प्रणय उपाध्याय, नई दिल्ली। कहने को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है लेकिन आधी इंसानी आबादी की संसद में हिस्सेदारी महज 11 फीसद है। महिलाओं को संसद में पहुंचाने में भारत का मौजूदा रिकॉर्ड उसे दुनिया के 100 मुल्कों में भी नहीं खड़ा कर पाता।
अब तक हुए 15 आम चुनावों के आंकड़े बताते हैं कि देश चलाने वाली सर्वोच्च पंचायत में महिला सांसदों की संख्या को हम दहाई की दहलीज से आगे नहीं बढ़ा सके हैं। संसद में महिलाओं की संख्या यूं तो 15वीं लोकसभा में सबसे ज्यादा रही है लेकिन महिला उम्मीदवारों के चुनाव जीतने के लिहाज से देखें तो रुझान उत्साहजनक नहीं हैं। 2009 के चुनावी मैदान में उतरी 556 महिला उम्मीदवारों में महज 11 फीसद को कामयाबी हासिल हो सकी। जबकि, 1957 में दूसरी लोकसभा के लिए हुए आम चुनाव में लड़ी 45 महिलाओं में से 22 ने जीत दर्ज की थी।
लोकसभा में महिलाओं के कमजोर प्रतिनिधित्व की यह स्थिति तब है जब मौजूदा लोकसभा में कांग्रेस, बसपा, तृणमूल कांग्रेस और अन्नाद्रमुक जैसे दलों की कमान महिलाओं के हाथ है। मौजूदा लोकसभा में इन दलों के 249 सदस्य हैं।
महिलाओं को चुनावी मैदान में उतारने से हिचक की एक बड़ी वजह उनकी जीत का कमजोर रिकार्ड भी है। आंकड़े बताते हैं कि चुनाव मैदान में उतरी 70 फीसद से अधिक महिला उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई। 58 करोड़ से अधिक की महिला आबादी वाले देश की संसद में उनका प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए आरक्षण की दशकों पुरानी पहल अब तक अधूरी है।
लोकसभा अध्यक्ष, नेता विपक्ष और सत्तारूढ़ गठबंधन की मुखिया के महिला होने के बावजूद 15वीं लोकसभा महिला आरक्षण विधेयक को बिना पारित किए ही कार्यकाल खत्म करेगी। भारी विरोध के बीच महिला आरक्षण विधेयक 9 मार्च, 2010 को राज्यसभा में पारित होने के बावजूद लोकसभा में पेश ही नहीं हो सका।
इंटरनेशनल पार्लियामेंट्री यूनियन के आंकड़े बताते हैं कि दुनिया में 21.8 फीसद महिला सांसद मौजूद हैं। ऐसे में महिला सांसदों के औसत के लिहाज से भारत 111वें पायदान पर खड़ा है। अफ्रीका महाद्वीप के कई मुल्क महिला प्रतिनिधित्व के लिहाज से भारत के मुकाबले कहीं आगे हैं।