Guru Purnima 2025: वह धरा जहां गुरु को ईश्वर से पहले माना गया, भगवान श्रीकृष्ण बने शिष्य
गुरु पूर्णिमा उज्जैन के लिए केवल एक पर्व नहीं, बल्कि उसकी आत्मा, परंपरा और सांस्कृतिक चेतना का उत्सव है। यह भूमि श्रीकृष्ण से लेकर आधुनिक विद्वानों तक गुरु-शिष्य परंपरा की साक्षी रही है। यहां ज्ञान केवल शब्द नहीं, बल्कि साधना और अनुभव से अर्जित होता है।
Publish Date: Thu, 10 Jul 2025 10:25:19 AM (IST)
Updated Date: Thu, 10 Jul 2025 10:25:19 AM (IST)
भगवान श्री कृष्ण ने उज्जैन में ली थी शिक्षा। (फाइल फोटो)HighLights
- सांदीपनि आश्रम में श्रीकृष्ण ने गुरु धर्म सीखा।
- योग, कला और गणित में उज्जैन की गुरु परंपरा।
- भर्तृहरि गुफा और अवंतिकानंद आश्रम साधना केंद्र।
नईदुनिया, उज्जैन। गुरु पूर्णिमा भारतवर्ष में एक ओर श्रद्धा और ज्ञान का प्रतीक पर्व है, लेकिन उज्जैन के लिए यह एक जीवंत परंपरा, आत्मिक चेतना और सांस्कृतिक विरासत का उत्सव है। यह नगरी मंदिरों की भूमि के साथ-साथ गुरु-शिष्य परंपरा की जीवंत मिसाल भी है। यहां ज्ञान किताबों के साथ-साथ अनुभव और साधना में प्रवाहित होता है। गुरु पूर्णिमा यहां जीवन मूल्यों की पुनर्पुष्टि का अवसर है।
भगवान श्रीकृष्ण ने यहीं सीखा था गुरु धर्म
- उज्जैन की गुरु परंपरा की गहराई को समझना हो तो सांदीपनि आश्रम की ओर देखना होगा, जहां स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने गुरु सांदीपनि से शिक्षा ली थी।
- श्रीकृष्ण, बलराम और सुदामा की शिक्षा स्थली रहा यह आश्रम आज भी वैदिक गरिमा के साथ विद्यमान है। यहां आज भी नवदीक्षित ब्रह्मचारी वेद, व्याकरण, नीति और योग की शिक्षा लेकर जीवन की साधना आरंभ करते हैं।
योग, दर्शन, कला और गणित तक फैली गुरु-शिष्य परंपरा
उज्जैन की गुरु परंपरा वैदिक मर्यादा तक सीमित नहीं रही। योग के क्षेत्र में मत्स्येंद्रनाथ और गोरखनाथ की साधना स्थली, भर्तृहरि गुफा की आत्मनिष्ठ परंपरा और अवंतिकानंद आश्रम का ध्यान पथ, यह सभी स्थान उज्जैन को गुरु नगरी का गौरव प्रदान करते हैं। कालिदास ने गुरु को 'आत्मा के नेत्र' कहा था, और यही विचार उनके साहित्य में प्रवाहित हुआ।
आधुनिक युग में उज्जैन की गुरु धारा
- आज के डिजिटल युग में भी उज्जैन ने गुरु की भूमिका को केवल सूचना स्रोत नहीं, बल्कि आत्म-परिवर्तन की प्रेरणा के रूप में बनाए रखा है।
- पं. सूर्यनारायण व्यास, डॉ. वाकणकर, चित्रकार श्रीकृष्ण जोशी, नृत्यगुरु राजकुमुद ठोलिया, संगीताचार्य ललित महंत, संस्कृताचार्य श्रीनिवास रथ, इतिहासवेत्ता श्यामसुंदर निगम और गणितज्ञ डॉ. घनश्याम पांडे जैसे नाम इस परंपरा को आधुनिक संदर्भों में जीवंत रखते हैं।
गुरु पूर्णिमा उज्जैन की पहचान
- महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. विजय कुमार सीजी के अनुसार, "गुरु पूर्णिमा उज्जैन के लिए केवल पर्व नहीं, बल्कि पहचान है।"
- यह वह पहचान है, जो हजारों वर्षों से श्रद्धा, साधना और ज्ञान की अखंड ज्योति के रूप में उज्जैन को आलोकित करती रही है।