धर्म डेस्क। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami 2025) पर देशभर में भक्त कान्हा की पूजा-अर्चना और भजन-कीर्तन में लीन हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित श्री द्वारकाधीश गोपाल मंदिर में जन्म के बाद पूरे पांच दिनों तक कान्हा की शयन आरती नहीं होती। यह परंपरा पिछले 110 वर्षों से चली आ रही है और आज भी श्रद्धालु पूरे आस्था भाव से इसे निभाते हैं।
मंदिर के पुजारी पं. अर्पित जोशी बताते हैं कि इस परंपरा के पीछे धार्मिक मान्यता जुड़ी है। जन्म के बाद भगवान श्रीकृष्ण शैशव अवस्था में रहते हैं और शिशु के सोने-जागने का कोई निश्चित समय नहीं होता। ऐसे में नियत समय पर शयन आरती संभव नहीं होती। इसी कारण पांच दिनों तक आरती बंद रहती है और भक्त केवल कान्हा से लाड़-प्यार करते हैं।
इस दौरान भगवान को दूध, माखन और अन्य भोग अर्पित किए जाते हैं। मान्यता है कि पांचवें दिन यानी बछबारस पर बालकृष्ण बड़े हो जाते हैं। इसी दिन उनका विशेष अभिषेक होता है और उन्हें सिंधिया राजवंश की चांदी की पादुका पहनाई जाती है। इसके बाद भगवान मंदिर के मुख्य द्वार पर बंधी माखन-मटकी फोड़ते हैं और दोपहर में शयन आरती होती है। यही साल का एकमात्र अवसर है जब दिन में शयन आरती की जाती है।
श्री द्वारकाधीश गोपाल मंदिर का निर्माण संवत 1909 में सिंधिया राजवंश की महारानी बायजाबाई सिंधिया ने कराया था। यह भव्य और कलात्मक मंदिर आज भी अपनी परंपराओं और वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। यहां भगवान द्वारकाधीश अपनी पटरानी रुक्मिणीजी के साथ विराजमान हैं।
रोजाना रात्रि 8 बजे शयन आरती के बाद भगवान को चांदी के रथ में विराजित कर शयन कक्ष में ले जाया जाता है। लेकिन जन्माष्टमी से बछबारस तक यह परंपरा स्थगित रहती है और भगवान गर्भगृह में ही विराजित रहते हैं।
उज्जैन के पास स्थित नारायणा गांव को भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता का पवित्र स्थल माना जाता है। कथा है कि सांदीपनि आश्रम में पढ़ाई के दौरान दोनों मित्र यहां लकड़ियां लेने आए थे और रातभर यहीं रुके थे। कहा जाता है कि इसी स्थान पर सुदामा ने छिपकर चने खाए थे। आज यह स्थान कृष्ण भक्तों के लिए तीर्थ बन गया है, जहां जन्माष्टमी पर विशेष आयोजन होता है।