मनीष मिश्रा, रायपुर। ‘मल्लों की जब टोली निकली, यह चर्चा फैली गली-गली, दंगल हो रहा अखाड़े में चंदन चाचा के बाड़े में’ एक समय था, जब स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली यह कविता बच्चों को अच्छी तरह से याद हुआ करती थी। जब भी नागपंचमी का पर्व आता था तो सभी अखाड़ों में कुश्ती प्रतियोगिता की तैयारियां जोरशोर से होने लगती थी। नागपंचमी पर अपना दम दिखाने की यह परंपरा सदियों पुरानी बताई जाती है, लेकिन छत्तीसगढ़ के 100 साल से भी पुराने अखाड़ों में यह जारी है।
नागपंचमी पर कुश्ती प्रतियोगिता में भाग लेने और दांव-पेंच दिखाने के लिए गांव गांव से कुश्ती प्रेमी अखाड़ों में पहुंचते थे। कुश्ती देखने के लिए सैकड़ों लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती थी। बदलते दौर में शहर में भले ही बड़े बड़े जिम खुल गए जहां युवा अपने बदन को गठीला बनाने पहुंचते हैं, इसके बावजूद आज भी नागपंचमी के दिन अनेक अखाड़ों में कुश्ती प्रतियोगिता में पहलवान पूरे दमखम के साथ उठापटक और दांवपेंच दिखाते नजर आते हैं। युवाओं के साथ अब बच्चे और युवतियां भी कुश्ती में जोर आजमाइश करने में रुचि लेने लगे हैं। ऐसे ही तीन पुराने अखाड़ों की जानकारी दे रहे हैं...
पुरानी बस्ती स्थित कुशालपुर इलाके में प्राचीन दंतेश्वरी मंदिर परिसर में मां दंतेश्वरी अखाड़ा 150 साल पुराना है। अखाड़े के संचालक वरिष्ठ पहलवार अशोक यादव बताते हैं कि 1970-80 के दौर में मध्यप्रदेश स्तरीय कुश्ती प्रतियोगिता होती थी। अनेक शहरों के नामी पहलवानों की कुश्तियां देखने अन्य शहरों से भी कुश्ती प्रेमी आते थे। यह परंपरा आज भी बरकरार है।
नागपंचमी के दिन अखाड़े के भीतर कुश्ती नहीं लड़ी जाती, उस दिन अखाड़े की मिट्टी से शिवलिंग बनाकर पूजा की जाती है। पूजा के पश्चात अखाड़े के बाहर परिसर में गद्दों पर प्रतियोगिता होती है। इसमें पांच वर्ष से लेकर 60 वर्ष के बुजुर्ग भाग लेते हैं। अखाड़े की कुछ युवतियों ने प्रदेश स्तर पर बाजी मारी है।
पुरानी बस्ती के प्रसिद्ध जैतूसाव मठ स्थित महावीर व्यायाम शाला, अखाड़ा के उपाध्यक्ष गजेश यदु बताते हैं कि 1910 से अखाड़ा चल रहा है। नागपंचमी से पहले पड़ने वाले मंगलवार से हनुमान जी का आवाहन करके पहाड़ बनाया जाता है। नागपंचमी के दिन इसी पहाड़ क पूजा करते हैं। नागपंचमी के बाद जो भी मंगलवार या शनिवार पड़ता है, उसमें पहाड़ को गिराते हैं, उसकी मिट्टी को बराबर करके फिर कुश्ती लड़ते हैं।
इस वर्ष दो अगस्त को कुश्ती लड़ी जाएगी। यहां के अनेक पहलवानों ने राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग लिया है। इस अखाड़े में देश को आजादी दिलाने के लिए लड़ने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी आते थे। अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ने की योजनाएं बनाते थे और अखाड़े के पहलवानों का हौसला बढ़ाते थे। देश की आजादी के बाद अखाड़े का पुनर्निर्माण किया तब, देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद उद्घाटन करने आए थे।
रायपुर शहर का तीसरा प्रसिद्ध अखाड़ा शुक्रवारी बाजार गुढ़ियारी पड़ाव के समीप है। 75 साल पुराने श्री शंकर मंदिर सेवा समिति अखाड़े के तोरणलाल साहू बताते हैं कि नागपंचमी पर प्रदेश स्तरीय खुली प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। जब छत्तीसगढ़ राज्य नहीं बना था, तब मप्र स्तर पर होने वाली प्रतियोगिता में जबलपुर, भोपाल से भी पहलवान आते थे।
अब, केवल राज्यस्तरीय प्रतियोगिता होती है, इसमें धमतरी, दुर्ग, राजनांदगांव, महासमुंद, बिलासपुर, कोरबा आदि के पहलवान शामिल होते हैं। पहले 100, 500, एक हजार के पुरस्कार दिए जाते थे, अब पुरस्कार की राशि बढ़ गई है। 29 जुलाई को दोपहर तीन बजे से कुश्ती शुरू होगी।
29 जुलाई को भिड़ेंगे पहलवान
इस साल 29 जुलाई मंगलवार को नागपंचमी पर्व पर शहर के सभी अखाड़ों में कुश्ती प्रतियोगिता होने जा रही है। पिछले कुछ वर्षों में युवतियां भी कुश्ती प्रतियोगिता में भाग लेने लगीं हैं। युवतियों और बच्चों की कुश्ती देखने के लिए काफी संख्या में महिलाएं जुटेंगी और हौसला बढ़ाएंगी। कुशालपुर की कुछ युवतियों ने राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में भी भाग लेकर अन्य युवतियों को कुश्ती लड़ने प्रेरित किया है। नागपंचमी पर होने वाली प्रतियोगिता के लिए युवतियां भी अभ्यास में जुटीं हैं।