धर्म डेस्क। हिंदू धर्म में पूजा-पाठ का विशेष महत्व माना गया है। धार्मिक मान्यता है कि जहां नियमित रूप से पूजा-अर्चना और आरती होती है, वहां सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है। पूजा के अंत में आरती करना अनिवार्य माना जाता है, क्योंकि इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है।
आइए जानते हैं आरती करने का सही तरीका और नियम...
आरती हमेशा भगवान के चरणों से प्रारंभ करनी चाहिए। आरती की थाल को चरणों में चार बार घुमाना परमात्मा के चरणों में स्वयं को समर्पित करने का प्रतीक माना जाता है।
आरती के दौरान थाल को दो बार भगवान की नाभि के पास घुमाना चाहिए। मान्यता है कि विष्णुजी की नाभि से ब्रह्मा जी का जन्म हुआ था। उसके बाद थाल को ऊपर उठाकर भगवान के मुखमंडल के सामने एक बार घुमाकर नमन करें।
अंत में दीया पूरे शरीर पर सात बार घुमाएं। कुल मिलाकर आरती चौदह बार घुमाने का विधान है, जो चौदह भुवनों तक भक्ति को पहुंचाने का मार्ग माना जाता है।
आरती हमेशा खड़े होकर करनी चाहिए और भगवान के सम्मान में थोड़ा झुकना चाहिए। थाली तांबे, पीतल या चांदी की होनी चाहिए। इसमें गंगाजल, कुमकुम, चावल, चंदन, अगरबत्ती, फूल और भगवान के प्रिय भोग अवश्य रखें।
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