हिंदू धर्म में त्रिदेव के रूप में ब्रह्मा, विष्णु और महेश पूजे जाते हैं। हिंदू पुराणों के अनुसार क्षीरसागर में शेष शैय्या पर विष्णु जी की नाभि से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई थी। इस पृथ्वी पर ब्रह्मा जी का एकमात्र मंदिर पुष्कर में है।
ब्रह्माजी के पुत्रों में विश्वकर्मा, अधर्म, अलक्ष्मी, आठवसु, चार कुमार, 14 मनु, 11 रुद्र, पुलस्य, पुलह, अत्रि, क्रतु, अरणि, अंगिरा, रुचि, भृगु, दक्ष, कर्दम, पंचशिखा, वोढु, नारद, मरिचि, अपान्तरतमा, वशिष्ट, प्रचेता, हंस, यति इस तरह कुल मिलाकर कुल 59 पुत्र थे।
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वहीं उनके अंगों से भी पुत्रों की उत्पत्ति हुई जिनमें क्रमशः मन से मारिचि। नेत्र से अत्रि। मुख से अंगिरस। कान से पुलस्त्य। नाभि से पुलह। हाथ से कृतु। त्वचा से भृगु। प्राण से वशिष्ठ। अंगुष्ठ से दक्ष। छाया से कंदर्भ। गोद से नारद। इच्छा से सनक, सनन्दन, सनातन और सनतकुमार। शरीर से स्वायंभुव मनु और शतरुपा। ध्यान से चित्रगुप्त। ब्रह्मा जी के 17 पुत्र और एक पुत्री हैं पुत्री का नाम है शतरूपा।
ब्रह्माजी के दिव्य स्वरूप हम सभी ने देखा है। लेकिन उनके दिव्य स्वरूप और उनके हाथों में मौजूद हर चिन्ह कुछ न कुछ कहता है।
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