एक बार फिर साफ हो गया कि भारत आस्था विश्वास और संस्कृति का देश है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की आबादी 1.2 अरब हैं, जिसमें से केवल 33,000 लोग ऐसे हैं, जो नास्तिक हैं। नास्तिक यानी ईश्वर के अस्तित्व को न मानने वाला।
ईश्वर के अस्तित्व को न मानने वाल इन लोगों में आधी महिलाओं हैं। यानी प्रति 10 में से 7 नास्तिक महिला है। नास्तिक लोगों की अधिक संख्या गांवों में रहती है। यह डेटा हाल ही में भारत सरकार के जनगणना विभाग द्वारा जारी किया गया है।
गौर करने वाली बात है कि वर्ष 2001 की जनगणना में जहां नास्तिक बहुत कम थे, तो वहीं एक दशक में नास्तिकों की संख्या तेजी से बढ़ी है।
इस समय महाराष्ट्र एक ऐसा राज्य है जहां नास्तिकों की संख्या अन्य प्रदेशों से ज्यादा है। यहां 9,652 व्यक्ति नास्तिक है। दूसरा स्थान मेघालय का है जहां 9,089 लोग नास्तिक हैं। इसी तरह क्रमशः केरल में 4,896 उत्तरप्रदेश में 2,245 तमिलनाडू में 1,297 पश्चिम बंगाल में 784 नास्तिक हैं।
ओडिशा में 651, उत्तराखंड में 572, पंजाब में 569, एनसीआर और दिल्ली में 541। गुजरात में 405। अरूणाचल प्रदेश में 348। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में 333। आंध्रप्रदेश में 256। हिमाचल प्रदेश में 252।
असम में 250, हरियाणा में 180, मध्यप्रदेश में 136, कर्नाटक में 112, चंडीगढ़ में 89, राजस्थान में 77, गोवा में 61, त्रिपुरा में 53, बिहार में 47, पोंडेचरी में 44, मणिपुर में 39, झारखंड में 36, जम्मू और कश्मीर में 30, मिजोरम में 30, नगालैंड में 21, छत्तीसगढ़ में 14, सिक्कम में 10, दादर एवं नगर हवेली में 4 और लक्ष्यद्वीप में 1 व्यक्ति ही नास्तिक है।
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जबकि 2012 ग्लोबल धार्मिकता सूचकांक के मुताबिक भारतीयों का 3% भगवान में विश्वास नहीं किया था।