मल्टीमीडिया डेस्क। जब महाभारत की लड़ाई के बाद भगवान कृष्ण घर लौटे, उनकी पत्नी रुक्मणी ने उनसे सवाल किया। आप गुरु द्रोण और भीष्म की मृत्यु का कारण कैसे बन गए। ये धर्मी लोग थे और पूरे जीवन धर्म के पीछे खड़े रहे। फिर उनके पुण्यों का क्या हुआ। शुरू में भगवान कृष्ण ने रुक्मणी के सवालों से बचने की कोशिश की।
मगर, जब रुक्मणी नहीं मानी और अपने सवालों के जवाब के लिए पीछे पड़ गईं। तब श्रीकृष्ण ने कहा- इसमें कोई संदेह नहीं है कि उन दोनों ने जीवनभर धर्म का पथ चुना और धर्म के रास्ते से कभी नहीं हटे। मगर, दोनों ने एक ही पाप किया था, जिसने उनके पूरे जीवन के पुण्यों को नष्ट कर दिया।
रुक्मणी ने पूछा- और वह पाप क्या था? भगवान कृष्ण ने उत्तर दिया- जब द्रोपदी का भरी सभा में चीर हरण किया जा रहा था, तो वे दोनों ही वहां उपस्थित थे। वे इसका प्रतिकार कर सकते थे और इस जघन्य पाप को होने से रोक सकते थे। वे दोनों ही सभा में सबसे बड़े थे और इस पाप को होने से रोक सकने में सक्षम थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। इससे उनके सारे पुण्य, सारी अच्छाई को खत्म कर दिया।
तब रुक्मणी ने पूछा कि कर्ण की क्या गलती थी। वह अपने दान के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता था। कोई भी उसके दरवाजे से कभी खाली हाथ नहीं गया। तुमने युद्ध में उसे क्यों मारा? पूरे जीवन के पुण्य भी उसे क्यों नहीं बचा सके।
भगवान कृष्ण ने कहा- इसमें कोई संदेह नहीं है, कर्ण सबसे बड़ा दानवीर था। उसने कभी किसी को खाली हाथ नहीं लौटाया। मगर, जब अभिमन्यू सफलतापूर्वक लड़ते हुए युद्ध के मैदान में गिर गया और मरने वाला था, तो उसने पास में खड़े कर्ण से पानी मांगा।
कर्ण जहां खड़ा था, वहां उसके पास स्वच्छ पानी था। मगर, उसने तब भी मरते हुए अभिमन्यु को पानी नहीं दिया क्योंकि वह अपने दोस्त दुर्योधन को नाराज नहीं करना चाहता था। मरते हुए व्यक्ति को जल न देकर कर्ण ने अपने जीवन में कमाए सभी पुण्यों को नष्ट कर दिया।
बाद में युद्ध में उसका रथ पानी की वजह से ही फंस गया और उसका पहिया निकलने के दौरान ही उसे अर्जुन ने मेरे कहने पर मार दिया। समझें कि अन्याय का एक ही काम आपके जीवनभर के पुण्यों को खत्म कर देता है। यह कहानी कर्म के सिद्धांत का महान उदाहरण है। इसलिए जो धर्म है, जो सही है, वैसे कर्म जागरुक रहते हुए करें।