मृत्यु के बाद क्यों जरूरी होता है भरणी श्राद्ध करना
यह एकोदिष्ट उद्देश्य के लिए किया जाता है। व्यक्ति के निधन के पहले वर्ष में भरणी श्राद्ध नहीं किया जाता है।
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Publish Date: Fri, 23 May 2014 01:16:09 PM (IST)
Updated Date: Mon, 15 Sep 2014 11:09:08 AM (IST)

कई लोग अपने जीवन में कोई भी तीर्थ यात्रा नहीं कर पाते। ऐसे लोगों की मृत्यु होने पर उन्हें मातृगया, पितृगया, पुष्कर तीर्थ और बद्रीकेदार आदि तीर्थों पर किए गए श्राद्ध का फल मिले, इसके लिए भरणी श्राद्ध किया जाता है।
भरणी श्राद्ध पितृपक्ष के भरणी नक्षत्र के दिन किया जाता है। यह एकोदिष्ट उद्देश्य के लिए किया जाता है। व्यक्ति के निधन के पहले वर्ष में भरणी श्राद्ध नहीं किया जाता है।
इसका कारण है कि प्रथम वार्षिक वर्षश्राद्ध होने तक मृत व्यक्ति को प्रेतत्व रहता है। ऐसे में पहले वर्ष किसी भी श्राद्ध का अधिकार नहीं होता। ऐसा होने पर भी आग्रहपूर्वक पहले वर्ष भरणी श्राद्ध संपन्न किया जाता है। हालांकि इसके लिए कोई ठोस शास्त्राधार नहीं है।
प्रथम वर्ष के बाद भरणी श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। वास्तव में भरणी श्राद्ध प्रतिवर्ष करने का शास्त्र संकेत देते हैं। किंतु एक ही बार करने वाले व्यक्ति कम से कम प्रथम वर्ष भरणी श्राद्ध न करें।
प्रत्येक वर्ष भरणी श्राद्ध करना हमेशा श्रेयस्कर रहता है। इसे प्रथम महालय में न करते हुए दूसरे वर्ष से अवश्य करें।
नित्य तर्पण में मृत व्यक्ति को पितृत्व का अधिकार प्राप्त होने पर ही उसके नाम का उच्चारण करें। इसे पहले साल न करें। हालांकि कुछ पुरोहितों के मतानुसार सपिंडीकरण तथा षोडशमासिक श्राद्ध आदि सभी विधि की तरह भरणी श्राद्ध भी करवा सकते हैं। तो कोई दोष नहीं है।