धर्म डेस्क। सनातन धर्म में पितृ पक्ष का समय पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने का पवित्र अवसर माना जाता है। पूरे देशभर में 16 दिनों तक चलने वाले इस पक्ष में लोग श्रद्धा और भावनाओं के साथ अपने पितरों को तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध अर्पित करते हैं।
गुरुवार को पितृ पक्ष की चतुर्थी पर हजारों श्रद्धालुओं ने अपने दिवंगत परिजनों को याद कर तिल-जौ, पकवान और पिंड अर्पित किए। धर्म ग्रंथों में वर्णित है कि पितृ पक्ष के दौरान पूर्वज पृथ्वी लोक पर आते हैं और अपने वंशजों के तर्पण से संतुष्ट होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं। यही कारण है कि इस कालखंड में दान-पुण्य का विशेष महत्व माना गया है।
चतुर्थी श्राद्ध के दिन नदी घाटों और जलाशयों पर सुबह से ही पिंडदान और तर्पण की धार्मिक क्रियाएं संपन्न की गईं। श्रद्धालुओं ने चावल, गाय का दूध, घी, गुड़ और शहद से बने पिंड अर्पित किए। जल में काले तिल, जौ, कुशा और श्वेत पुष्प मिलाकर पितरों को तर्पण दिया गया।
धार्मिक मान्यता है कि सफेद फूल इस दिन पितरों को अर्पित करना विशेष शुभ माना जाता है। इसके उपरांत ब्राह्मण भोज और दान-पुण्य कर श्रद्धालुओं ने पितरों को तृप्त करने का प्रयास किया।
आज पंचमी तिथि का श्राद्ध किया जा रहा है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन उन दिवंगत आत्माओं का तर्पण किया जाता है जिनका निधन किसी भी महीने की शुक्ल या कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को हुआ हो। अविवाहित अवस्था में देहत्याग करने वाले पितरों का भी आज श्रद्धा से तर्पण किया जाता है।
धार्मिक मान्यता है कि पंचमी श्राद्ध करने से पितर प्रसन्न होकर अपने आशीर्वाद से संतानों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं और परिवार में सुख-समृद्धि का संचार होता है।