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धर्म डेस्क। विवाह हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में से एक प्रमुख संस्कार है, जिसे जीवनभर के पवित्र बंधन के रूप में देखा जाता है। आमतौर पर माना जाता है कि प्राचीन काल में केवल तय विवाह (अरेंज मैरिज) ही प्रचलित थे, लेकिन हिंदू धर्मशास्त्र इस धारणा को गलत साबित करते हैं। शास्त्रों में विवाह के सिर्फ एक-दो नहीं, बल्कि पूरे आठ प्रकार बताए गए हैं।
मनुस्मृति और अन्य धर्मग्रंथों में वर्णित विवाह के ये आठ प्रकार ब्रह्म, दैव, आर्ष, प्राजापत्य, असुर, गंधर्व, राक्षस और पैशाच विवाह अपने-अपने नियमों और मान्यताओं के लिए जाने जाते हैं। इनमें पहले चार को उत्तम, जबकि अंतिम चार को अधम या निंदनीय माना गया है। आइए जानते हैं इन सभी विवाह पद्धतियों के बारे में विस्तार से-

ब्रह्म विवाह को सबसे श्रेष्ठ माना गया है। इसमें पिता अपनी पुत्री के लिए योग्य, संस्कारी और विद्वान वर का चयन करता है। वर-वधु की सहमति से वैदिक मंत्रों और विधि-विधान के साथ विवाह संपन्न होता है। आज भी अधिकतर हिंदू विवाह इसी परंपरा के अनुसार किए जाते हैं।
जब किसी यज्ञ या धार्मिक अनुष्ठान के बाद, यज्ञ कराने वाले पुरोहित को कन्या प्रदान की जाती है, तो उसे दैव विवाह कहा जाता है। इसमें भी कन्या की सहमति होती है और इसे धार्मिक दृष्टि से स्वीकार्य माना गया है।
इस विवाह में वर पक्ष द्वारा कन्या के पिता को धर्मकार्य के प्रतीक रूप में एक गाय और एक बैल भेंट किए जाते थे। इसके बाद विधिवत कन्यादान किया जाता था। यह विवाह मुख्यतः ऋषियों और तपस्वियों के बीच प्रचलित था।
यह ब्रह्म विवाह के समान ही होता है, लेकिन इसमें कन्या के पिता नवदंपति को गृहस्थ धर्म के पालन का विशेष उपदेश देते हैं। इसके बाद कन्यादान कर विवाह संपन्न किया जाता है।
इस प्रकार के विवाह में वर पक्ष द्वारा कन्या या उसके परिवार को धन या संपत्ति दी जाती है। यहां वर की योग्यता से अधिक धन को महत्व दिया जाता है, इसलिए इसे धर्मसम्मत नहीं माना गया है।
गंधर्व विवाह को आज की भाषा में लव मैरिज कहा जा सकता है। इसमें स्त्री और पुरुष आपसी प्रेम और सहमति से विवाह बंधन में बंधते हैं। शकुंतला-दुष्यंत और भगवान श्रीकृष्ण-रुक्मिणी का विवाह इसके प्रसिद्ध उदाहरण हैं।
इस विवाह में कन्या की इच्छा के विरुद्ध बलपूर्वक, छल या अपहरण द्वारा विवाह किया जाता है। इसी कारण इसे अधम और धर्मविरुद्ध माना गया है।
पैशाच विवाह सबसे निंदनीय माना गया है। इसमें कन्या की सहमति के बिना, धोखे से या बेहोशी की अवस्था में संबंध बनाकर विवाह किया जाता है। हिंदू धर्म में यह पूरी तरह निषिद्ध है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि प्राचीन भारत में विवाह की अवधारणा बेहद व्यापक और विविध थी। प्रेम विवाह का विचार भी शास्त्रों में पहले से ही मौजूद था, जिसे गंधर्व विवाह के रूप में मान्यता दी गई थी।