धर्म डेस्क। वर्तमान ज्योतिषी और बुध-शुक्र के बारे में कुछ बातें जान लीजिये। बुध ग्रह सूर्य से सातवें स्थान पर था। वर्तमान समय में बुध और शुक्र सूर्य से अधिकतम 48 अंशों की दूरी पर दिखाये जाते हैं। जो संभवतः पिछले 800 वर्षों से व्यवहार में है लेकिन किसी ने यह जानने का प्रयत्न नहीं किया कि आखिर ऐसा क्यों?
ज्योतिष आचार्य मण्डन मिश्र: कहते हैं कि बुध और शुक्र कोई छाया ग्रह- जैसे राहु और केतु हैं, वैसे तो हैं नहीं। फिर उनके साथ ऐसा क्या सिद्धांत या गणितीय या पौराणिक प्रतिबन्ध है कि वे दोनों सूर्य से दो राशियों से अधिक दूर नहीं रह सकते? बस,कारण नहीं ढूंढे। एक रस्सी पकड़ लिये और समय को तथा अपनी मनसा को देखते हुए उसे कभी सांप और कभी रस्सी के रूप में आम जान को परोसते हुए चले आये और नाम देते आये प्राचीन ऋषि-मुनि का कि उन्होंने ही ऐसा कहा है।
श्रम के डर से सिद्धांत और गणित का तो अध्ययन कर नहीं सकते। और अध्ययन नहीं करेगें तो ज्ञान होगा नहीं। इस प्रकार हल्दी एक गाँठ पा गये और किराना की दूकान खोल लिये। ---बन गये सबसे बड़े ज्योतिषाचार्य।
पहले कभी जब अंतरिक्षीय घटना के उपरांत समस्त ग्रह एक बार पुनः किसी विशेष आकर्षण बल से घिर कर एक परिधि में संचार प्रारम्भ किये तब आकाश गङ्गाओं एवं उनमें नक्षत्र तथा ग्रहमंडल का निर्माण हुआ।
अंतरिक्ष में ताराओं की तात्कालिक स्थिति के अनुसार अक्ष से नक्षत्रों का नामकरण उनका स्थान परिलक्षित एवं निर्धारित किया गया। पहली नक्षत्र अश्विनी के नाम से जानी गईं और इस आकाश गङ्गा के एक ग्रहमंडल को सौर मण्डल का नाम दिया गया। इसमें ग्रहोंके राजा या नियंत्रक का नाम सूर्य हुआ।
ध्यान रहे इस ब्रह्माण्ड में पता नहीं कितनी आकाश गङ्गायें और एक आकाश गङ्गा में कितने ग्रहमंडल हैं। ग्रह सदा गतिमान हैं। वे सदा एक निश्चित कक्ष्या (Orbit) में आकर्षण-प्रत्याकर्षण के अनुसार निर्धारित गति से गतिमान हैं। जिससे उनकी स्थिति सदा बदलती रहती है। यही कारण है कि जो विंशोत्तरी दशा सूर्य के लिये सर्व प्रथम पहली नक्षत्र अश्विनी से आरम्भ होती थी वह आज खिसकते खिसकते कृत्तिका से आरम्भ होती है।
जी हाँ, वर्तमान विंशोत्तरी दशा कृत्तिका नक्षत्र जो तीसरी नक्षत्र है, उससे आरम्भ होती हैं। इसी प्रकार बुध एवं शुक्र भी कभी सूर्य से सात राशि भी दूर हुआ करते थे. जो कालान्तर में सूर्य के समीप ही घूमने लगे, किन्तु आलस्य, अज्ञानता, लोभ, पाखण्ड और पापबुद्धि के वशीभूत कलिकाल ग्रसित ज्योतिषी लोग इस अत्यंत श्रम साध्य गणितीय कार्य को करने से विरत होकर जहां पर अंतिम गणना छूट गयी थी उसे सदा के लिये स्थाई मानकर उसी को आत्मसात कर लिये और समस्त ज्योतिष सिद्धांत को पंगु बनाकर एक स्थान पर बिठा दिए। आगे गणना करने से अलग हो गए या उनके वश की बात नहीं रह गयी। स्वयं आचार्य वराह ने कहा है कि शुक्र हो या बुध ये समस्त ग्रह सूर्य से 4 से लेकर सात या दस राशि दूर हुआ करते थे.--
#शाकटाण्डजवच्छुभाशुभैर्वजं_तद्विपरीतगैर्यवः।
#कमलं_तु_विमिश्रसंस्थितैर्वापि_तद_यदि_केंद्रबाह्यतः।।
बृहज्जातक के नाभस योगाध्याय 12 का यह पांचवां श्लोक है जो वैतालीय छंद में है. इसमें स्पष्ट रूप से लिखा है कि कुंडली में 1 तथा 7 में समस्त पाप ग्रह हों तथा 4, 10 में समस्त पापग्रह हों तो वज्र योग होता है.
पाप ग्रह कौन होते है--
#क्षीणो_चन्द्रः_रविर्भौमः_पापो_राहु_शनिश्शिखिः
#बुधोSपि_तैर्युतो_पापः_होरा_राश्यर्द्धमुच्यते।।
अर्थात यदि चन्द्रमा क्षीण या दुर्बल हो, सूर्य, मंगल, शनि, राहु एवं केतु पाप ग्रह होते हैं. यदि बुध इनके साथ होगा तो वह भी पापग्रह ही होगा।
तो समस्त शुभ ग्रह 7 में और समस्त पापग्रह 1 में कैसे हो सकते हैं?वराहमिहिर ने भी यह स्वीकार किया है कि प्राचीनकाल में ऐसा ही होता था👇🏼👇🏼
#पूर्वशास्त्रानुसारेण_मया_वज्रादयः_कृताः।
#पुनरपतति_प्रकृतिर्विकृतिर्गुणः_स्यात् #चतुर्थभवने_सुर्याज्झसितौ_भवतः_कथम?
उपरोक्त श्लोक भी इसी अध्याय का 6ठा श्लोक है. जिसमें स्पष्ट रूप से वराह कहते हैं कि पूर्व शास्त्रों में ऐसा बताया गया है.--किन्तु आदिकालीन ज्योतिष के वर्तमान उद्भट्ट लोकतांत्रिक ज्योतिषाचार्य प्राचीन ज्योतिषाचार्यों को अपनी अखण्ड विद्या से पराभूत करते हुए अपना अलग ही सिद्धांत चला रहे हैं।