धर्म डेस्क। अक्सर यह सुनने में आता है किसी पुरुष या महिला के विवाह के बाद भी किसी दूसरे व्यक्ति के साथ प्रेम संबंध हैं यानी कि एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स (extramarital affair)। क्या आप जानते हैं कि कई बार व्यक्ति ऐसा सोच-समझकर नहीं करता बल्कि ग्रह-नक्षत्रों की खराब स्थितियां उससे यह सब करवाती हैं. आइए जानते हैं कि ये कौन से ग्रह हैं? इनकी कौन दी दशाएं हैं और ये व्यक्ति के जीवन को किस कदर प्रभावित करती हैं?
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शुक्र देव या मंगल देव का वक्री होते हैं, तो यह पिछले जन्म के संबंधों से जुड़े अधूरे कर्म को दर्शाता हैं। जो इस जन्म में असामान्य प्रेम व्यवहार के रूप में सामने आ सकते हैं। जो लोग ज्योतिष में पारंगत हैं, वो जानते हैं कि एक विभागीय चार्ट होता है, जिसे त्रिंशांश या D30 कहा जाता है। इस चार्ट का अध्ययन करके यह आसानी से पता लगाया जा सकता है कि व्यक्ति के अंदर विवाहेतर संबंधों की प्रवृत्ति होगी या नहीं।
यह अक्सर सातवें भाव या उसके स्वामी के पीड़ित होने से होता है। विशेषकर जब शनि देव का प्रभाव हो, जिससे ऊब या भावनात्मक शून्यता उत्पन्न होती है। कमजोर शुक्र देव या चंद्र देव यदि निष्क्रिय राशियों में हों, तो यह वैवाहिक जीवन में ऊब को जन्म देता हैं। जिससे बाहरी उत्तेजना आकर्षक लगने लगती है।
लग्न, अष्टम या बारहवें भाव में शक्तिशाली मंगल देव के होने से शारीरिक जरूरतें तीव्र होती हैं। यदि गुरु का संतुलनकारी प्रभाव न हो, तो यह इच्छा नैतिक सीमाओं को पार कर सकती है।
राहु देव का पंचम या बारहवें भाव में प्रभाव रोमांस में जोखिम भरे व्यवहार और नवीनता की तलाश को बढ़ाता है। बुध और शुक्र देव की युति हो या यदि वे पीड़ित हों, तो ऐसा समीकरण उथले और अनैतिक संबंधों को जन्म देता है।
जब मंगल और राहु देव दशम भाव या उसके स्वामी को प्रभावित करें या शुक्रदेव मकर या वृश्चिक राशि में हो, तो प्रेम संबंध अहंकार या नियंत्रण दिखाने का माध्यम बन जाते हैं।
दशम भाव में शुक्र-शनि या शुक्र-बुध की युति कार्यस्थल पर भावनात्मक उलझाव को दर्शाती है। यदि सप्तम भाव का स्वामी दशम भाव से जुड़ता है, तो प्रेम और करियर अक्सर एक साथ चलते हैं।