वेद औऱ पुराण एक ही आदिपुरुष यानी ब्रह्माजी द्वारा रचित हैं। इनमें वर्णित ज्ञान, आख्यानों, तथ्यों, शिक्षाओं, नीतियों और घटनाओं आदि में एकरूपता है, हालांकि वेद और पुराण एक-दूसरे से भिन्न हैं।
वेद और पुराण कुछ इस तरह हैं भिन्न
सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी ने पुराणों की रचना वेदों से पूर्व की है। पुराण वेदों का ही विस्तृत और सरल स्वरूप हैं। यानी वेदों में जिस ज्ञान का संक्षिप्त रूप में वर्णन है, पुराणों में उसका विस्तृत उल्लेख किया गया है।
वेद अपौरुषेय और अनादि हैं यानी इनकी रचना किसी मानव ने नहीं की है। जबकि पुराण अपौरुषेय और पौरुषेय दोनों प्रकार के कहे गए हैं। अर्थात् पुराण मानव निर्मित न होने पर भी मानव निर्मित हैं। दरअसल वर्तमान में जिन अठारह पुराणों का पठन, श्रवण और चिंतन करते हैं। वे एक ही पुराण के अठारह खंड हैं।
सृष्टि के आरंभ में ब्रह्माजी ने केवल एक ही पुराण की रचना की थी। यह पुराण अपौरुषेय था। इसमें एक अरब (सौ करोड़) श्वलोक वर्णित थे। किंतु जनमानस के कल्याण और हित के लिए महर्षि वेद व्यास ने इस पुराण को अठारह खंड़ो में विभाजित कर इसे सरल ढंग से प्रस्तुत किया।
महर्षि वेदव्यास ने इन पुराणों में श्लोकों की संख्या केवल चार लाख तक सीमित कर दी। इस प्रकार ब्रह्माजी द्वारा रचित अपौरुषेय पुराण महर्षि वेदव्यास द्वारा अठारह खंडो में विभक्त किए जाने के बाद पौरुषेय कहलाया। इसलिए पुराण अपौरुषेय कहलाया। इसलिए पुराण अपौरुषेय और पौरुषेय दोनों प्रकार के कहे जाते हैं।
ब्रह्माजी द्वारा रचित वेदों में वर्णित वेद मंत्रों, धार्मिक कर्मकांडों और शिक्षाओं का अनुसरण करने वाले योगी पुरुष ऋर्षि कहलाए, जबकि पुराणों में वर्णित पौराणिक ज्ञान, मंत्रों, उपासना विधि, व्रत आदि का अनुसरण करने वाले योगियों को मुनि कहा गया। ब्रह्माजी से श्रुतियों का ज्ञान प्राप्त कर ऋर्षियों ने उसे अर्थ प्रदान किया और समयानुसार संसार में प्रकट किया।
वेदों की अपेक्षा पुराण अधिक परिवर्तनशील और स्मृतिमूलक हैं, इसलिए समयानुसार इनमें अनेक परिवर्तन होते रहे हैं। परिवर्तनशील प्रवृत्ति होने के कारण ही पुराणों को इतिहास के अधिक निकटतम कहा गया है।