
धर्म डेस्क। भारत में मंदिरों की अपनी-अपनी अनोखी मान्यताएं और परंपराएं हैं, लेकिन राजस्थान का करणी माता मंदिर इन सबसे बिल्कुल अलग है। बीकानेर से करीब 30 किलोमीटर दूर देशनोक में स्थित यह मंदिर दुनिया भर में ‘चूहों वाला मंदिर’ या मूषक मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। यहां करीब 20,000 चूहे रहते हैं और हैरानी की बात यह है कि भक्त इन्हीं चूहों द्वारा खाया गया प्रसाद श्रद्धा से ग्रहण करते हैं।
आम तौर पर घर में एक चूहा भी दिख जाए तो लोग परेशान हो जाते हैं, लेकिन इस मंदिर में चूहे माता की संतान माने जाते हैं। इतने चूहों के बावजूद यहां न बदबू आती है और न ही कभी किसी बीमारी के फैलने का मामला सामने आया है। कहा जाता है कि देश में जब प्लेग फैला था, तब भी यहां भक्तों की भीड़ लगी रहती थी और लोग बिना डर चूहों का झूठा प्रसाद खाते थे।

मान्यता है कि करणी माता मां जगदंबा का साक्षात अवतार थीं। उनका जन्म 1387 में चारण परिवार में हुआ था और बचपन का नाम रिघुबाई था। विवाह के बाद उन्होंने सांसारिक जीवन त्याग दिया और खुद को भक्ति व सेवा में समर्पित कर दिया। जनकल्याण और चमत्कारिक शक्तियों के कारण लोग उन्हें करणी माता कहने लगे। कहा जाता है कि उन्होंने 151 वर्षों तक जीवन जिया और 1538 में ज्योतिर्लीन हो गईं।
करणी माता बीकानेर राजघराने की कुलदेवी हैं। वर्तमान मंदिर का निर्माण 20वीं सदी की शुरुआत में महाराजा गंगा सिंह ने करवाया था। संगमरमर का भव्य प्रवेश द्वार, चांदी के किवाड़ और माता का स्वर्ण छत्र इसकी खास पहचान हैं।
मंदिर में रहने वाले चूहों को ‘काबा’ कहा जाता है। यहां मान्यता है कि मृत्यु के बाद करणी माता के भक्त चूहे के रूप में जन्म लेते हैं और फिर मानव योनि प्राप्त करते हैं। सफेद चूहा दिखना अत्यंत शुभ माना जाता है और इसे मनोकामना पूर्ति का संकेत माना जाता है।
कहा जाता है कि करणी माता के सौतेले पुत्र लक्ष्मण की मृत्यु के बाद यमराज ने उन्हें चूहे के रूप में पुनर्जीवन दिया था। तभी से चूहे माता की संतान माने जाते हैं। सुबह मंगला आरती और शाम की संध्या आरती के समय चूहे बड़ी संख्या में बाहर आते हैं और मंदिर का दृश्य अद्भुत हो जाता है।
करणी माता मंदिर न सिर्फ आस्था का केंद्र है, बल्कि यह दिखाता है कि विश्वास और श्रद्धा के सामने डर और घृणा भी हार मान लेते हैं।