धर्म डेस्क, इंदौर। Brihaspativar Vrat Katha: हिंदू धर्म में सप्ताह के प्रत्येक दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित होता है। गुरुवार का दिन देवताओं के गुरु बृहस्पति (श्रीहरि विष्णु) को समर्पित माना जाता है। इस दिन पीले वस्त्र पहनने, बेसन से बने पकवान का भोग लगाने, कथा सुनने और व्रत रखने से जीवन में सुख, समृद्धि और सौभाग्य आता है। अग्निपुराण और अन्य धर्मशास्त्रों में इस व्रत को विशेष फलदायी माना गया है।
अग्निपुराण के अनुसार अनुराधा नक्षत्र युक्त गुरुवार से व्रत की शुरुआत कर लगातार 7 गुरुवार तक व्रत करने से बृहस्पति ग्रह के दोष शांत होते हैं और व्यक्ति के जीवन में शुभ फलों की प्राप्ति होती है। व्रत के दिन कथा पढ़ना अनिवार्य माना गया है, अन्यथा व्रत अधूरा माना जाता है।
प्राचीन समय में एक नगर में एक दानशील व्यापारी रहता था, जिसकी पत्नी अत्यंत कंजूस थी। व्यापारी विदेश व्यापार के लिए गया, तब साधु वेश में बृहस्पति देव उसकी पत्नी से भिक्षा मांगने आए। पत्नी ने दान से परेशान होकर धन नष्ट करने का उपाय बताने को कहा। बृहस्पति देव ने उसे 7 गुरुवार तक कुछ गलत आचरण (मांस खाना, मदिरा पीना, पीले मिट्टी से बाल धोना आदि) करने की सलाह दी। ऐसा करते ही उसका सारा धन नष्ट हो गया। वह मृत्यु को प्राप्त हो गई।
व्यापारी विदेश से लौटकर आया, तो उसकी संपत्ति खत्म हो चुकी थी। वह अपनी बेटी के साथ दूसरे नगर जाकर लकड़ी बेचने लगा। एक दिन उसकी बेटी ने दही खाने की इच्छा जताई, लेकिन उसके पास पैसे नहीं थे। दुखी होकर वह जंगल में रोने लगा। साधु रूप में बृहस्पति देव ने उसे व्रत कथा और पूजा का तरीका बताया। दो पैसे के चने-गुड़ और जल में शक्कर मिलाकर प्रसाद तैयार कर बांटने को कहा।
कथा करने से व्यापारी की किस्मत बदलने लगी, लेकिन एक बार भूल से व्रत छूट गया। उसी दिन राजा के महल में भोज था। वहां रानी का हार गायब हो गया। शक व्यापारी व उसकी पुत्री पर गया। उन्हें जेल में डाल दिया गया। जेल में भी उन्होंने बृहस्पति व्रत किया।
राजा ने व्यापारी और उसकी पुत्री को मुक्त कर दिया। उन्हें आधा राज्य सौंपा और बेटी का विवाह उच्च कुल में करवा कर बहुमूल्य दहेज दिया। इस कथा से स्पष्ट है कि गुरुवार व्रत श्रद्धा और विश्वास से करने पर जीवन के सारे कष्ट दूर हो सकते हैं। बृहस्पति देव की कृपा से खोया वैभव प्राप्त हो सकता है।
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