
धर्म डेस्क। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीराम और माता सीता का दिव्य विवाह हिंदू धर्म में अत्यंत पावन और उत्साह से मनाया जाता है। मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को प्रभु राम और देवी सीता का विवाह हुआ था।
वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस में इस मंगल अवसर का विस्तृत वर्णन मिलता है। विवाह पंचमी के रूप में बड़ी आस्था और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार जब भगवान राम जनकनंदिनी सीता को ब्याह कर अयोध्या लेकर आए, तब अयोध्या नगरी आनंद से झूम उठी। महलों में उत्सव का माहौल था और पूरे राजमहल में नई बहू का भव्य स्वागत-सत्कार किया गया।
हिंदू परंपरा के अनुसार नई बहू को विवाह के बाद ससुराल में परिवार की ओर से मुंह दिखाई के उपहार दिए जाते हैं। माता सीता के साथ भी यही रस्म निभाई गई। उनकी तीनों सासों, माता कौशल्या, माता सुमित्रा और माता कैकेयी ने उन्हें अनोखे और विशेष उपहार भेंट किए।
धार्मिक मान्यता के अनुसार माता कौशल्या ने मुंह दिखाई की रस्म में सीता का हाथ अपने हाथ में लेकर पूरे राजकुल का दायित्व और सम्मान उन्हें सौंप दिया। यह सिर्फ उपहार नहीं बल्कि विश्वास और आशीर्वाद का प्रतीक था।
माता सुमित्रा ने देवी सीता को अपने दोनों पुत्र लक्ष्मण और शत्रुघ्न सौंप दिए। दोनों राजकुमारों ने जीवनभर माता सीता को मां का दर्जा दिया और हर कठिनाई में उनका साथ निभाया।
पौराणिक कथाओं में उल्लेख मिलता है कि महारानी कैकेयी ने राजा दशरथ से अपने लिए सोने का एक भव्य महल बनवाया था, जिसे विश्वकर्मा ने तैयार किया था। इसे कनक महल कहा जाता था। विवाह के बाद जब राम और सीता अयोध्या पहुंचे, तो माता कैकेयी ने यह पूरा महल ही मुंह दिखाई के रूप में माता सीता को भेंट कर दिया।