भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम की राजधानी गुवाहाटी से महज 10 किलोमीटर दूरी पर है नीलांचल पहाड़ी। पहाड़ी की तराई में जहां राजमार्ग है वहीं कामाख्या मंदिर का प्रवेश द्वार है। समुद्र तल से इस शक्तिपीठ की ऊंचाई 525 फीट है। कामाख्या शक्तिपीठ 52 शक्तिपीठों में से एक और सबसे पुरानी शक्तिपीठ है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब सती के पिता दक्ष ने अपनी पुत्री सती और उनके पति शंकरजी को यज्ञ में अपमानित किया, तब देवी सती ने यज्ञ की अग्नि में आत्म-दाह कर लिया। इस बात से शंकरजी काफी दुखी हो गए और माता सती की मॄत देह को लेकर पृथ्वी और ब्रह्मांड में भटकत रहे। तब माता सती के शरीर के 51 हिस्से अलग-अलग जगह पर गिरे जो 51 शक्ति पीठ कहलाए।
कामाख्या शक्तिपीठ में मां सती का पेट के नीचे वाला का भाग गिरा। उसी स्थल पर वर्तमान में कामाख्या मन्दिर है। इस मंदिर के गर्भ गृह में एक कुंड है जिसमें से जल निकलता रहता है। इसे योनिकुंड कहते है। यह अमूमन लाल वस्त्र व फूलों से ढका रहता है।
धरातल से 17 सीढ़ियां नीचे जाने पर देवीपीठ के दर्शन होते हैं। मान्यता है कि कामदेव ने यहां देवी कामाक्षी का मंदिर बनवाकर उनकी आराधना की थी। इससे देवी प्रसन्न हुईं और कामदेव को दिव्यरूप प्रदान किया।
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यही कारण है कि इस दिव्य पुण्यभूमि स्थल का नाम कामरूप और देवी का नाम आनंदख्या पड़ा जिसे बाद में कामाख्या कहा जाने लगा। कामख्या मंदिर का तांत्रिक महत्व भी बहुत अधिक है। प्राचीन काल से ही तीर्थस्थान के रूप में प्रसिद्ध यह मंदिर वर्तमान में तंत्र सिद्धि का एक महत्वपूर्ण स्थल है। भारत के अलग-अलग स्थानों से तांत्रिक इस श्मशान में आकर तंत्र साधनाएं करते हैं।
मंदिर परिसर में कामाख्या देवी के मुख्य मंदिर के अलावा और भी कई मंदिर है इनमे से अधिकतर मंदिर देवी के विभिन्न स्वरूपों के है। पांच मंदिर भगवान शिव के और तीन मंदिर भगवान विष्णु के हैं।
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यह मंदिर कई बार टूटा और बना है। इसे 16 वीं सदी में नष्ट किया गया था। इसका पुन: निर्माण 17वीं सदी में राजा नर नारायण द्वारा किया गया।