Laxmeshwar Temple:छत्तीसगढ़ का काशी,लक्ष्मण ने की थी लक्ष्मेश्वर की स्थापना,मोक्षदायिनी नगरी
Laxmeshwar Temple: पातालगामी लक्ष्य छिद्र हैं जिसमें जितना भी जल डाला जाय वह उसमें समाहित हो जाता है।
By Manoj Kumar Tiwari
Edited By: Manoj Kumar Tiwari
Publish Date: Fri, 17 Feb 2023 10:15:05 AM (IST)
Updated Date: Fri, 17 Feb 2023 10:15:05 AM (IST)

Laxmeshwar Temple: जांजगीर-चाम्पा। लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर खरौद में स्थित है। शिवरीनारायण से तीन किमी.की दूरी पर खरौद नगर स्थित है। यह नगर प्राचीन छत्तीसगढ़ के पांच ललित कला केन्द्रों में से एक है और मोक्षदायी नगर माने जाने के कारण इसे छत्तीसगढ़ का काशी भी कहा जाता है।
ब्रह्म हत्या से छुटकारा पाने
ऐसा माना जाता है कि यहां रामायण कालीन शबरी उद्घार और लंका विजय के निमित लक्ष्मण ने खर और दूषण के वध के पश्चात ब्रह्म हत्या से छुटकारा पाने लक्ष्मणेश्वर महादेव की स्थापना की थी। प्राचीन काल के शिवलिंग की मान्यता इतनी है कि खरौद को छत्तीसगढ़ का काशी कहा जाता है। यह मंदिर संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग से संरक्षित है।
मंदिर110 फीट लंबा और 48 फीट चौड़ा
यह मंदिर नगर के प्रमुख देव के रूप में पश्चिम दिशा में पूर्वाभिमुख र्स्थित है। मंदिर में चारों ओर पत्थर की मजबूत दीवार है। इस दीवार के अंदर 110 फीट लंबा और 48 फीट चौड़ा चबूतरा है जिसके ऊपर 48 फीट ऊंचा और 30 फीट गोलाई लिए मंदिर स्थित है। मंदिर के गर्भगृह में एक विशिष्ट शिवलिंग की स्थापना है। इस शिवलिंग की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि शिवलिंग में एक लाख छिद्र है इसीलिये इसका नाम लक्षलिंग भी है।
मान्यता है कि मंदिर के गर्भगृह में श्रीराम के अनुज लक्ष्मण के द्वारा स्थापित लक्ष्यलिंग स्थित है। लक्ष्मण ने खर दूषण के वध के बाद ब्रह्म हत्या के पाप से बचने इसकी स्थापना लक्ष्मण ने की थी। इसलिए इसे लक्ष्मेश्वर महादेव भी कहा जाता है। इसमें एक लाख छिद्र हैं।
पातालगामी लक्ष्य छिद्र
इसमें एक पातालगामी लक्ष्य छिद्र हैं जिसमें जितना भी जल डाला जाय वह उसमें समाहित हो जाता है। इस लक्ष्य छिद्र के बारे में कहा जाता है कि मंदिर के बाहर स्थित कुंड से इसका संबंध है। इन छिद्रों में एक ऐसा छिद्र भी है जिसमें सदैव जल भरा रहता है। इसे अक्षय कुंड कहते हैं।
स्वयंभू लक्ष्यलिंग के आस पास जलहरी बनी है। मंदिर के बाहर परिक्रमा में राजा खड्गदेव और उनकी रानी हाथ जोड़े स्थित हैं। छत्तीसगढ़ में इस नगर की काशी के समान मान्यता है। कहते हैं भगवान राम ने इस स्थान में खर और दूषण नाम के असुरों का वध किया था इसी कारण इस नगर का नाम खरौद पड़ा। शिवरीनारायण से तीन किमी की दूरी पर खरौद नगर स्थित है। यह नगर प्राचीन छत्तीसगढ़ के पांच ललित कला केन्द्रों में से एक है और मोक्षदायी नगर माने जाने के कारण इसे छत्तीसगढ़ का काशी भी कहा जाता है।
शिलालेख
मंदिर के दक्षिण तथा वाम भाग में एक-एक शिलालेख दीवार में लगा है। दक्षिण भाग के शिलालेख की भाषा अस्पष्ट है अतः इसे पढ़ा नहीं जा सकता। उसके अनुसार इस लेख में आठवीं शताब्दी के इन्द्रबल तथा ईशानदेव नामक शासकों का उल्लेख हुआ है। मंदिर के बाएं भाग का शिलालेख संस्कृत भाषा में है। इसमें 44 श्लोक हैं। चन्द्रवंशी हैहयवंश में रतनपुर के राजाओं का जन्म हुआ था। इनके द्वारा अनेक मंदिर, मठ और तालाब आदि निर्मित कराने का उल्लेख इस शिलालेख में है।