धर्म डेस्क। वृंदावन के संत प्रेमानंद महाराज की वाणी बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी को अच्छी लगती है। वह उनकी कही हर बात मानते हैं। रोजाना हजारों लोग उनकी एक झलक पाने के लिए आधी रात को भी सड़कों पर खड़े रहते हैं।
महाराज जी प्रतिदिन लगभग ढाई किलोमीटर पैदल चलकर अनुयायियों को दर्शन देते हैं। सोशल मीडिया पर उनके प्रवचन और सत्संग भी लाखों लोग सुनते और देखते हैं। हाल ही में एक प्रवचन के दौरान उन्होंने तीर्थ यात्रा पर जाने वालों के लिए कुछ अहम सावधानियों का जिक्र किया, जिन्हें अनदेखा करना आध्यात्मिक नुकसान का कारण बन सकता है।
महाराज जी ने कहा कि गृहस्थजन को तीर्थ स्थल या धाम में भंडारे का भोजन नहीं करना चाहिए। यह संतों और विरक्तों के लिए होता है, लेकिन गृहस्थजनों को इसके बजाय दान करना चाहिए। मुफ्त भोजन ग्रहण करने से पुण्य नष्ट हो सकता है। यह आपकी आध्यात्मिक मार्ग में रुकावट का कारण बन सकता है।
तीर्थ यात्रा के दौरान मांस-मदिरा का सेवन, नशा, व्याभिचार या किसी को बुरी नजर से देखना घोर पाप माना जाता है। पवित्र स्थानों पर ऐसी गलतियां न करें।
मंदिर में चढ़ाए गए फूल, तुलसी या प्रसाद पर पैर न रखें। अगर, गलती से गिरा हुआ दिखे तो उसे उठाकर माथे से लगाएं और नदी में प्रवाहित करें। भीड़ के कारण संभव न हो तो मन ही मन क्षमा मांग लें।
महाराज जी के अनुसार, संतों का अपमान कभी नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से भारी आध्यात्मिक हानि हो सकती है।
प्रेमानंद महाराज ने जोर देकर कहा कि तीर्थ यात्रा केवल दर्शन तक सीमित नहीं है। इसमें आचरण, विनम्रता और पवित्रता का पालन ही उसे सार्थक बनाता है।