
धर्म डेस्क। कुरुक्षेत्र के मैदान में जब पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध अपने अंतिम चरण में था, तब एक ऐसी घटना घटी जिसने 'न्याय' और 'दया' की परिभाषा बदल दी। महाभारत के सबसे विवादास्पद और शक्तिशाली पात्रों में से एक, अश्वत्थामा, आज भी कलयुग में भटक रहा है। लेकिन उसे मिली यह अमरता कोई वरदान नहीं, बल्कि उसके द्वारा किए गए जघन्य अपराध का दंड है। आइए जानते हैं उस रात की कहानी जब प्रतिशोध की आग में अश्वत्थामा ने सारी सीमाएं लांघ दी थीं।
महाभारत युद्ध समाप्त हो चुका था, लेकिन अश्वत्थामा के भीतर अपने पिता द्रोणाचार्य की मृत्यु का प्रतिशोध सुलग रहा था। एक रात उसने पांडवों के शिविर पर हमला कर दिया और सो रहे द्रौपदी के पांचों पुत्रों (पांडवों के उत्तराधिकारियों) की निर्मम हत्या कर दी। इस समाचार ने पांडव खेमे में शोक की लहर दौड़ दी। पांचों पुत्रों को खोने के बाद द्रौपदी का विलाप सुनकर अर्जुन ने प्रतिज्ञा ली कि वे अश्वत्थामा का सिर काटकर द्रौपदी के चरणों में अर्पित करेंगे।
अर्जुन ने अश्वत्थामा को पराजित कर उसे बंदी बनाया और पशुओं की तरह बांधकर द्रौपदी के सामने खड़ा कर दिया। अर्जुन ने कहा, "पांचाली, यह अपराधी तुम्हारे सामने है। बोलो, इसे क्या दंड दिया जाए?"
जहां सभा में मौजूद हर व्यक्ति अश्वत्थामा की मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहा था, वहीं द्रौपदी ने कुछ ऐसा किया जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। द्रौपदी ने मस्तक झुकाकर अश्वत्थामा को प्रणाम किया और कहा कि यह हमारे गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र हैं। जिस पुत्र-शोक की ज्वाला में मैं जल रही हूं, मैं नहीं चाहती कि अश्वत्थामा की माता गौतमी को भी वही दुःख सहना पड़े। एक मां के रूप में मैं दूसरी मां की कोख सूनी नहीं कर सकती।"
द्रौपदी के इस उदार निर्णय और क्षमा भाव को देखकर स्वयं भगवान श्रीकृष्ण मुस्कुरा उठे। उन्होंने इसे'क्रोध पर विवेक की विजय' बताया।
हालांकि द्रौपदी ने उसे प्राणदान दे दिया था, लेकिन अश्वत्थामा का अपराध क्षमा योग्य नहीं था। उसने अजन्मे शिशु (अभिमन्यु पुत्र परीक्षित) पर भी ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया था। तब भगवान श्रीकृष्ण ने न्याय करते हुए अश्वत्थामा को दंडित करने का निर्णय लिया। श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा के माथे पर जन्म से मौजूद 'दैवीय मणि' को निकाल लिया। वह मणि उसे हर भय और भूख-प्यास से बचाती थी। दूसरा श्रीकृष्ण ने उसे श्राप दिया कि वह कलयुग के अंत तक पृथ्वी पर भटकता रहेगा। उसके माथे का वह घाव कभी नहीं भरेगा और वह एकांत में, समाज से दूर, भयानक कष्टों के साथ जीवित रहेगा।
माना जाता है कि अश्वत्थामा आज भी जीवित है और अपने किए गए पापों का प्रायश्चित कर रहा है। कई लोककथाओं में दावा किया जाता है कि मध्य प्रदेश के असीरगढ़ किले और कुछ अन्य प्राचीन मंदिरों में आज भी एक रहस्यमयी व्यक्ति को माथे पर गहरा घाव लिए देखा जाता है।
अश्वत्थामा की कहानी हमें सिखाती है कि शक्ति का दुरुपयोग और प्रतिशोध की भावना व्यक्ति को विनाश की ओर ले जाती है, जहां मृत्यु भी एक सुख बन जाती है लेकिन वह उसे प्राप्त नहीं होती।
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