12वीं शताब्दी में बनाया गया अंकोरवाट मंदिर, चूना पत्थर की अनगिनत विशाल चट्टानों से बना है। भूगर्म शास्त्रियों द्वारा किए गए अध्ययन को मानें तो इस विशाल और अद्भुत मंदिर को सिर्फ एक राजा के शासनकाल में तैयार कर लिया गया था।
इतिहास से मिली जानकारी के अनुसार उस समय खमेर साम्राज्य दक्षिण-पूर्व एशिया में सबसे अधिक प्रभावशाली और समृद्ध था। उस समय खमेर साम्राज्य आधुनिक लाओस से लेकर थाईलैंड, वियतनाम, बर्मा और मलेशिया तक फैला हुआ था।
यहां होती थी धान की खेती
- भू-गर्भ वैज्ञानिकों का मानना है कि ये पूरा इलाका प्राचीन भूमिगत नहरों से जुड़ा हुआ है।
- खमेर साम्राज्य के लोग धान की खेती करते थे। उसके लिए वह इन्हीं नहरों का पानी इस्तेमाल करते थे।
- धान की खेती के बारे में इस बात से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि खमेर निवासी कुलेन पर्वत के पेड़ काटकर वहां भी धान बोने लगे।
- कहते हैं अंकोरवाट मंदिर कहीं खो गया जिसे बाद में घने जंगलों के बीच 16वीं शताब्दी में पुन: खोजा जा सका।
मंदिर पर राष्ट्रध्वज है अंकित
- विश्व का सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर कम्बोडिया देश के अंकोर के सिमरीप शहर में मीकांग नदी के किनारे बनाया गया है।
- इस मंदिर का वैसे तो नाम अंकोरवाट है लेकिन पहले ‘यशोधरपुर’ नाम से भी जानते थे।
- मंदिर की बनावट और स्थापत्य कला काफी मनमोहक है। यह ऐतिहासिक मंदिर कंबोडिया देश के धरोहर है। मंदिर में कम्बोडिया देश के राष्ट्र ध्वज पर अंकित किया गया है।
विश्व धरोहर में है शामिल
- यह मंदिर भगवान विष्णु जी को समर्पित है। मंदिर में भारत की झलक दिखाई जाती है। मंदिर की दीवारों पर सुंदर अप्सराओं के चित्र उत्कीर्ण हैं।
- मंदिर की दीवारों पर असुरों और देवताओं के बीच समुद्र मंथन की कालकृति भी बनाई गई थी।
- यह मंदिर यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थलों में से एक है।
- अंकोरवाट मंदिर को राजा सूर्यवर्मन द्वितीय के साशन काल में सन् 1112 से 1153 के बीच करवाया गया था।
- मंदिर के चारों तरफ खाई बनवाई गई थी। जिसकी चौड़ाई लगभग 700 फीट है दूर से देखने पर ये खाई किसी झील के जैसी दिखाई पड़ती है।
- खाई को पार करने के लिए मंदिर के पश्चिम में पुल बनाया गया था, मंदिर का निर्माण कार्य सूर्यवर्मन द्वितीय ने प्रारम्भ किया था।
- यह मंदिर मौलिक रूप से हिन्दू धर्म से जुड़ा पवित्र स्थल है, जिसे बाद में बौद्ध रूप दे दिया गया।
- 15वीं शताब्दी से लेकर 19वीं शताब्दी ईसवी तक थेरवाद के बौद्ध साधुओं ने अंकोरवाट मंदिर की देखभाल की, इसके बाद कई आक्रमण होने के बावजूद इस मंदिर को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा।