धर्म डेस्क। इस साल करवा चौथ (Karwa Chauth 2025) का व्रत शुक्रवार, 10 अक्टूबर को रखा जाएगा। देशभर में यह पर्व बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है।
विवाहित महिलाएं इस दिन अपने पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। वहीं, आधुनिक समय में अविवाहित लड़कियां भी मनचाहा जीवनसाथी पाने की इच्छा से करवा चौथ का व्रत रखती हैं।
इस व्रत की शुरुआत सुबह सरगी से होती है और समापन रात को चंद्र दर्शन के बाद छलनी से पति का चेहरा देखकर किया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि करवा चौथ पर पति का चेहरा छलनी से ही क्यों देखा जाता है? आइए जानते हैं इस परंपरा के पीछे का रहस्य।
हर साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ मनाया जाता है। यह दिन करवा माता को समर्पित होता है। मान्यता है कि इस दिन करवा माता की पूजा करने से पति की आयु लंबी होती है और वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
व्रत काल - सुबह 06:19 बजे से रात 08:13 बजे तक
सरगी का समय - सुबह 05:30 बजे से पहले
पूजा का शुभ मुहूर्त - शाम 05:57 बजे से 07:11 बजे तक
चंद्रोदय - रात 08:13 बजे
इस शुभ समय पर महिलाएं करवा माता की विधिवत पूजा करती हैं, चंद्र देव को अर्घ्य देती हैं और पति का चेहरा छलनी से देखकर व्रत खोलती हैं।
करवा चौथ के व्रत में छलनी का विशेष धार्मिक महत्व है। कहा जाता है कि छलनी से चंद्र दर्शन करने के बाद जब महिला अपने पति का चेहरा देखती है, तो यह दृश्य उसके लिए 'प्रतिबिंबित सौभाग्य” का प्रतीक बन जाता है। इसका अर्थ है कि जैसे चंद्रमा अमरता और शीतलता का प्रतीक है, वैसे ही पति के जीवन में स्थिरता और लंबी आयु बनी रहती है।
इसके पीछे एक और मान्यता है - छलनी का जाल यह दर्शाता है कि जीवन में पति-पत्नी के बीच आने वाली सभी बाधाएं और नकारात्मकता छलनी की तरह छन्न हो जाएं और उनका वैवाहिक जीवन प्रेम, विश्वास और समर्पण से भरा रहे।