यदि आप ज्योतिष के बारे में पढ़ते हैं या उसे जानने की रूचि रखते हैं, तो ग्रहों के अस्त होने वाली घटनाओं से परिचित होंगे। कोई ग्रह कुंडली में किन कारणों से अस्त होता है। ग्रहों के अस्त होने पर जातक के जीवन में क्या-क्या प्रभाव पड़ते हैं। आज इस विषय पर हम आपको गहन जानकारी देंगे। जब कुंडली में ग्रहों के राजा सूर्य के समीप कोई ग्रह आता है, तो वह बलहीन होकर अस्त हो जाता है। किसी भी ग्रह के अस्त होने पर उसका प्रभाव, उसकी सभी शक्तियां शून्य हो जाती हैं। इस समयकाल में ग्रह शुभ परिणाम देने में असमर्थ होता है। एक अस्त ग्रह की स्थिति बलहीन और अस्वस्थ राजा के समान होती है। यदि यह ग्रह किसी जातक की कुंडली में किसी मूल त्रिकोण या उच्च राशि में ही क्यों न हो। किसी प्रकार फल नहीं देता है।
चलिए एक साधारण से उदाहरण से समझने का प्रयास करते हैं। मान लीजिए किसी जातक की कुंडली में बृहस्पति ग्रह सप्तम भाव में अस्त होता है, तो जातक को सप्तम भाव में बृहस्पति ग्रह का कोई भी शुभ प्रभाव देखने को नहीं मिलेगा। बृहस्पति के सातवें घर में अस्त होने से न केवल स्त्री सुख में बाधा आ गई बल्कि जातक की विवेकशीलता में भी कमी उत्पन्न होगी। बता दें कि अस्त ग्रह दुष्फल तो देते ही हैं लेकिन त्रिक भावों में उनके अशुभ फलों की अधिकता और भी बढ़ जाती है।
ज्योतिष के जानकारों का मानना है कि किसी भी जातक की कुंडली में अस्त ग्रह का विश्लेषण करना जरूरी होता। दरअसल अस्त ग्रह किसी नीच की राशि, दूषित स्थान, शत्रु राशि या अशुभ ग्रहों के प्रभाव में हो तो उसका परिणाम और भी हानिकारक हो जाता है। यदि जातक की कुंडली में कोई भी शुभ ग्रह जैसे बृहस्पति, शुक्र, चंद्र, बुध आदि अस्त हों तो और भी भयानक परिणाम हो सकते हैं। अस्त ग्रहों की दशा-अंतर्दशा की स्थिति में जातक को बीमारी, गंभीर दुर्घटना कोई भयानक दुःख होने की प्रबल संभावना होती है। ज्योतिष के जानकार बताते हैं कि कुंडली में किसी एक शुभ ग्रह के अस्त होने पर व्यक्ति पूरा जीवन संकटमय हो जाता है। ऐसी स्थिति में जातक के प्रिय जन की मृत्यु, दुर्घटना में अंग भंग होना, कर्ज होना, संपत्ति का नष्ट होना आदि हो सकते हैं।
सूर्य के कितना समीप आने पर कौन सा ग्रह अस्त
1.चन्द्रमा जब सूर्य से 12 अंश या इससे अधिक समीप आता है तो अस्त हो जाता है।
2.गुरू जब सूर्य से 11 अंश या इससे अधिक समीप पर आने पर स्वतः अस्त हो जाता है।
3.सूर्य से 13 अंश या इससे अधिक समीप आने पर बुध ग्रह अस्त हो जाता है।
4.बुध वक्री है तो वह सूर्य से 11 अंश के आस-पास आने पर अस्त हो जाता है।
5.सूर्य से 09 अंश या इससे अधिक समीप आने पर शुक्र ग्रह अस्त हो जाता है।
6.शुक्र वक्री चल रहा है तो वह सूर्य से 7 अंश या इससे अधिक समीप आने पर अस्त हो जायेगी।
7.सूर्य से 15 अंश या इससे अधिक समीप आने पर शनि ग्रह अस्त हो जाता है।
8.सूर्य से 7 अंश या इससे अधिक समीप आने पर मंगल ग्रह अस्त हो जाता है।
राहु-केतु छाया ग्रह होने के कारण कभी भी अस्त नहीं होते है।
चन्द्रमा
चन्द्रमा के अस्त होने पर जातक की मां का अस्वस्थ होना, पैतृक संपत्ति का नष्ट होना, मानसिक अशांति आदि घटनाएं घटित होती रहती हैं।
मंगल
मंगल के अस्त होने पर जातक को नसों में दर्द, उच्च अवसाद, खून का दूषित होना आदि बीमारियां हो सकती हैं। अस्त मंगल ग्रह पर षष्ठेश के पाप का प्रभाव होने पर जातक को कैंसर, विवाद में हानि चोटग्रस्त आदि कष्ट होते हैं। अस्त मंगल पर राहु-केतु का प्रभाव होना जातक को किसी मुकदमें आदि में फंसा सकता है।
बुध
जातक की कुंडली में बुध अस्त हो तो जातक को दमा, मानसिक अवसाद आदि से गुजरना पड़ता है। अस्त बुध की अंतर्दशा में जातक को धोखे का शिकार होता है। जिससे वह तनावग्रस्त रहता है, मानसिक अशांति बनी रहती है तथा जातक को चर्म रोग आदि भी हो सकता है।
बृहस्पति
कुंडली में अस्त बृहस्पति की अंतर्दशा आने पर जातक का मन अध्ययन कार्यों में नहीं लगता है। किसी मुकदमें में फंस जाता है। अनैतिक संबंधों में फंस जाता है। लीवर के रोग से ग्रस्ति हो जाता है। मुधवेह, ज्वर,आदि हो सकता है।
शुक्र
यदि किसी जातक की कुंडली में शुक्र की अंतर्दशा है और शुक्र अस्त हो जाता है, तो ऐसी स्थिति में जातक को किडनी आदि से सम्बंधित परेशानी हो सकती है। संतान सुख में बाधा होने का भय बना रहता है।
शनि
किसी जातक की कुंडली में अस्त शनि ग्रह का षष्ठेश की पापछाया में होना रीढ़ की हड्डी में परेशानी, जोड़ों, घुटना में दर्द की समस्या पैदा करता है। मानसिक परेशानियां बढ़ने लगती है। अस्त शनि ग्रह की अंतर्दशा आने पर जातक की सामाजिक प्रतिष्ठा में कमी आती है, व्यक्ति कार्य एवं व्यवहार नीच प्रकृति का हो जाता है।
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