उदयपुर(नवदुनिया न्यूज)। Udaipur Mahamaya Mandir: मंदिरों की नगरी कहे जाने वाले उदयपुर में बना माता महामाया देवी का मंदिर आज भी आस्था और श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। चैत्र नवरात्र में यहां भक्तों का तांता लगा रहता। माता महामाया तीन प्रहर के तीन रूपों में आज भी भक्तों को दर्शन देती है। पडिंत बालमुकुंद ने बताया कि महामाया त्रिपुरा सुंदरी की प्रतिमा विक्रम संवत 1067 चैत्र महीने की द्वादशी को नीम के वृक्ष की जड़ से प्रकट हुई थी। महामाया की प्रतिमा के साथ मां दुर्गा के नौ स्वरूप भी प्रकट हुए थे।
महामाया की प्रतिमा में मां दुर्गा के नौ स्वरूप चरणों के आसपास स्थित है प्रतिमा जिस स्थान पर प्रकट हुई है, आज भी उसी स्थान पर विराजमान है । प्रकट होने से पूर्व माता ने गाय चराने वाले ग्वाले को दर्शन दिए थे। उस समय वह लकड़ी बीनने जंगल में आया था। इसके पश्चात ग्रामीणों को जंगल में नीम के वृक्ष के नीचे प्रतिमा के प्रकट होने का पता चला। जिस स्थान पर वर्तमान में विशाल मंदिर बना हुआ है। यहां एक हजार साल पहले घना बियाबान जंगल हुआ करता था। यहां रहने वाले जानकार बताते हैं कि आज भी माता महामाया अपने भक्तों को तीन रूपों में दर्शन देती है।
पुरातत्व के जानकार बताते हैं कि पाषाण की इस प्रतिमा में विशेष प्रकार के पत्थर का उपयोग किया गया है, जो सूर्य उदय से लेकर अस्त होने तक अपना आकार बदलता है। उदयपुर निवासी सामाजिक कार्यकर्ता गिरधर साहू बताते हैं कि कई वैज्ञानिक देवी के तीन रूप बदलने का परीक्षण आकर कर चुके हैं। लेकिन अभी तक किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सके है। गंजबासौदा से 16 किलोमीटर दूर स्थित उदयपुर कस्बा है जो राजा उदयादित्य द्वारा बनाए गए नीलकंठेश्वर मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।
शिव मंदिर के अलावा यहां रावण टोल, पिसन हारी का मंदिर भी प्रसिद्ध है। राजा उदयादित्य का किला भी है। लेकिन चमत्कारिक मंदिर के रूप में माता महामाया का प्राचीन मंदिर है। जहां माता महामाया आज भी तीन रूपों में दर्शन देती है। राजेश मीणा बताते हैं सच्ची श्रद्धा और आस्था लेकर आने वाले भक्तों को तीन रूपों में ही दर्शन होते हैं। जानकार बताते हैं कि माता सुबह के समय बालावस्था दर्शन देती है माता का चेहरा बाल रूप में नजर आता है ,दोपहर के समय किशोरावस्था में चेहरे का आकार परिवर्तित हो जाता है। शाम के समय माता महामाया का मुख वृद्धावस्था में परिवर्तित हो जाता है। माता महामाया के मंदिर में नवरात्रि के दिनों में भक्तों की खासी भीड़ रहती है। मनोकामना पूर्ति के लिए भक्त मंदिर की चौखट पर आस्था व श्रद्धा के साथ मन्नत का सूत्र बाधते हैं। मंदिर के पुजारी हरिओम बताते हैं कि उनके परिवार के लोग चार पीड़ियों से मंदिर में पूजा कर रहे हैं।
जारी हरि ओम नाथ बताते हैं कि प्राचीन समय में कोई हिंदू राजा माता महामाया की मूर्ति हिंगलाजधाम वर्तमान बलूचिस्तान से अपने राज्य ले जा रहा था। रात के समय राजा ने उदयपुर के जंगल में पड़ाव डाला। तभी माता महामाया ने राजा को सपने में आकर उदयपुर में ही मूर्ति स्थापना करने की बात कही। तब राजा ने कुटिया बनाकर माता की मूर्ति की स्थापना की। इसके बाद किसी ग्वाले को माता ने साक्षात दर्शन दिए। उस ग्वाले ने तत्कालीन राजा उदयादित्य को कुटिया के बारे में बताया। तब उदयपुर के राजा उदयादित्य ने मंदिर का पुर्नउद्धार कराया। तब से माता महामाया भक्तों की मनोकामनाएं पूरी कर रही हैं।
प्राचीन समय में मुस्लिम आक्रंताओं भी यहां आगमन हुआ मुगलों के बढ़ते प्रभाव के कारण यहां के मंदिरों को नष्ट भी किया गया। मुगल काल के दौरान सुल्तान नामक मुस्लिम सेनापति यहां आया उसे यहां चमत्कार देखने को मिला। उसने इस मंदिर का जीर्णोद्धार भी कराया तब से मुस्लिम समाज के लोगों की भी आस्था है। मंदिर को बचाने के लिए पत्थर पर उर्दू भाषा में चेतावनी लिखवा दी। वो पत्थर आज भी मंदिर परिसर में मौजूद है जिसके ऊपर सुअर की आकृति बनी है जिसके आगे उर्दू भाषा में मुस्लिमों के लिए लिखा है कि मंदिर को क्षति पहुंचाना सुअर का मांस खाने के बराबर है। वहीं नीचे गाय की आकृति बनी है जिसके आगे प्राकृत भाषा में हिंदुओं के लिए लिखा है कि मंदिर को क्षति पहुंचाना गाय का मांस खाने के बराबर है के साथ मंदिर में विराजित हैं। मंदिर प्राचीन होने के साथ ही चमत्कारिक भी है। नवरात्रि के दिनों में यहां मेला जैसा भरा रहता है दूर-दूर से लोग मन्नत का सूत्र बांधने आते हैं।