- सदगुरु जग्गी वासुदेव
आजकल लोग आध्यात्मिकता का मतलब निकालते हैं कि स्वयं को यातना देना और अभावग्रस्त जीवन बिताना। इसको लोग भूखे रहने और सड़क के किनारे बैठ कर भीख मांगने से जोड़ने लगे हैं, और सबसे मुख्य यह है कि आध्यात्मिकता को जीवन-विरोधी या जीवन से पलायन समझा जाता है।
लोग यह मानते हैं कि आध्यात्मिक लोगों को जीवन का आनन्द लेना वर्जित है और हर तरीके से कष्ट झेलना जरूरी है। जबकि सचाई यह है कि आध्यात्मिक होने का आपके बाहरी जीवन से कोई लेना-देना नहीं है।
एक बार किसी ने मुझसे पूछा - एक आध्यात्मिक और संसारी मनुष्य में क्या अंतर है? मेरा सहज जबाब था- एक संसारी मनुष्य केवल अपना भोजन कमाता है, बाकी सब कुछ-जैसे प्रसन्न्ता, शांति और प्रेम-स्नेह के लिए उसे दूसरों की भीख पर निर्भर रहना पड़ता है।
इसके विपरीत एक आध्यात्मिक व्यक्ति अपनी शांति, प्रेम और प्रसन्न्ता सब कुछ स्वयं कमाता है, और केवल भोजन के लिए दूसरों पर निर्भर रहता है। लेकिन अगर वह चाहे, तो अपना भोजन भी कमा सकता है। इन कुछ लक्षणों से आप समझ जाएंगे कि आध्यात्मिकता आखिर है क्या?
आध्यात्मिकता का किसी धर्म, संप्रदाय, फिलॉसफी, या मत से कोई लेना-देना नहीं है। आप अपने अंदर से कैसे हैं, आध्यात्मिकता इसके बारे में है। आध्यात्मिकता का मतलब है, भौतिक से परे जीवन को अनुभव कर पाना। आप सृष्टि के सभी प्राणियों में भी उसी परम-सत्ता के अंश को देखते हैं, जो आपमें है, तो आप आध्यात्मिक हैं।
अगर आपको बोध है कि आपके दुख, आपके क्रोध, आपके क्लेश के लिए कोई और जिम्मेदार नहीं है, बल्कि आप खुद इनके निर्माता हैं, तो आप आध्यात्मिक मार्ग पर हैं। आप जो भी कार्य करते हैं, अगर उसमें केवल आपका हित न हो कर, सभी की भलाई निहित है, तो आप आध्यात्मिक हैं। अगर आप अपने अहंकार, क्रोध, नाराजगी, लालच, ईर्ष्या, और पूर्वाग्रहों को गला चुके हैं, तो आप आध्यात्मिक हैं।
बाहरी परिस्थितियां चाहे जैसी हों, उनके बावजूद भी अगर आप अपने अंदर से हमेशा प्रसन्न् और आनन्द में रहते हैं, तो आप आध्यात्मिक हैं। अगर आपको इस सृष्टि की विशालता के सामने खुद के नगण्य और क्षुद्र होने का एहसास बना रहता है तो आप आध्यात्मिक बन रहे हैं। आपके पास अभी जो कुछ भी है, उसके लिए अगर आप सृष्टि या किसी परम सत्ता के प्रति कृतज्ञता महसूस करते हैं तो आप आध्यात्मिकता की ओर बढ़ रहे हैं।
अगर आपमें केवल स्वजनों के प्रति ही नहीं, बल्कि सभी लोगों के लिए प्रेम उमड़ता है, तो आप आध्यात्मिक हैं। आपके अंदर अगर सृष्टि के सभी प्राणियों के लिए करुणा फूट रही है, तो आप आध्यात्मिक हैं।
आध्यात्मिक होने का अर्थ है कि आप अपने अनुभव के धरातल पर जानते हैं कि मैं स्वयं अपने आनन्द का स्रोत हूं। आध्यात्मिकता कोई ऐसी चीज नहीं है जो आप मंदिर, मस्जिद, या चर्च में करते हैं। यह केवल आपके अंदर ही घटित हो सकती है। आध्यात्मिक प्रक्रिया ऊपर या नीचे देखने के बारे में नहीं है।
यह अपने अंदर तलाशने के बारे में है। आध्यात्मिकता की बातें करना या उसका दिखावा करने से कोई फायदा नहीं है। यह तो खुद के रूपांतरण के लिए है। आध्यात्मिक प्रक्रिया मरे हुए या मर रहे लोगों के लिए नहीं है। यह उनके लिए है जो जीवन के हर आयाम को पूरी जीवंतता में जीना चाहते हैं। आध्यात्मिक प्रक्रिया एक यात्रा की तरह है - निरंतर परिवर्तन। हम राह की हर चीज से प्रेम करना और उसका आनंद लेना सीखते हैं, पर उसे उठाते नहीं।
आध्यामिकता मूल रूप से मनुष्य की मुक्ति के लिए है, अपनी चरम क्षमता में खिलने के लिए। यह किसी मत या अवधारणा से अपनी पहचान बनाने के लिए नहीं है। आध्यात्मिकता का अर्थ है कि अपने विकास की प्रक्रिया को खूब तेज करना।
आध्यात्मिक मार्ग पर चलने का अर्थ है कि आप मुक्ति की ओर बढ़ रहे हैं, चाहे आपकी पुरानी प्रवृत्तियां, आपका शरीर, और आपके जीन्स कैसे भी हों। अस्तित्व में एकात्मता व एकरूपता है और हर इंसान अपने आप में अनूठा है। इसे पहचानना और इसका आनन्द लेना ही आध्यात्मिकता का सार है।
एक आध्यात्मिक व्यक्ति और एक संसारी व्यक्ति, दोनों ही उसी अनन्त-असीम को चाह रहे हैं। एक उसे जागरूक हो कर खोज रहा है जबकि दूसरा अनजाने में। अगर आप अपना व्यक्तित्व मिटा देते हैं तो आपकी मौजूदगी बहुत प्रबल हो जाती है - यही आध्यात्मिक साधना का सार है। जब आप अपनी नश्वरता के बारे में हरदम जागरूक रहने लगते हैं, तब आप अपनी आध्यात्मिक खोज में कभी विचलित नहीं होते। सोच-विचार दिमाग की उपज है, यह कोई ज्ञान नहीं है।
आध्यात्मिक होने का अर्थ है औसत से ऊपर उठना - यह जीने का सबसे विवेकपूर्ण तरीका है। आध्यात्मिकता के लिए कई जन्मों तक साधना करनी पड़ती है - ऐसी सोच अधिकतर लोगों में प्रतिबद्धता और एकाग्रता की कमी के कारण बनती है। साधना एक ऐसी विधि है, जिससे पूरी जागरूकता में आध्यात्मिक विकास की गति को तेज किया जा सकता है।
आध्यात्मिकता न तो मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है और न ही सामाजिक- यह शत-प्रतिशत अस्तित्वगत है। अगर आप किसी भी काम में पूरी तन्मयता से डूब जाते हैं, तो आध्यात्मिक प्रक्रिया वहीं शुरू हो जाती है, चाहे वो काम झाड़ू लगाना ही क्यों न हो। किसी चीज को सतही तौर पर जानना सांसारिकता है, और उसे ही गहराई तक जानना आध्यात्मिकता है।