शकील खान, भोपाल। 'अमां मियां, हमारा नाम सूरमा भोपाली ऐसई थोड़े है..।" फिल्म 'शोले" का यह डायलॉग सुनकर झट ही मुंह में पान दबाए एक ऐसे व्यक्ति का चेहरा नजर आ जाता है, जिसे महान अभिनेता जगदीप ने परदे पर साकार किया था। ज्यादातर लोगों को यही लगता है कि 'सूरमा भोपाली" का भोपाल से सिर्फ से इतना कनेक्शन है कि इसमें 'भोपाली" शब्द जुड़ा हुआ है। लेकिन असलियत में सूरमा भोपाली एक जीते-जागते खुशनुमा इंसान थे, जो मध्य 60 के दशक में झीलों की नगरी में रहते थे। 'शोले" की लेखक जोड़ी में से एक शायर जावेद अख्तर रियल सूरमा भोपाली के समकालीन थे। 'शोले" की रिलीज के बाद जावेद अख्तर को रियल सूरमा भोपाली ने कानूनी नोटिस भी दिया था, बाद में समझौता भी हुआ।
'रियल सूरमा भोपाली" शोले के कैरेक्टर से बिल्कुल जुदा, दिलवाले, भावुक और हाजिर जवाब इंसान थे। उनका नाम सूरमा कैसे पड़ा और कैसे रचा गया 'शोले" का यह अद्भुत कैरेक्टर...इसकी कहानी भी बेहद दिलचस्प है। बात साठ के दशक के मध्य की है। भोपाल में एक शख्स थे, जिनका पूरा नाम था नाहर सिंह बघेल उर्फ नाहर मामा उर्फ काले मामा। उन्हें लोग 'सूरमा भोपाली" के नाम से पुकारते थे। वे भोपाल म्युनिसिपल में नाकेदार थे। छोटे कद के दुबले-पतले, सांवले रंग के नाहर सिंह दिलचस्प शख्सियत थे। बहुत अच्छा गाते थे। गुस्सा उनकी नाक पर सूरमे की तरह रहता था। इसलिए उनके दोस्त उन्हें 'सूरमा भोपाली" कहकर पुकारते थे। उनके दोस्तों में मतीन साहब, शाहिद कमाल पाशा, सरवर अली खान उर्फ भूरे मियां, एडवोकेट मोहम्मद अली, पूर्व सांसद स्व. गुफरान-ए-आजम शामिल थे। सूरमा से अभिनेता रजा मुराद, फिल्म राइटर दिनेश राय, रंगकर्मी रईस हसन की भी खास मुलाकातें थीं। शाहिद कमाल, रजा मुराद के सगे मामा थे।
कैसे पड़ा 'सूरमा भोपाली" नाम
एडवोकेट मो. अली, नाहर सिंह के अच्छे दोस्त थे। उन्होंने सूरमा से जुड़ी कुछ रोचक बातें साझा कीं, नाहर मामा की लड़ने-झगड़ने और दोस्तों से पिटवाने की आदत के चलते एक बार दोस्तों ने कहा- 'मियां क्यों इतना झगड़ते रहते हो। और कोई काम नहीं है तुम्हें। बड़े सूरमा बने फिरते हो।" बस, इसी के साथ नाहर सिंह, सूरमा भोपाली बन गए।
फिल्मी कैरेक्टर पर नोटिस
नाहर के छोटे भाई दरबार सिंह की बेटी डॉ. मंजू सिंह वर्तमान में प्रोफेसर कॉलोनी स्थित सूरमा भोपाली के बंगले में निवासरत हैं। राजीव गांधी प्रौद्योगिकी संस्थान (आरजीपीवी) में कैमिस्ट्री की प्रोफेसर डॉ. मंजू बताती हैं, साल 1975 में जब 'शोले" रिलीज हुई और सूरमा भोपाली का किरदार चर्चित हुआ तोे नाहर सिंह ने एडवोकेट मो. अली के जरिए जावेद अख्तर के नाम पर लीगल नोटिस भी भेजा था। उनका कहना था, 'फिल्म का कैरेक्टर मुझसे प्रेरित है। इससे मेरी मानहानि हुई है।" फिर पिताजी दरबार सिंह के कहने पर उन्होंने केस को आगे नहीं बढ़ाया।"
1979 में दुनिया से रुखसत हुए
नाहर सिंह की पैदाइश 1935 की थी। 14 नवंबर, 1979 की रात नाहर कुछ दोस्तों को छोड़कर भदभदा की ओर से स्कूटर से लौट रहे थे। तभी एक ट्रैक्टर से उनका एक्सीडेंट हो गया और रियल सूरमा भोपाली ने दुनिया से हमेशा के लिए रुखसत हो गए।
आज जो भी हूं, उन्हीं की बदौलत हूं
बकौल अभिनेता रजा मुराद.. 'नाहर मामा मेरे घर के सदस्य की तरह थे। बहुत दिलवाले और जज्बाती थे। वे ऑल इंडिया रेडियो में कैजुअल आर्टिस्ट भी थे। मैं हायर सेकंडरी में पढ़ता था। वे एक दिन मुझे रेडियो स्टेशन लेकर गए और मेरा फॉर्म भरवाया। उन्हीं की वजह से मैंने रेडियो नाटकों में वॉइस देना शुरू किया। मैं आज जो कुछ भी हूं उन्हीं की बदौलत हूं।"