कुल जनसंख्या के एक प्रतिशत लोगों को होती है। समय पर जांच होने पर आई ड्राप और लेजर ऑपरेशन के जरिए इस बीमारी को रोका जा सकता है।
ये हैं लक्षण
आंखों में दर्द, सिर दर्द, रोशनी में इन्द्रधनुषीय गोले दिखाई देना, आंखों की रोशनी कमजोर हो जाना, मतली या उल्टी आना
इन्हें ज्यादा खतरा
40 से अधिक आयु वाले लोग, डायबिटीज,ब्लड प्रेशर के मरीज, जिनके घर में किसी को ग्लूकोमा हो, जिनका चश्मा माइनस में हो
नहीं है बचाव
ग्लूकोमा से बचाव संभव नहीं है। इसलिए जितनी जल्दी इस बीमारी का पता चल जाए उतना ठीक है। बीमारी का पता जल्दी लगने के बाद इलाज से आगे के नुकसान को रोका जा सकता है।