नईदुनिया प्रतिनिधि, ग्वालियर। जब भी भगवान जगन्नाथ का नाम आता है, तो सबसे पहले ओडिशा (Odisha) के पुरी मंदिर की भव्यता और रथयात्रा की छवि आंखों के सामने आ जाती है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि मध्य प्रदेश के ग्वालियर (Gwalior) जिले के कुलैथ गांव में भी भगवान जगन्नाथ अपने स्वरूप में विद्यमान हैं और यहां हर साल पुरी की तर्ज पर रथयात्रा भी निकाली जाती है। यह मंदिर आज भी स्थानीय श्रद्धालुओं के लिए आस्था का बड़ा केंद्र है। वर्षा के मौसम में यहां रथयात्रा (Rath Yatra) के आयोजन से पूरा गांव भक्ति और उत्सव के रंग में रंग जाता है। पुरी के जैसे यहां भी भक्तजन प्रभु को रथ में बैठाकर पूरे गांव में भ्रमण कराते हैं और यह परंपरा दो शताब्दियों से अधिक समय से जीवित है।
कुलैथ गांव में जगन्नाथजी की स्थापना की कहानी करीब 179 साल पुरानी है और उससे जुड़ी कथा उतनी ही अद्भुत है। इस गांव के किशोरी लाल बताते हैं कि यह मंदिर सांवलेदास के समर्पण और तप का परिणाम है, जिन्होंने बचपन में माता-पिता के स्वर्गवास की सूचना मिलने पर यह मान लिया कि वे भगवान जगन्नाथ के पास हैं।
सन 1816 में मात्र नौ साल की उम्र में सांवलेदास ने यह प्रण लिया कि वे दंडवत करते हुए पुरी पहुंचेंगे। यात्रा के दौरान एक साधु रामदास महाराज से भेंट हुई, जिन्होंने बताया कि यदि वे सात बार पुरी की यात्रा करेंगे, तो उन्हें चमत्कार का अनुभव होगा। सांवलेदास ने सात बार पुरी यात्रा की। 1844 की यात्रा के दौरान उन्हें स्वप्न में आदेश मिला कि वे कुलैथ गांव में भगवान जगन्नाथ का मंदिर बनवाएं।
मंदिर निर्माण के प्रति उनकी संकोच भावना के चलते उन्होंने दो साल तक निर्णय नहीं लिया, लेकिन 1846 में फिर एक स्वप्न दिखा, जिसमें बताया गया कि यदि वे चावल के एक मटके को घर के किसी कोने में रखेंगे तो वह चार भागों में विभाजित हो जाएगा। ऐसा ही हुआ और इस चमत्कार के बाद उनका विश्वास दृढ़ हो गया। बाद में उन्हें फिर सपना आया कि सांक नदी के पास चंदन की लकड़ियों से बनी मूर्तियां रखी हैं। उन्होंने उन्हें खोजकर बाहर निकाला और उनके हाथ-पैर बनवाकर उन्हें कुलैथ गांव में स्थापित कर दिया। तभी से यहां भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा विराजमान हैं।
गांव के लोगों ने बताया कि हर साल जब पुरी में रथयात्रा (Rath Yatra) के दौरान रथ करीब साढ़े तीन घंटे के लिए रुकता है, तो यह माना जाता है कि प्रभु कुलैथ (Kuleth Mandir) पधारते हैं। उसी समय कुलैथ मंदिर की तीनों मूर्तियों की आकृति में परिवर्तन देखने को मिलता है और उनका वजन भी बढ़ जाता है। यही नहीं, यहां आज भी चावल से भरे मटके का अटका (प्रसाद) चढ़ाने पर वह चार भागों में स्वतः विभाजित हो जाता है। यह घटना आज भी ग्रामीणों और भक्तों के लिए आस्था और चमत्कार का प्रतीक है।